अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 31 मार्च 2024

धनासरी महला ५ छंत ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ सतिगुर दीन दइआल जिसु संगि हरि गावीऐ जीउ ॥ अम्रितु हरि का नामु साधसंगि रावीऐ जीउ ॥ भजु संगि साधू इकु अराधू जनम मरन दुख नासए ॥ धुरि करमु लिखिआ साचु सिखिआ कटी जम की फासए ॥ भै भरम नाठे छुटी गाठे जम पंथि मूलि न आवीऐ ॥ बिनवंति नानक धारि किरपा सदा हरि गुण गावीऐ ॥१॥ निधरिआ धर एकु नामु निरंजनो जीउ ॥ तू दाता दातारु सरब दुख भंजनो जीउ ॥ दुख हरत करता सुखह सुआमी सरणि साधू आइआ ॥ संसारु सागरु महा बिखड़ा पल एक माहि तराइआ ॥ पूरि रहिआ सरब थाई गुर गिआनु नेत्री अंजनो ॥ बिनवंति नानक सदा सिमरी सरब दुख भै भंजनो ॥२॥ आपि लीए लड़ि लाइ किरपा धारीआ जीउ ॥ मोहि निरगुणु नीचु अनाथु प्रभ अगम अपारीआ जीउ ॥ दइआल सदा क्रिपाल सुआमी नीच थापणहारिआ ॥ जीअ जंत सभि वसि तेरै सगल तेरी सारिआ ॥ आपि करता आपि भुगता आपि सगल बीचारीआ ॥ बिनवंत नानक गुण गाइ जीवा हरि जपु जपउ बनवारीआ ॥३॥ तेरा दरसु अपारु नामु अमोलई जीउ ॥ निति जपहि तेरे दास पुरख अतोलई जीउ ॥ संत रसन वूठा आपि तूठा हरि रसहि सेई मातिआ ॥ गुर चरन लागे महा भागे सदा अनदिनु जागिआ ॥ सद सदा सिम्रतब्य सुआमी सासि सासि गुण बोलई ॥ बिनवंति नानक धूरि साधू नामु प्रभू अमोलई ॥४॥१॥

अर्थ: हे भाई! वह गुरू दीनों पर दया करने वाला है जिसकी संगति में (रह कर) परमात्मा की सिफत सालाह की जा सकती है। गुरू की संगति में आत्मिक जीवन देने वाला हरी-नाम सिमरा जा सकता है। हे भाई! गुरू की संगति में जा, (वहाँ) एक प्रभू का सिमरन कर, (सिमरन की बरकति से) जनम-मरण के दुख दूर हो जाते हैं। (जिस मनुष्य के माथे पर) धुर-दरगाह से (सिमरन करने के लिए) बख्शिश (का लेख) लिखा होता है, वही सदा-स्थिर हरी-नाम सिमरन की शिक्षा ग्रहण करता है, उसका आत्मिक मौत का फंदा काटा जाता है। हे भाई! सिमरन की बरकति से सारे डर सारे भरम नाश हो जाते, (मन मे बँधी हुई) गाँठ खुल जाती है, (फिर वह) आत्मिक मौत सहेड़ने वाले रास्ते पर बिल्कुल नहीं चलता। नानक विनती करता है– हे प्रभू! मेहर कर कि हम जीव सदा तेरी सिफत सालाह करते रहें।1। हे प्रभू! तू माया की कालिख से रहित है, तेरा नाम ही निआसरों का आसरा है। तू सब जीवों को दातें देने वाला है, तू सबके दुख नाश करने वाला है। हे (सब जीवों के) दुख नाश करने वाले! सबको पैदा करने वाले!, सारे सुखों के मालिक प्रभू! जो मनुष्य गुरू की शरण आता है, उसको तू इस बड़े मुश्किल संसार-समुंद्र से एक छिन में पार लंघा देता है। हे प्रभू! गुरू का दिया हुआ ज्ञान-अंजन जिस मनुष्य की आँखों में पड़ता है, उसको तू सब जगहों में दिखता है। नानक विनती करता है– हे सारे दुखों का नाश करने वाले! (मेहर कर) मैं सदा तेरा नाम सिमरता रहूँ।2। हे अपहुँच! हे बेअंत! जिन पर तू मेहर (की निगाह) करता है, उनको अपने लड़ लगा लेता है। मैं गुणहीन, नीच और अनाथ (भी तेरी शरण आया हूँ, मेरे पर भी मेहर कर)। हे दया के घर! हे कृपा के घर मालिक! हे नीचों को ऊँचे बनाने वाले प्रभू! सारे जीव तेरे वश में हैं, सारे तेरी संभाल में हैं। तू स्वयं (सब जीवों को) पैदा करने वाला है, (सब में व्यापक हो के) तू खुद (सारे पदार्थ) भोगने वाला है, तू आप सारे जीवों के लिए विचारें करने वाला है। नानक (तेरे दर पर) विनती करता है– हे प्रभू! (मेहर कर) मैं तेरे गुण गा के आत्मिक जीवन प्राप्त करता रहूँ।3। हे प्रभू! तू बेअंत है! तेरा नाम किसी (दुनियावी) कीमत से नहीं मिल सकता। हे ना तोले जा सकने वाले सर्व-व्यापक प्रभू! तेरे दास सदा तेरा नाम जपते रहते हैं। हे प्रभू! संतों पर तू प्रसन्न होता है, और उनकी जीभ पर आ बसता है, वे तेरे नाम के रस में मस्त रहते हैं। जो मनुष्य गुरू के चरणों में आ लगते हैं, वे भाग्यशाली हो जाते हैं, वे सदा हर वक्त (सिमरन की बरकति से माया के हमलों से) सचेत रहते हैं। नानक विनती करता है– हे सिमरनयोग्य मालिक! हे प्रभू! मुझे उस गुरू की चरण-धूड़ दे, जो तेरा अमूल्य नाम (सदा जपता है), जो सदा ही हरेक सांस के साथ तेरे गुण उचारता रहता है।4।1।


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