अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 22 दसंबर 2022

सलोकु मः १ ॥ जे करि सूतकु मंनीऐ सभ तै सूतकु होइ ॥ गोहे अतै लकड़ी अंदरि कीड़ा होइ ॥ जेते दाणे अंन के जीआ बाझु न कोइ ॥ पहिला पाणी जीउ है जितु हरिआ सभु कोइ ॥ सूतकु किउ करि रखीऐ सूतकु पवै रसोइ ॥ नानक सूतकु एव न उतरै गिआनु उतारे धोइ ॥१॥

अगर सूतक को मान लें (भाव, अगर मान लें की सूतक का भ्रम रखना चाहिये, तो यह भी याद रखो की इस तरह) सूतक सब जगह होता है, गोभर और लकड़ी के अंदर भी जीव होते हैं, (भाव पैदा होते रहते हैं); अन्न के जितने भी दाने हैं, इन मैं से कोई भी दाना बिना जीव के नहीं है। पानी खुद भी एक जीव है, क्योंकि इस से हरेक जीव हरा (भाव, जीवन वाला) होता है। सूतक कैसे रखा जा सकता है? (भाव, सूतक का भ्रम पूरे तौर पर मानना बहुत ही कठिन है, क्योंकि इस प्रकार तरह तो हर समय) रसोई में सूतक पड़ा रहता है। गुरू नानक जी कहते हैं, हे नानक! इस प्रकार (भाव, भ्रम में पड़ने से) सूतक (मन से) नहीं उतरता, इस को (प्रभु का) ज्ञान ही धो कर उत्तार सकता है॥१॥


Related Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Begin typing your search term above and press enter to search. Press ESC to cancel.

Back To Top