अमृत वेले का हुक्मनामा – 20 दसंबर 2022
रामकली महला १ ॥ सुरति सबदु साखी मेरी सिंङी बाजै लोकु सुणे ॥ पतु झोली मंगण कै ताई भीखिआ नामु पड़े ॥१॥बाबा गोरखु जागै ॥ गोरखु सो जिनि गोइ उठाली करते बार न लागै ॥१॥ रहाउ॥पाणी प्राण पवणि बंधि राखे चंदु सूरजु मुखि दीए ॥ मरण जीवण कउ धरती दीनी एते गुण विसरे ॥२॥सिध साधिक […]
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रागु सोरठि बानी भगत रविदास जी की ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ दुलभ जनमु पुंन फल पाइओ बिरथा जात अबिबेकै ॥ राजे इंद्र समसरि ग्रिह आसन बिनु हरि भगति कहहु किह लेखै ॥१॥ न बीचारिओ राजा राम को रसु ॥ जिह रस अन रस बीसरि जाही ॥१॥ रहाउ ॥ जानि अजान भए हम बावर सोच असोच […]
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जैतसरी महला ४ घरु २ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ हरि हरि सिमरहु अगम अपारा ॥ जिसु सिमरत दुखु मिटै हमारा ॥ हरि हरि सतिगुरु पुरखु मिलावहु गुरि मिलिऐ सुखु होई राम ॥१॥ हरि गुण गावहु मीत हमारे ॥ हरि हरि नामु रखहु उर धारे ॥ हरि हरि अंम्रित बचन सुणावहु गुर मिलिऐ परगटु होई राम […]
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वडहंस महला ४ घरु २ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ मै मनि वडी आस हरे किउ करि हरि दरसनु पावा ॥ हउ जाइ पुछा अपने सतगुरै गुर पुछि मनु मुगधु समझावा ॥ भूला मनु समझै गुर सबदी हरि हरि सदा धिआए ॥ नानक जिसु नदरि करे मेरा पिआरा सो हरि चरणी चितु लाए ॥१॥ राग वडहंस, […]
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रागु धनासिरी महला ३ घरु ४ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ हम भीखक भेखारी तेरे तू निज पति है दाता ॥ होहु दैआल नामु देहु मंगत जन कंउ सदा रहउ रंगि राता ॥१॥ हंउ बलिहारै जाउ साचे तेरे नाम विटहु ॥ करण कारण सभना का एको अवरु न दूजा कोई ॥१॥ रहाउ ॥ बहुते फेर पए […]
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सलोक मः ५ ॥ करि किरपा किरपाल आपे बखसि लै ॥ सदा सदा जपी तेरा नामु सतिगुर पाइ पै ॥ मन तन अंतरि वसु दूखा नासु होइ ॥ हथ देइ आपि रखु विआपै भउ न कोइ ॥ गुण गावा दिनु रैणि एतै कमि लाइ ॥ संत जना कै संगि हउमै रोगु जाइ ॥ सरब निरंतरि […]
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धनासरी महला ५ ॥ फिरत फिरत भेटे जन साधू पूरै गुरि समझाइआ ॥ आन सगल बिधि कांमि न आवै हरि हरि नामु धिआइआ ॥१॥ ता ते मोहि धारी ओट गोपाल ॥ सरनि परिओ पूरन परमेसुर बिनसे सगल जंजाल ॥ रहाउ ॥ सुरग मिरत पइआल भू मंडल सगल बिआपे माइ ॥ जीअ उधारन सभ कुल तारन […]
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सलोक ॥ मन इछा दान करणं सरबत्र आसा पूरनह ॥ खंडणं कलि कलेसह प्रभ सिमरि नानक नह दूरणह ॥१॥ हभि रंग माणहि जिसु संगि तै सिउ लाईऐ नेहु ॥ सो सहु बिंद न विसरउ नानक जिनि सुंदरु रचिआ देहु ॥२॥ पउड़ी ॥ जीउ प्रान तनु धनु दीआ दीने रस भोग ॥ ग्रिह मंदर रथ असु […]
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धनासरी महला ४ ॥ हरि हरि बूंद भए हरि सुआमी हम चात्रिक बिलल बिललाती ॥ हरि हरि क्रिपा करहु प्रभ अपनी मुखि देवहु हरि निमखाती ॥१॥ हरि बिनु रहि न सकउ इक राती ॥ जिउ बिनु अमलै अमली मरि जाई है तिउ हरि बिनु हम मरि जाती ॥ रहाउ ॥ तुम हरि सरवर अति अगाह […]
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अंग : 667 धनासरी महला ४ ॥ हम अंधुले अंध बिखै बिखु राते किउ चालह गुर चाली ॥ सतगुरु दइआ करे सुखदाता हम लावै आपन पाली ॥१॥ गुरसिख मीत चलहु गुर चाली ॥ जो गुरु कहै सोई भल मानहु हरि हरि कथा निराली ॥१॥ रहाउ॥ हरि के संत सुणहु जन भाई गुरु सेविहु बेगि बेगाली […]
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