अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 25 जनवरी 2024

तिलंग महला १ घरु ३ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ इहु तनु माइआ पाहिआ पिआरे लीतड़ा लबि रंगाए ॥ मेरै कंत न भावै चोलड़ा पिआरे किउ धन सेजै जाए ॥१॥ हंउ कुरबानै जाउ मिहरवाना हंउ कुरबानै जाउ ॥ हंउ कुरबानै जाउ तिना कै लैनि जो तेरा नाउ ॥ लैनि जो तेरा नाउ तिना कै हंउ सद कुरबानै जाउ ॥१॥ रहाउ ॥ काइआ रंङणि जे थीऐ पिआरे पाईऐ नाउ मजीठ ॥ रंङण वाला जे रंङै साहिबु ऐसा रंगु न डीठ ॥२॥ जिन के चोले रतड़े पिआरे कंतु तिना कै पासि ॥ धूड़ि तिना की जे मिलै जी कहु नानक की अरदासि ॥३॥ आपे साजे आपे रंगे आपे नदरि करेइ ॥ नानक कामणि कंतै भावै आपे ही रावेइ ॥४॥१॥३॥

अर्थ: राग तिलंग, घर ३ में गुरु नानक देव जी की बाणी। अकाल पुरख एक है और सतिगुरु की कृपा द्वारा मिलता है। जिस जीव-स्त्री के इस संसार को माया (के मोह की लाग लगी हो, और फिर उस ने इस को पूरा जिव्हा के चस्के में रंग लिया हो, वह जीव-स्त्री खसम प्रभू के चरणों में नहीं पहुँच सकती, क्योंकि (जीवन का) यह चोला (यह शरीर, यह जीवन) खसम प्रभू को पसंद नहीं आता ॥१॥ हे मेहरबान प्रभू! मैं कुर्बान जाता हूँ, मैं सदके जाता हूँ उन से जो तेरा नाम सिमरते हैं। जो व्यक्ति तेरा नाम लेता है, मैं उस से सदा कुर्बान जाता हूँ ॥१॥ रहाउ ॥ (पर, हाँ!) अगर यह शरीर (निलारी की) मट्टी बन जाए, और हे सजन! अगर इस में मजीठ जैसे पक्के रंग वाला प्रभू का नाम रंग डाला जाए, फिर मालिक प्रभु स्वयं निलारी (बन के जीव-स्त्री के मन को) रंग (का गोता) दे, तो ऐसा रंग चड़ता है जो जो पहले कभी देखा न हो ॥੨॥ हे प्यारे (सजन!) जिन जीव स्त्रियों के (शरीर-) चोले (जीवन नाम-रंग से) रंगें गए हैं,खसम-प्रभू (सदा) उनके पास (वसता) है। हे सजन! नानक तरफों उन्हा पास बेनती कर, भला कहीं नानक को उनके चरनों की धूड़ मिल जाए ॥३॥ जिस जीव स्त्री पर प्रभू आप मेहर की नज़र करता है उसको वह आप ही संवारदा है और आप ही (नाम के) रंग में रंगता है। नानक जी! वह जीव-स्त्री खसम-प्रभू को प्यारी लगती है, उसको प्रभू आप ही अपने चरनों में जोड़ता है ॥४॥१॥३॥


Related Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Begin typing your search term above and press enter to search. Press ESC to cancel.

Back To Top