अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 28 अक्तूबर 2022

सलोक मः ३ ॥गुरमुखि प्रभु सेवहि सद साचा अनदिनु सहजि पिआरि ॥सदा अनंदि गावहि गुण साचे अरधि उरधि उरि धारि ॥अंतरि प्रीतमु वसिआ धुरि करमु लिखिआ करतारि ॥नानक आपि मिलाइअनु आपे किरपा धारि ॥१॥मः ३ ॥कहिऐ कथिऐ न पाईऐ अनदिनु रहै सदा गुण गाए ॥विणु करमै किनै न पाइओ भउकि मुए बिललाए ॥गुर कै सबदि मनु तनु भिजै आपि वसै मनि आए ॥नानक नदरी पाईऐ आपे लए मिलाए ॥२॥पउड़ी ॥आपे वेद पुराण सभि सासत आपि कथै आपि भीजै ॥आपे ही बहि पूजे करता आपि परपंचु करीजै ॥आपि परविरति आपि निरविरती आपे अकथु कथीजै ॥आपे पुंनु सभु आपि कराए आपि अलिपतु वरतीजै ॥आपे सुखु दुखु देवै करता आपे बखस करीजै ॥८॥

सलोक म: ३ ।। सतिगुरू के सन्मुख रहने वाले मनुष्य हर समय सहज अवस्था में लिव जोड़ कर(सदा एक मन एक चित रह कर) हमेशा सच्चे प्रभु को सिमरते हैंऔर नीचे ऊपर(सब जगह)व्यापक हरि को हृदय में बसा कर चढ़दी कला में(रह कर)सदा सच्चे की सिफत सालाह करते हैं ।धुर दरगाह से ही प्रभु ने(उनके लिए)बख्शीश(का फुरमान)लिख दिया है(इस लिए)उन के हृदय में प्यारा प्रभु बसता है, हे नानक ! उस प्रभु ने आप ही किरपा कर के उन को आपने में मिला लिया है ।१। म:३ ।।(जब तक सतिगुरु के शब्द के द्वारा हृदय नहीं पसीजता और प्रभु की बख्शीश का पात्र नहीं बनता,तब तक)(चाहे)सदा हर समय गुण गाता रहे,(इस तरह)कहने और बयान करने से अंत नही पाया जा सकता,किरपा से बिना किसी को नही मिला,कई रोते, पुकारते मर गए हैं । सतिगुरू के शब्द के द्वारा (ही )मन और तन पसीजता है और प्रभु हृदय में बसता है । हे नानक ! प्रभु अपनी किरपा जिस पर करे उसे ही मिलता है,वह आप ही(जीव को)अपने से मिलाता है।२।
पऊड़ी ।। सारे वेद पुराण और शास्त्र प्रभु आप ही रचने वाला है,आप ही इनकी कथा करता है और आप ही(सुन कर)प्रसन्न होता है,प्रभु आप ही बैठ कर(पुराण आदि के मत्त अनुसार)पूजा करता है और आप ही(और)पसारा पसारता है,आप ही संसार में(भोगों में) मस्त हो रहा है और आप ही (कहीं)इनसे अलग हो कर उदास हो बैठा है वह अकथ परमात्मा आपना आप आप ही बयान करता है,पुन्न भी आप ही करवाता है,फिर(पाप)पुन्न से अलेप भी आप ही बरतता है,आप ही प्रभु दुःख सुख देता है और आप ही मेहर करता है


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