अमृत वेले का हुक्मनामा – 4 दसंबर 2022
सूही महला ४ घरु ७ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ तेरे कवन कवन गुण कहि कहि गावा तू साहिब गुणी निधाना ॥ तुमरी महिमा बरनि न साकउ तूं ठाकुर ऊच भगवाना ॥१॥ मै हरि हरि नामु धर सोई ॥ जिउ भावै तिउ राखु मेरे साहिब मै तुझ बिनु अवरु न कोई ॥१॥ रहाउ ॥ मै ताणु […]
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जो जनु भाउ भगति कछु जानै ता कउ अचरजु काहो ॥ जिउ जलु जल महि पैसि न निकसै तिउ ढुरि मिलिओ जुलाहो ॥१॥ हरि के लोगा मै तउ मति का भोरा ॥ जउ तनु कासी तजहि कबीरा रमईऐ कहा निहोरा ॥१॥ रहाउ ॥ कहतु कबीरु सुनहु रे लोई भरमि न भूलहु कोई ॥ किआ कासी […]
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सोरठि महला ५ ॥ मिरतक कउ पाइओ तनि सासा बिछुरत आनि मिलाइआ ॥ पसू परेत मुगध भए स्रोते हरि नामा मुखि गाइआ ॥१॥ पूरे गुर की देखु वडाई ॥ ता की कीमति कहणु न जाई ॥ रहाउ ॥ दूख सोग का ढाहिओ डेरा अनद मंगल बिसरामा ॥ मन बांछत फल मिले अचिंता पूरन होए कामा […]
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रामकली महला ५ ॥ अंगीकारु कीआ प्रभि अपनै बैरी सगले साधे ॥ जिनि बैरी है इहु जगु लूटिआ ते बैरी लै बाधे ॥१॥ सतिगुरु परमेसरु मेरा ॥ अनिक राज भोग रस माणी नाउ जपी भरवासा तेरा ॥१॥ रहाउ ॥ चीति न आवसि दूजी बाता सिर ऊपरि रखवारा ॥ बेपरवाहु रहत है सुआमी इक नाम कै […]
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धनासरी महला ५ घरु ६ असटपदी ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ जो जो जूनी आइओ तिह तिह उरझाइओ माणस जनमु संजोगि पाइआ ॥ ताकी है ओट साध राखहु दे करि हाथ करि किरपा मेलहु हरि राइआ ॥१॥ अनिक जनम भ्रमि थिति नही पाई ॥ करउ सेवा गुर लागउ चरन गोविंद जी का मारगु देहु जी बताई […]
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अंग : 719 टोडी बाणी भगतां की ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ कोई बोलै निरवा कोई बोलै दूरि ॥ जल की माछुली चरै खजूरि ॥१॥ कांइ रे बकबादु लाइओ ॥ जिनि हरि पाइओ तिनहि छपाइओ ॥१॥ रहाउ ॥ पंडितु होइ कै बेदु बखानै ॥ मूरखु नामदेउ रामहि जानै ॥२॥१॥ अर्थ: कोई मनुख कहता है (परमात्मा हमारे […]
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गोंड ॥ खसमु मरै तउ नारि न रोवै ॥ उसु रखवारा अउरो होवै ॥ रखवारे का होइ बिनास ॥ आगै नरकु ईहा भोग बिलास ॥१॥ एक सुहागनि जगत पिआरी ॥ सगले जीअ जंत की नारी ॥१॥ रहाउ ॥ सोहागनि गलि सोहै हारु ॥ संत कउ बिखु बिगसै संसारु ॥ करि सीगारु बहै पखिआरी ॥ संत […]
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धनासरी महला ५ घरु १२ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ बंदना हरि बंदना गुण गावहु गोपाल राइ ॥ रहाउ ॥ वडै भागि भेटे गुरदेवा ॥ कोटि पराध मिटे हरि सेवा ॥१॥ चरन कमल जा का मनु रापै ॥ सोग अगनि तिसु जन न बिआपै ॥२॥ सागरु तरिआ साधू संगे ॥ निरभउ नामु जपहु हरि रंगे ॥३॥ […]
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सोरठि महला ५ ॥ राजन महि राजा उरझाइओ मानन महि अभिमानी ॥ लोभन महि लोभी लोभाइओ तिउ हरि रंगि रचे गिआनी ॥१॥ हरि जन कउ इही सुहावै ॥ पेखि निकटि करि सेवा सतिगुर हरि कीरतनि ही त्रिपतावै ॥ रहाउ ॥ अमलन सिउ अमली लपटाइओ भूमन भूमि पिआरी ॥ खीर संगि बारिकु है लीना प्रभ संत […]
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धनासरी महला ५ घरु १२ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ बंदना हरि बंदना गुण गावहु गोपाल राइ ॥ रहाउ ॥ वडै भागि भेटे गुरदेवा ॥ कोटि पराध मिटे हरि सेवा ॥१॥ चरन कमल जा का मनु रापै ॥ सोग अगनि तिसु जन न बिआपै ॥२॥ सागरु तरिआ साधू संगे ॥ निरभउ नामु जपहु हरि रंगे ॥३॥ […]
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