अमृत वेले का हुक्मनामा – 26 फरवरी 2024
सलोकु मः ३ ॥ नानक नावहु घुथिआ हलतु पलतु सभु जाइ ॥ जपु तपु संजमु सभु हिरि लइआ मुठी दूजै भाइ ॥ जम दरि बधे मारीअहि बहुती मिलै सजाइ ॥१॥ मः ३ ॥ संता नालि वैरु कमावदे दुसटा नालि मोहु पिआरु ॥ अगै पिछै सुखु नही मरि जमहि वारो वार ॥ त्रिसना कदे न बुझई दुबिधा होइ खुआरु ॥ मुह काले तिना निंदका तितु सचै दरबारि ॥ नानक नाम विहूणिआ ना उरवारि न पारि ॥२॥
हे नानक! नाम से दूर हो चुके मनुख का लोक परलोक सब व्यर्थ जाता है, उनका जप ताप संजम सब नास हो जाता है, और माया के मोह में (उनकी मति) ठगी जाती है, जम द्वार पर बांध मारते हैं और (उनको)बहुत सजा मिलती है।१। निंदक मनुख संत जानो से वैर करते हैं और दुर्जनों से मोह प्रेम रखते हैं; उनको लोक परलोक में कहीं भी सुख नहीं मिलता, बार बार दुबिधा में खुआर (परेशान) हो हो करके, जन्म लेते हैं और मरते हैं; उनकी तृष्णा कभी कम नहीं होती; हरी के सच्चे दरबार में उन निंदा करने वालो के मुँह काले होते हैं। हे नानक! नाम से दूर रहने वालो को न ही इस लोक में और न ही परलोक में (सहारा) मिलता हैं।२।