संधिआ वेले का हुक्मनामा – 28 सतंबर 2023
धनासरी, भगत रवि दास जी की ੴ सतिगुर परसाद हम सरि दीनु दइआल न तुम सरि अब पतिआरू किया कीजे ॥ बचनी तोर मोर मनु माने जन कऊ पूरण दीजे ॥१॥ हउ बलि बलि जाउ रमईआ कारने ॥ कारन कवन अबोल ॥ रहाउ ॥ बहुत जनम बिछुरे थे माधउ इहु जनमु तुम्हारे लेखे ॥ कहि […]
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तिलंग मः १ ॥ इआनड़ीए मानड़ा काइ करेहि ॥ आपनड़ै घरि हरि रंगो की न माणेहि ॥ सहु नेड़ै धन कमलीए बाहरु किआ ढूढेहि ॥ भै कीआ देहि सलाईआ नैणी भाव का करि सीगारो ॥ ता सोहागणि जाणीऐ लागी जा सहु धरे पिआरो ॥१॥ इआणी बाली किआ करे जा धन कंत न भावै ॥ करण […]
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तिलंग घरु २ महला ५ ॥ तुधु बिनु दूजा नाही कोइ ॥ तू करतारु करहि सो होइ ॥ तेरा जोरु तेरी मनि टेक ॥ सदा सदा जपि नानक एक ॥१॥ सभ ऊपरि पारब्रहमु दातारु ॥ तेरी टेक तेरा आधारु ॥ रहाउ ॥ है तूहै तू होवनहार ॥ अगम अगाधि ऊच आपार ॥ जो तुधु सेवहि […]
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धनासरी महला ५ ॥ मेरा लागो राम सिउ हेतु ॥ सतिगुरु मेरा सदा सहाई जिनि दुख का काटिआ केतु ॥१॥ रहाउ ॥ हाथ देइ राखिओ अपुना करि बिरथा सगल मिटाई ॥ निंदक के मुख काले कीने जन का आपि सहाई ॥१॥ साचा साहिबु होआ रखवाला राखि लीए कंठि लाइ ॥ निरभउ भए सदा सुख माणे […]
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जैतसरी महला ४ घरु १ चउपदे ੴसतिगुर प्रसादि ॥ मेरै हीअरै रतनु नामु हरि बसिआ गुरि हाथु धरिओ मेरै माथा ॥ जनम जनम के किलबिख दुख उतरे गुरि नामु दीओ रिनु लाथा ॥१॥ मेरे मन भजु राम नामु सभि अरथा ॥ गुरि पूरै हरि नामु दि्रड़ाइआ बिनु नावै जीवनु बिरथा ॥ रहाउ ॥ बिनु गुर […]
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धनासरी महला ४ ॥ मेरे साहा मै हरि दरसन सुखु होइ ॥ हमरी बेदनि तू जानता साहा अवरु किआ जानै कोइ ॥ रहाउ ॥ साचा साहिबु सचु तू मेरे साहा तेरा कीआ सचु सभु होइ ॥ झूठा किस कउ आखीऐ साहा दूजा नाही कोइ ॥१॥ सभना विचि तू वरतदा साहा सभि तुझहि धिआवहि दिनु राति […]
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टोडी महला ५ ॥ गरबि गहिलड़ो मूड़ड़ो हीओ रे ॥ हीओ महराज री माइओ ॥ डीहर निआई मोहि फाकिओ रे ॥ रहाउ ॥ घणो घणो घणो सद लोड़ै बिनु लहणे कैठै पाइओ रे ॥ महराज रो गाथु वाहू सिउ लुभड़िओ निहभागड़ो भाहि संजोइओ रे ॥१॥ सुणि मन सीख साधू जन सगलो थारे सगले प्राछत मिटिओ […]
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वडहंसु महला १ घरु २ ॥ मोरी रुण झुण लाइआ भैणे सावणु आइआ ॥ तेरे मुंध कटारे जेवडा तिनि लोभी लोभ लुभाइआ ॥ तेरे दरसन विटहु खंनीऐ वंञा तेरे नाम विटहु कुरबाणो ॥ जा तू ता मै माणु कीआ है तुधु बिनु केहा मेरा माणो ॥ चूड़ा भंनु पलंघ सिउ मुंधे सणु बाही सणु बाहा […]
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सलोक मः ३ ॥ अपणा आपु न पछाणई हरि प्रभु जाता दूरि ॥ गुर की सेवा विसरी किउ मनु रहै हजूरि ॥ मनमुखि जनमु गवाइआ झूठै लालचि कूरि ॥ नानक बखसि मिलाइअनु सचै सबदि हदूरि ॥१॥ (हे भाई! अपने मन के पीछे चलने वाला मनुख) अपने आत्मिक जीवन को (कभी) परखता नहीं, वह परमात्मा को […]
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सलोक मः ३ ॥ हउमै विचि जगतु मुआ मरदो मरदा जाइ ॥ जिचरु विचि दमु है तिचरु न चेतई कि करेगु अगै जाइ ॥ गिआनी होइ सु चेतंनु होइ अगिआनी अंधु कमाइ ॥ नानक एथै कमावै सो मिलै अगै पाए जाइ ॥१॥ संसार हुमाय में मरा हुआ है, रोज (और गहरा) जा रहा है, जब […]
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