संधिआ वेले का हुक्मनामा – 4 मई 2024

सलोकु मः ३ ॥ सतिगुर ते जो मुह फिरे से बधे दुख सहाहि ॥ फिरि फिरि मिलणु न पाइनी जमहि तै मरि जाहि ॥ सहसा रोगु न छोडई दुख ही महि दुख पाहि ॥ नानक नदरी बखसि लेहि सबदे मेलि मिलाहि ॥१॥ मः ३ ॥ जो सतिगुर ते मुह फिरे तिना ठउर न ठाउ ॥ जिउ छुटड़ि घरि घरि फिरै दुहचारणि बदनाउ ॥ नानक गुरमुखि बखसीअहि से सतिगुर मेलि मिलाउ ॥२॥ पउड़ी ॥ जो सेवहि सति मुरारि से भवजल तरि गइआ ॥ जो बोलहि हरि हरि नाउ तिन जमु छडि गइआ ॥ से दरगह पैधे जाहि जिना हरि जपि लइआ ॥ हरि सेवहि सेई पुरख जिना हरि तुधु मइआ ॥ गुण गावा पिआरे नित गुरमुखि भ्रम भउ गइआ ॥७॥

हिंदी में अर्थ :- जो मनुख सतगुर से मनमुख में, वेह (अंत में) बहुत दुःख सहते हैं, प्रभु को मिल नहीं सकते, बार बार पैदा होते हैं व् मरते हैं, चिंता का रोग उन्हें कभी नहीं छोड़ता, सदा दुखी रहते हैं, हे नानक, कृपा-दृष्टि वाला प्रभु यदि उनको बक्श ले तो सतगुरु के शब्द के द्वारा उन्हें मिल जाते हैं।१। जो मनुख सग्तुरु से मनमुख हैं उनकी कोई जगह टिकाना नहीं; उनका विभ्चरण किसी छोड़ी हुई स्त्री जैसा है, जो घर घर में बदनाम होती है। है नानक! जो गुरु के सन्मुख हो के बक्शे जाते हैं, वह सतगुरु की संगत मैं मिल जाते हैं॥२॥ जो मनुष्य सच्चे हरि को सेवते हैं, वे संसार समुंदर को पार कर लेते हैं; जो मनुष्य हरि का नाम स्मरण करते हैं, उन्हें जम छोड़ जाता है; जिन्होंने हरि का नाम जपा है, उन्हें दरगाह में आदर मिलता है; (पर) हे हरि! जिस पर तेरी मेहर होती है, वही मनुष्य तेरी भक्ति करते हैं। सतिगुरु के सन्मुख हो के भ्रम और डर दूर हो जाते हैं, (मेहर कर) हे प्यारे! मैं भी सदा तेरे गुण गाऊँ।7।


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