अमृत वेले का हुक्मनामा – 30 अप्रैल 2024
तिलंग घरु २ महला ५ ॥ तुधु बिनु दूजा नाही कोइ ॥ तू करतारु करहि सो होइ ॥ तेरा जोरु तेरी मनि टेक ॥ सदा सदा जपि नानक एक ॥१॥ सभ ऊपरि पारब्रहमु दातारु ॥ तेरी टेक तेरा आधारु ॥ रहाउ ॥ है तूहै तू होवनहार ॥ अगम अगाधि ऊच आपार ॥ जो तुधु सेवहि तिन भउ दुखु नाहि ॥ गुर परसादि नानक गुण गाहि ॥२॥ जो दीसै सो तेरा रूपु ॥ गुण निधान गोविंद अनूप ॥ सिमरि सिमरि सिमरि जन सोइ ॥ नानक करमि परापति होइ ॥३॥ जिनि जपिआ तिस कउ बलिहार ॥ तिस कै संगि तरै संसार ॥ कहु नानक प्रभ लोचा पूरि ॥ संत जना की बाछउ धूरि ॥४॥२॥
अर्थ: हे प्रभू! तेरे बिना और कोई दूसरा कुछ कर सकने वाला नहीं है। तूँ सारे जगत को पैदा करने वाला हैं, जो कुछ तूँ करता हैं, वही होता है, (हम जीवों को) तेरी ही शक्ति है, (हमारे) मन में तेरा ही सहारा है। हे नानक जी! सदा ही उस एक परमात्मा का नाम जपते रहो ॥१॥ हे भाई! सब जीवों को दाताँ देने वाला परमात्मा सब जीवों के सिर ऊपर राखा है। हे प्रभू! (हम जीवों को) तेरा ही आसरा है, तेरा ही सहारा है ॥ रहाउ ॥ हे प्रभू! हर जगह हर समय तूँ ही तूँ मौजूद हैं, तूँ ही सदा कायम रहने वाला हैं। हे अपहुँच प्रभू! हे अथाह प्रभू! हे सब से ऊँचे और बेअंत प्रभू! जो मनुष्य तुम्हें याद करते हैं, उनको कोई डर कोई दुःख परेशान नहीं कर सकता। हे नानक जी! गुरू की कृपा से ही (मनुष्य परमात्मा के) गुण गा सकते हैं ॥२॥ हे प्रभू! (जगत में) जो कुछ दिखता है तेरा ही स्वरूप है, हे गुणों के ख़ज़ाने! हे सुंदर गोबिंद! (यह जगत तेरा ही रूप है) हे मनुष्य! सदा उस परमात्मा का सिमरन करते रहो। हे नानक जी! (परमात्मा का सिमरन) परमात्मा की कृपा से ही मिलता है ॥३॥ हे भाई! जिस मनुष्य ने परमात्मा का नाम जपा है, उस से कुर्बान होना चाहिए। उस मनुष्य की संगत में (रह कर) सारा जगत संसार-समुँद्र से पार निकल जाता है। नानक जी कहते हैं – हे प्रभू! मेरी इच्छा पूरी करो जी, मैं (तेरे दर से) तेरे संत जनों के चरणों की धूल माँगता हूँ ॥४॥२॥