संधिआ वेले का हुक्मनामा – 29 नवंबर 2023
रागु धनासिरी महला ३ घरु ४ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ हम भीखक भेखारी तेरे तू निज पति है दाता ॥ होहु दैआल नामु देहु मंगत जन कंउ सदा रहउ रंगि राता ॥१॥ हंउ बलिहारै जाउ साचे तेरे नाम विटहु ॥ करण कारण सभना का एको अवरु न दूजा कोई ॥१॥ रहाउ ॥ बहुते फेर पए […]
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वडहंसु महला ३ ॥ मन मेरिआ तू सदा सचु समालि जीउ ॥ आपणै घरि तू सुखि वसहि पोहि न सकै जमकालु जीउ ॥ कालु जालु जमु जोहि न साकै साचै सबदि लिव लाए ॥ सदा सचि रता मनु निरमलु आवणु जाणु रहाए ॥ दूजै भाइ भरमि विगुती मनमुखि मोही जमकालि ॥ कहै नानकु सुणि मन […]
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वडहंसु महला ५ घरु २ ੴ सतिगुर प्रसादि मेरै अंतरि लोचा मिलण की पिआरे हउ किउ पाई गुर पूरे ॥ जे सउ खेल खेलाईऐ बालकु रहि न सकै बिनु खीरे ॥ मेरै अंतरि भुख न उतरै अमाली जे सउ भोजन मै नीरे ॥ मेरै मनि तनि प्रेमु पिरम का बिनु दरसन किउ मनु धीरे॥१॥ सुणि […]
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सूही महला १ घरु ६ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ उजलु कैहा चिलकणा घोटिम कालड़ी मसु ॥ धोतिआ जूठि न उतरै जे सउ धोवा तिसु ॥१॥ सजण सेई नालि मै चलदिआ नालि चलंन्हि ॥ जिथै लेखा मंगीऐ तिथै खड़े दिसंनि ॥१॥ रहाउ ॥ कोठे मंडप माड़ीआ पासहु चितवीआहा ॥ ढठीआ कमि न आवन्ही विचहु सखणीआहा ॥२॥ […]
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अमृत वेले का हुक्मनामा – 30 मई 2024
गूजरी महला ५ ॥ जिसु मानुख पहि करउ बेनती सो अपनै दुखि भरिआ ॥ पारब्रहमु जिनि रिदै अराधिआ तिनि भउ सागरु तरिआ ॥१॥ गुर हरि बिनु को न ब्रिथा दुखु काटै ॥ प्रभु तजि अवर सेवकु जे होई है तितु मानु महतु जसु घाटै ॥१॥ रहाउ ॥ माइआ के सनबंध सैन साक कित ही कामि […]
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अंग : 804 मात पिता सुत साथि न माइआ ॥ साधसंगि सभु दूखु मिटाइआ ॥१॥ रवि रहिआ प्रभु सभ महि आपे ॥ हरि जपु रसना दुखु न विआपे ॥१॥ रहाउ ॥ तिखा भूख बहु तपति विआपिआ ॥ सीतल भए हरि हरि जसु जापिआ ॥२॥ कोटि जतन संतोखु न पाइआ ॥ मनु त्रिपताना हरि गुण गाइआ […]
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धनासरी महला ५ ॥ फिरत फिरत भेटे जन साधू पूरै गुरि समझाइआ ॥ आन सगल बिधि कांमि न आवै हरि हरि नामु धिआइआ ॥१॥ ता ते मोहि धारी ओट गोपाल ॥ सरनि परिओ पूरन परमेसुर बिनसे सगल जंजाल ॥ रहाउ ॥ सुरग मिरत पइआल भू मंडल सगल बिआपे माइ ॥ जीअ उधारन सभ कुल तारन […]
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सलोकु मरदाना १ ॥ कलि कलवाली कामु मदु मनूआ पीवणहारु ॥ क्रोध कटोरी मोहि भरी पीलावा अहंकारु ॥ मजलस कूड़े लब की पी पी होइ खुआरु ॥ करणी लाहणि सतु गुड़ु सचु सरा करि सारु ॥ गुण मंडे करि सीलु घिउ सरमु मासु आहारु ॥ गुरमुखि पाईऐ नानका खाधै जाहि बिकार ॥१॥ कलयुगी सवभाव (मानो) […]
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धनासरी महला ५ ॥ तुम दाते ठाकुर प्रतिपालक नाइक खसम हमारे ॥ निमख निमख तुम ही प्रतिपालहु हम बारिक तुमरे धारे ॥१॥ जिहवा एक कवन गुन कहीऐ ॥ बेसुमार बेअंत सुआमी तेरो अंतु न किन ही लहीऐ ॥१॥ रहाउ ॥ कोटि पराध हमारे खंडहु अनिक बिधी समझावहु ॥ हम अगिआन अलप मति थोरी तुम आपन […]
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