अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 15 अप्रैल 2024

रामकली महला ५ ॥ काहू बिहावै रंग रस रूप ॥ काहू बिहावै माइ बाप पूत ॥ काहू बिहावै राज मिलख वापारा ॥ संत बिहावै हरि नाम अधारा ॥१॥ रचना साचु बनी ॥ सभ का एकु धनी ॥१॥ रहाउ ॥ काहू बिहावै बेद अरु बादि ॥ काहू बिहावै रसना सादि ॥ काहू बिहावै लपटि संगि नारी ॥ संत रचे केवल नाम मुरारी ॥२॥ काहू बिहावै खेलत जूआ ॥ काहू बिहावै अमली हूआ ॥ काहू बिहावै पर दरब चोराए ॥ हरि जन बिहावै नाम धिआए ॥३॥ काहू बिहावै जोग तप पूजा ॥ काहू रोग सोग भरमीजा ॥ काहू पवन धार जात बिहाए ॥ संत बिहावै कीरतनु गाए ॥४॥ काहू बिहावै दिनु रैनि चालत ॥ काहू बिहावै सो पिड़ु मालत ॥ काहू बिहावै बाल पड़ावत ॥ संत बिहावै हरि जसु गावत ॥५॥ काहू बिहावै नट नाटिक निरते ॥ काहू बिहावै जीआइह हिरते ॥ काहू बिहावै राज महि डरते ॥ संत बिहावै हरि जसु करते ॥६॥ काहू बिहावै मता मसूरति ॥ काहू बिहावै सेवा जरूरति ॥ काहू बिहावै सोधत जीवत ॥ संत बिहावै हरि रसु पीवत ॥७॥ जितु को लाइआ तित ही लगाना ॥ ना को मूड़ु नही को सिआना ॥ करि किरपा जिसु देवै नाउ ॥ नानक ता कै बलि बलि जाउ ॥८॥३॥

अर्थ :-हे भाई ! परमात्मा सदा कायम रहने वाला है। यह सारी सृष्टि उसे की पैदा की हुई है। एक वही हरेक जीव का स्वामी है।1।रहाउ। (चाहे परमात्मा ही हरेक जीव का स्वामी है फिर भी) किसी मनुख की उम्र दुनिया के रंग-तमाशों, दुनिया के सुंदर रूपों और पदार्थों के रसों-स्वादों में बीत रही है; किसी की उम्र माँ पिता पुत्र आदि परिवार के मोह में गुजर रही है; किसी मनुख की उम्र राज भोगने, भूमी की मालिकी, व्यापार आदि करन में निकल रही है। (हे भाई ! सिर्फ) संत की उम्र परमात्मा के नाम के सहारे बीतती गुजरती है।1। हे भाई ! किसी मनुख की उम्र वेद आदि धर्म-पुस्तक पढ़ने और (धार्मिक) चर्चा में गुजर रही है; किसी मनुख की जिंदगी जिव्हा के स्वाद में बीत रही है; किसी की उम्र स्त्री के साथ काम-पूरती में निकलती जाती है। हे भाई ! संत ही सिर्फ परमात्मा के नाम में मस्त रहते हैं।2। हे भाई ! किसी मनुख की उम्र जूआ खेलते निकल जाती है; कोई मनुख अफीम आदि नशे का आदी हो जाता है उस की उम्र नशों में ही गुजरती है; किसी की उम्र पराया धन चुराते बीतती है; पर भगवान के भक्तों की उम्र भगवान का नाम सुमिरते हुए गुजरती है।3। हे भाई ! किसी मनुख की उम्र योग-साधन करते हुए, किसी की धूणी तपाते, किसी की देव-पूजा करते हुए गुजरती है; किसी मनुख की उम्र रोगों में, ग़मों में, अनेकों भटकन भटकने में बीतती है; किसी मनुख की सारी उम्र प्राणायाम करते हुए निकल जाती है; पर संत की उम्र गुजरती है परमात्मा की सिफ़त-सालाह के गीत गाते हुए।4।


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