अमृत वेले का हुक्मनामा – 31 दसंबर 2022
धनासरी छंत महला ४ घरु १ सतिੴ गुर प्रसादि ॥ हरि जीउ क्रिपा करे ता नामु धिआईऐ जीउ ॥ सतिगुरु मिलै सुभाइ सहजि गुण गाईऐ जीउ ॥ गुण गाइ विगसै सदा अनदिनु जा आपि साचे भावए ॥ अहंकारु हउमै तजै माइआ सहजि नामि समावए ॥ आपि करता करे सोई आपि देइ त पाईऐ ॥ हरि […]
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आसा ॥ जब लगु तेलु दीवे मुखि बाती तब सूझै सभु कोई ॥ तेल जले बाती ठहरानी सूंना मंदरु होई ॥१॥ रे बउरे तुहि घरी न राखै कोई ॥ तूं राम नामु जपि सोई ॥१॥ रहाउ ॥ का की मात पिता कहु का को कवन पुरख की जोई ॥ घट फूटे कोऊ बात न पूछै […]
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सोरठि महला ५ ॥ हमरी गणत न गणीआ काई अपणा बिरदु पछाणि ॥ हाथ देइ राखे करि अपुने सदा सदा रंगु माणि ॥१॥ साचा साहिबु सद मिहरवाण ॥ बंधु पाइआ मेरै सतिगुरि पूरै होई सरब कलिआण ॥ रहाउ ॥ जीउ पाइ पिंडु जिनि साजिआ दिता पैनणु खाणु ॥ अपणे दास की आपि पैज राखी नानक […]
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धनासरी महला १ घरु १ चउपदे ੴ सति नामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुर प्रसादि ॥ जीउ डरतु है आपणा कै सिउ करी पुकार ॥ दूख विसारणु सेविआ सदा सदा दातारु ॥१॥ साहिबु मेरा नीत नवा सदा सदा दातारु ॥१॥ रहाउ ॥ अनदिनु साहिबु सेवीऐ अंति छडाए सोइ ॥ सुणि सुणि […]
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बिलावलु महला ४ ॥ हरि हरि नामु सीतल जलु धिआवहु हरि चंदन वासु सुगंध गंधईआ ॥ मिलि सतसंगति परम पदु पाइआ मै हिरड पलास संगि हरि बुहीआ ॥१॥ जपि जगंनाथ जगदीस गुसईआ ॥ सरणि परे सेई जन उबरे जिउ प्रहिलाद उधारि समईआ ॥१॥ रहाउ ॥ भार अठारह महि चंदनु ऊतम चंदन निकटि सभ चंदनु हुईआ […]
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सोरठि महला ५ ॥ सतिगुर पूरे भाणा ॥ ता जपिआ नामु रमाणा ॥ गोबिंद किरपा धारी ॥ प्रभि राखी पैज हमारी ॥१॥ हरि के चरन सदा सुखदाई ॥ जो इछहि सोई फलु पावहि बिरथी आस न जाई ॥१॥ रहाउ ॥ क्रिपा करे जिसु प्रानपति दाता सोई संतु गुण गावै ॥ प्रेम भगति ता का मनु […]
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धनासरी महला ३ ॥* *सदा धनु अंतरि नामु समाले ॥ जीअ जंत जिनहि प्रतिपाले ॥ मुकति पदारथु तिन कउ पाए ॥ हरि कै नामि रते लिव लाए ॥१॥ गुर सेवा ते हरि नामु धनु पावै ॥ अंतरि परगासु हरि नामु धिआवै ॥ रहाउ ॥ इहु हरि रंगु गूड़ा धन पिर होइ ॥ सांति सीगारु रावे […]
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टोडी महला ५ ॥ साधसंगि हरि हरि नामु चितारा ॥ सहजि अनंदु होवै दिनु राती अंकुरु भलो हमारा ॥ रहाउ ॥ गुरु पूरा भेटिओ बडभागी जा को अंतु न पारावारा ॥ करु गहि काढि लीओ जनु अपुना बिखु सागर संसारा ॥१॥ जनम मरन काटे गुर बचनी बहुड़ि न संकट दुआरा ॥ नानक सरनि गही सुआमी […]
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सोरठि महला ९ ॥ मन रे प्रभ की सरनि बिचारो ॥ जिह सिमरत गनका सी उधरी ता को जसु उर धारो ॥१॥ रहाउ ॥ अटल भइओ ध्रूअ जा कै सिमरनि अरु निरभै पदु पाइआ ॥ दुख हरता इह बिधि को सुआमी तै काहे बिसराइआ ॥१॥ जब ही सरनि गही किरपा निधि गज गराह ते छूटा […]
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सूही महला ४ घरु ६ੴ सतिगुर प्रसादि ॥नीच जाति हरि जपतिआ उतम पदवी पाए ॥ पूछहु बिदर दासी सुतै किसनु उतरिआ घरि जिसु जाए ॥१॥ हरि की अकथ कथा सुनहु जन भाई जितु सहसा दूख भूख सभ लहि जाए ॥१॥ रहाउ ॥ रविदासु चमारु उसतति करे हरि कीरति निमख इक गाए ॥ पतित जाति उतमु […]
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