संधिआ वेले का हुक्मनामा – 23 फरवरी 2025
सोरठि ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ बहु परपंच करि पर धनु लिआवै ॥ सुत दारा पहि आनि लुटावै ॥१॥ मन मेरे भूले कपटु न कीजै ॥ अंति निबेरा तेरे जीअ पहि लीजै ॥१॥ रहाउ ॥ छिनु छिनु तनु छीजै जरा जनावै ॥ तब तेरी ओक कोई पानीओ न पावै ॥२॥ कहतु कबीरु कोई नही तेरा ॥ […]
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सोरठि महला ४ ॥ आपे कंडा आपि तराजी प्रभि आपे तोलि तोलाइआ ॥ आपे साहु आपे वणजारा आपे वणजु कराइआ ॥ आपे धरती साजीअनु पिआरै पिछै टंकु चड़ाइआ ॥१॥ मेरे मन हरि हरि धिआइ सुखु पाइआ ॥ हरि हरि नामु निधानु है पिआरा गुरि पूरै मीठा लाइआ ॥ रहाउ ॥ आपे धरती आपि जलु पिआरा […]
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सोरठि महला ९ ॥ इह जगि मीतु न देखिओ कोई ॥ सगल जगतु अपनै सुखि लागिओ दुख मै संगि न होई ॥१॥ रहाउ ॥ दारा मीत पूत सनबंधी सगरे धन सिउ लागे ॥ जब ही निरधन देखिओ नर कउ संगु छाडि सभ भागे ॥१॥ कहंउ कहा यिआ मन बउरे कउ इन सिउ नेहु लगाइओ ॥ […]
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सोरठि महला ५ पंचपदा ॥ बिनसै मोहु मेरा अरु तेरा बिनसै अपनी धारी ॥१॥ संतहु इहा बतावहु कारी ॥ जितु हउमै गरबु निवारी ॥१॥ रहाउ ॥ सरब भूत पारब्रहमु करि मानिआ होवां सगल रेनारी ॥२॥ पेखिओ प्रभ जीउ अपुनै संगे चूकै भीति भ्रमारी ॥३॥ अउखधु नामु निरमल जलु अम्रितु पाईऐ गुरू दुआरी ॥४॥ कहु नानक […]
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बिलावलु महला १ ॥ मै मनि चाउ घणा साचि विगासी राम ॥ मोही प्रेम पिरे प्रभि अबिनासी राम ॥ अविगतो हरि नाथु नाथह तिसै भावै सो थीऐ ॥ किरपालु सदा दइआलु दाता जीआ अंदरि तूं जीऐ ॥ मै अवरु गिआनु न धिआनु पूजा हरि नामु अंतरि वसि रहे ॥ भेखु भवनी हठु न जाना नानका […]
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अंग : 704-705 जैतसरी महला ५ घरु २ छंत ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ सलोकु ॥ ऊचा अगम अपार प्रभु कथनु न जाइ अकथु ॥ नानक प्रभ सरणागती राखन कउ समरथु ॥१॥ छंतु ॥ जिउ जानहु तिउ राखु हरि प्रभ तेरिआ ॥ केते गनउ असंख अवगण मेरिआ ॥ असंख अवगण खते फेरे नितप्रति सद भूलीऐ ॥ […]
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सोरठि ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ बहु परपंच करि पर धनु लिआवै ॥ सुत दारा पहि आनि लुटावै ॥१॥ मन मेरे भूले कपटु न कीजै ॥ अंति निबेरा तेरे जीअ पहि लीजै ॥१॥ रहाउ ॥ छिनु छिनु तनु छीजै जरा जनावै ॥ तब तेरी ओक कोई पानीओ न पावै ॥२॥ कहतु कबीरु कोई नही तेरा ॥ […]
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अंग : 700 जैतसरी महला ५ घरु ३ दुपदे ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ देहु संदेसरो कहीअउ प्रिअ कहीअउ ॥ बिसमु भई मै बहु बिधि सुनते कहहु सुहागनि सहीअउ ॥१॥ रहाउ ॥ को कहतो सभ बाहरि बाहरि को कहतो सभ महीअउ ॥ बरनु न दीसै चिहनु न लखीऐ सुहागनि साति बुझहीअउ ॥१॥ सरब निवासी घटि घटि […]
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धनासरी महला ५ ॥ जिनि तुम भेजे तिनहि बुलाए सुख सहज सेती घरि आउ ॥ अनद मंगल गुन गाउ सहज धुनि निहचल राजु कमाउ ॥१॥ तुम घरि आवहु मेरे मीत ॥ तुमरे दोखी हरि आपि निवारे अपदा भई बितीत ॥ रहाउ ॥ प्रगट कीने प्रभ करनेहारे नासन भाजन थाके ॥ घरि मंगल वाजहि नित वाजे […]
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अंग : 686 धनासरी महला १ ॥ सहजि मिलै मिलिआ परवाणु ॥ ना तिसु मरणु न आवणु जाणु ॥ ठाकुर महि दासु दास महि सोइ ॥ जह देखा तह अवरु न कोइ ॥१॥ गुरमुखि भगति सहज घरु पाईऐ ॥ बिनु गुर भेटे मरि आईऐ जाईऐ ॥१॥ रहाउ ॥ सो गुरु करउ जि साचु द्रिड़ावै ॥ […]
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