संधिआ वेले का हुक्मनामा – 14 मई 2024
सोरठि महला ५ ॥ ठाढि पाई करतारे ॥ तापु छोडि गइआ परवारे ॥ गुरि पूरै है राखी ॥ सरणि सचे की ताकी ॥१॥ परमेसरु आपि होआ रखवाला ॥ सांति सहज सुख खिन महि उपजे मनु होआ सदा सुखाला ॥ रहाउ ॥ हरि हरि नामु दीओ दारू ॥ तिनि सगला रोगु बिदारू ॥ अपणी किरपा धारी […]
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सलोकु मः ३ ॥ सतिगुरि मिलिऐ भुख गई भेखी भुख न जाइ ॥ दुखि लगै घरि घरि फिरै अगै दूणी मिलै सजाइ ॥ अंदरि सहजु न आइओ सहजे ही लै खाइ ॥ मनहठि जिस ते मंगणा लैणा दुखु मनाइ ॥ इसु भेखै थावहु गिरहो भला जिथहु को वरसाइ ॥ सबदि रते तिना सोझी पई दूजै […]
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जैतसरी महला ४ घरु १ चउपदे ੴसतिगुर प्रसादि ॥ मेरै हीअरै रतनु नामु हरि बसिआ गुरि हाथु धरिओ मेरै माथा ॥ जनम जनम के किलबिख दुख उतरे गुरि नामु दीओ रिनु लाथा ॥१॥ मेरे मन भजु राम नामु सभि अरथा ॥ गुरि पूरै हरि नामु दि्रड़ाइआ बिनु नावै जीवनु बिरथा ॥ रहाउ ॥ बिनु गुर […]
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ਅੰਗ : 650 सलोकु मः ३ ॥ पड़णा गुड़णा संसार की कार है अंदरि त्रिसना विकारु ॥ हउमै विचि सभि पड़ि थके दूजै भाइ खुआरु ॥ सो पड़िआ सो पंडितु बीना गुर सबदि करे वीचारु ॥ अंदरु खोजै ततु लहै पाए मोख दुआरु ॥ गुण निधानु हरि पाइआ सहजि करे वीचारु ॥ धंनु वापारी नानका […]
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जैतसरी महला ९ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ भूलिओ मनु माइआ उरझाइओ ॥ जो जो करम कीओ लालच लगि तिह तिह आपु बंधाइओ ॥१॥ रहाउ ॥ समझ न परी बिखै रस रचिओ जसु हरि को बिसराइओ ॥ संगि सुआमी सो जानिओ नाहिन बनु खोजन कउ धाइओ ॥१॥ रतनु रामु घट ही के भीतरि ता को गिआनु […]
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जैतसरी महला ४ घरु १ चउपदे ੴसतिगुर प्रसादि ॥ मेरै हीअरै रतनु नामु हरि बसिआ गुरि हाथु धरिओ मेरै माथा ॥ जनम जनम के किलबिख दुख उतरे गुरि नामु दीओ रिनु लाथा ॥१॥ मेरे मन भजु राम नामु सभि अरथा ॥ गुरि पूरै हरि नामु दि्रड़ाइआ बिनु नावै जीवनु बिरथा ॥ रहाउ ॥ बिनु गुर […]
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सलोकु मः ३ ॥ सतिगुर ते जो मुह फिरे से बधे दुख सहाहि ॥ फिरि फिरि मिलणु न पाइनी जमहि तै मरि जाहि ॥ सहसा रोगु न छोडई दुख ही महि दुख पाहि ॥ नानक नदरी बखसि लेहि सबदे मेलि मिलाहि ॥१॥ मः ३ ॥ जो सतिगुर ते मुह फिरे तिना ठउर न ठाउ ॥ […]
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बिलावलु महला ५ ॥ सिमरि सिमरि प्रभु आपना नाठा दुख ठाउ ॥ बिस्राम पाए मिलि साधसंगि ता ते बहुड़ि न धाउ ॥१॥ बलिहारी गुर आपने चरनन्ह बलि जाउ ॥ अनद सूख मंगल बने पेखत गुन गाउ ॥१॥ रहाउ ॥ कथा कीरतनु राग नाद धुनि इहु बनिओ सुआउ ॥ नानक प्रभ सुप्रसंन भए बांछत फल पाउ […]
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जैतसरी महला ४ घरु २ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ हरि हरि सिमरहु अगम अपारा ॥ जिसु सिमरत दुखु मिटै हमारा ॥ हरि हरि सतिगुरु पुरखु मिलावहु गुरि मिलिऐ सुखु होई राम ॥१॥ हरि गुण गावहु मीत हमारे ॥ हरि हरि नामु रखहु उर धारे ॥ हरि हरि अंम्रित बचन सुणावहु गुर मिलिऐ परगटु होई राम […]
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रागु सोरठि बाणी भगत रविदास जी की ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ जउ हम बांधे मोह फास हम प्रेम बधनि तुम बाधे ॥ अपने छूटन को जतनु करहु हम छूटे तुम आराधे ॥१॥ माधवे जानत हहु जैसी तैसी ॥ अब कहा करहुगे ऐसी ॥१॥ रहाउ ॥ मीनु पकरि फांकिओ अरु काटिओ रांधि कीओ बहु बानी ॥ […]
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