अमृत वेले का हुक्मनामा – 28 जुलाई 2024
बिलावलु महला ५ ॥ बंधन काटै सो प्रभू जा कै कल हाथ ॥ अवर करम नही छूटीऐ राखहु हरि नाथ ॥१॥ तउ सरणागति माधवे पूरन दइआल ॥ छूटि जाइ संसार ते राखै गोपाल ॥१॥ रहाउ ॥ आसा भरम बिकार मोह इन महि लोभाना ॥ झूठु समग्री मनि वसी पारब्रहमु न जाना ॥२॥ परम जोति पूरन […]
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अंग : 602 सोरठि मः ३ दुतुके ॥ सतिगुर मिलिऐ उलटी भई भाई जीवत मरै ता बूझ पाइ ॥ सो गुरू सो सिखु है भाई जिसु जोती जोति मिलाइ ॥१॥ मन रे हरि हरि सेती लिव लाइ ॥ मन हरि जपि मीठा लागै भाई गुरमुखि पाए हरि थाइ ॥ रहाउ ॥ बिनु गुर प्रीति न […]
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धनासरी महला ४ ॥ कलिजुग का धरमु कहहु तुम भाई किव छूटह हम छुटकाकी ॥ हरि हरि जपु बेड़ी हरि तुलहा हरि जपिओ तरै तराकी ॥१॥ हरि जी लाज रखहु हरि जन की ॥ हरि हरि जपनु जपावहु अपना हम मागी भगति इकाकी ॥ रहाउ ॥ हरि के सेवक से हरि पिआरे जिन जपिओ हरि […]
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अंग : 616 सोरठि महला ५ ॥ माइआ मोह मगनु अंधिआरै देवनहारु न जानै ॥ जीउ पिंडु साजि जिनि रचिआ बलु अपुनो करि मानै ॥१॥ मन मूड़े देखि रहिओ प्रभ सुआमी ॥ जो किछु करहि सोई सोई जाणै रहै न कछूऐ छानी ॥ रहाउ ॥ जिहवा सुआद लोभ मदि मातो उपजे अनिक बिकारा ॥ बहुतु […]
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धनासरी महला ५ ॥ फिरत फिरत भेटे जन साधू पूरै गुरि समझाइआ ॥ आन सगल बिधि कांमि न आवै हरि हरि नामु धिआइआ ॥१॥ ता ते मोहि धारी ओट गोपाल ॥ सरनि परिओ पूरन परमेसुर बिनसे सगल जंजाल ॥ रहाउ ॥ सुरग मिरत पइआल भू मंडल सगल बिआपे माइ ॥ जीअ उधारन सभ कुल तारन […]
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धनासरी महला ५ ॥ जिस का तनु मनु धनु सभु तिस का सोई सुघड़ु सुजानी ॥ तिन ही सुणिआ दुखु सुखु मेरा तउ बिधि नीकी खटानी ॥१॥ जीअ की एकै ही पहि मानी ॥ अवरि जतन करि रहे बहुतेरे तिन तिलु नही कीमति जानी ॥ रहाउ ॥ अम्रित नामु निरमोलकु हीरा गुरि दीनो मंतानी ॥ […]
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धनासरी महला ५ ॥ फिरत फिरत भेटे जन साधू पूरै गुरि समझाइआ ॥ आन सगल बिधि कांमि न आवै हरि हरि नामु धिआइआ ॥१॥ ता ते मोहि धारी ओट गोपाल ॥ सरनि परिओ पूरन परमेसुर बिनसे सगल जंजाल ॥ रहाउ ॥ सुरग मिरत पइआल भू मंडल सगल बिआपे माइ ॥ जीअ उधारन सभ कुल तारन […]
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अंग : 679 धनासरी महला ५ ॥ जा कउ हरि रंगु लागो इसु जुग महि सो कहीअत है सूरा ॥ आतम जिणै सगल वसि ता कै जा का सतिगुरु पूरा ॥१॥ ठाकुरु गाईऐ आतम रंगि ॥ सरणी पावन नाम धिआवन सहजि समावन संगि ॥१॥ रहाउ ॥ जन के चरन वसहि मेरै हीअरै संगि पुनीता देही […]
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जैतसरी महला ९ ॥ हरि जू राखि लेहु पति मेरी ॥ जम को त्रास भइओ उर अंतरि सरनि गही किरपा निधि तेरी ॥१॥ रहाउ ॥ महा पतित मुगध लोभी फुनि करत पाप अब हारा ॥ भै मरबे को बिसरत नाहिन तिह चिंता तनु जारा ॥१॥ कीए उपाव मुकति के कारनि दह दिसि कउ उठि धाइआ […]
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धनासरी महला ५ ॥ पानी पखा पीसउ संत आगै गुण गोविंद जसु गाई ॥ सासि सासि मनु नामु सम्हारै इहु बिस्राम निधि पाई ॥१॥ तुम्ह करहु दइआ मेरे साई ॥ ऐसी मति दीजै मेरे ठाकुर सदा सदा तुधु धिआई ॥१॥ रहाउ ॥ तुम्हरी क्रिपा ते मोहु मानु छूटै बिनसि जाइ भरमाई ॥ अनद रूपु रविओ […]
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