संधिआ ​​वेले का हुक्मनामा – 2 मार्च 2025

धनासरी महला ५ घरु ६
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
सुनहु संत पिआरे बिनउ हमारे जीउ ॥ हरि बिनु मुकति न काहू जीउ ॥ रहाउ ॥ मन निरमल करम करि तारन तरन हरि अवरि जंजाल तेरै काहू न काम जीउ ॥ जीवन देवा पारब्रहम सेवा इहु उपदेसु मो कउ गुरि दीना जीउ ॥१॥ तिसु सिउ न लाईऐ हीतु जा को किछु नाही बीतु अंत की बार ओहु संगि न चालै ॥ मनि तनि तू आराध हरि के प्रीतम साध जा कै संगि तेरे बंधन छूटै ॥२॥ गहु पारब्रहम सरन हिरदै कमल चरन अवर आस कछु पटलु न कीजै ॥ सोई भगतु गिआनी धिआनी तपा सोई नानक जा कउ किरपा कीजै ॥३॥१॥२९॥
अर्थ:
राग धनासरी, घर ६ में गुरु अर्जन देव जी की बाणी।अकाल पुरख एक है और सतिगुरु की कृपा द्वारा मिलता है।हे प्यारे संत जनों! मेरी बेनती सुनो, परमात्मा (के सिमरन) के बिना (माया के बंधनों से) किसी की भी खलासी नहीं होती ॥ रहाउ ॥ हे मन! (जीवन को) पवित्र करने वाले (हरी-सिमरन के) काम किया कर, परमात्मा (का नाम ही संसार-समुँद्र से) पार निकलने के लिए जहाज है। (दुनिया के) ओर सारे जंजाल तेरे किसी भी काम नहीं आएँगे। प्रकाश-रूप परमात्मा की सेवा-भक्ति ही (असल) जीवन है-यह उपदेश मुझे गुरु ने दिया है ॥१॥ हे भाई! उस (धन-पदार्थ) के साथ प्रेम नहीं पाना चाहिए, जिस की कोई हस्ती ही नहीं। वह (धन-पदार्थ) अन्त समय के साथ नहीं जाता। अपने मन में हृदय में तूँ परमात्मा का नाम सिमरिया कर। परमात्मा के साथ प्रेम करने वाले संत जनों (की संगत किया कर), क्योंकि उन (संत जनों की) संगत में तेरे (माया के) बंधन खत्म हो सकते हैं ॥२॥ हे भाई! परमात्मा का आसरा पकड़, (अपने) हृदय में (परमात्मा के) कोमल चरण (वसा) (परमात्मा के बिना) किसी ओर की आशा नहीं करनी चाहिए, कोई ओर सहारा नहीं ढूंढणा चाहिए। हे नानक जी! वही मनुष्य भगत है, वही ज्ञानवान है, वही सुरति-अभिआसी है, वही तपस्वी है, जिस ऊपर परमात्मा कृपा करता है ॥३॥१॥२९॥


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