सोरठि महला ५ ॥ गुरु पूरा भेटिओ वडभागी मनहि भइआ परगासा ॥ कोइ न पहुचनहारा दूजा अपुने साहिब का भरवासा ॥१॥ अपुने सतिगुर कै बलिहारै ॥ आगै सुखु पाछै सुख सहजा घरि आनंदु हमारै ॥ रहाउ ॥ अंतरजामी करणैहारा सोई खसमु हमारा ॥ निरभउ भए गुर चरणी लागे इक राम नाम आधारा ॥२॥

हे भाई! बड़ी किस्मत से मुझे पूरा गुरु मिल गया है, मेरे मन में आत्मिक जीवन की सूझ पैदा हो गयी है। अब मुझे अपने मालिक का सहारा हो गया है, कोई उस मालिक की बराबरी नहीं कर सकता।१। हे भाई! में अपने गुरु से कुर्बान जाता हूँ, (गुरु की कृपा से) मेरे हिर्दय-घर में आनंद बना रहता है, इस लोक में भी आत्मिक अडोलता का सुख मुझे प्राप्त हो गया है, और, परलोक में भी यह सुख सथिर रहने वाला है।रहाउ। हे भाई! जब से में गुरु की शरण आया हूँ, मुझे परमात्मा के नाम का सहारा हो गया है, कोई भय अब मुझे छु नहीं सकता (मुझे निश्चय हो गया है की जो) सिरजनहार सब के दिल की जानने वाला है वो ही मेरे सिर ऊपर रखवाला है।२।

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