संधिआ वेले का हुक्मनामा – 9 दसंबर 2022

धनासरी मः ५ ॥ जब ते दरसन भेटे साधू भले दिनस ओइ आए ॥ महा अनंदु सदा करि कीरतनु पुरख बिधाता पाए ॥१॥ अब मोहि राम जसो मनि गाइओ ॥ भइओ प्रगासु सदा सुखु मन महि सतिगुरु पूरा पाइओ ॥१॥ रहाउ ॥ गुण निधानु रिद भीतरि वसिआ ता दूखु भरम भउ भागा ॥ भई परापति वसतु अगोचर राम नामि रंगु लागा ॥२॥ चिंत अचिंता सोच असोचा सोगु लोभु मोहु थाका ॥ हउमै रोग मिटे किरपा ते जम ते भए बिबाका ॥३॥ गुर की टहल गुरू की सेवा गुर की आगिआ भाणी ॥ कहु नानक जिनि जम ते काढे तिसु गुर कै कुरबाणी ॥४॥४॥

अर्थ :-हे भाई ! मुझे पूरा गुरु मिल गया है, (इस लिए उस की कृपा के साथ) अब मैं परमात्मा की सिफ़त-सालाह (अपने) मन में गा रहा हूँ, (मेरे अंदर आत्मिक जीवन का) रोशनी हो गई है, मेरे मन में सदा आनंद बना रहता है।1।रहाउ। हे भाई ! जब से गुरु के दर्शन प्राप्त हुए हैं, मेरे इस प्रकार के अच्छे दिन आ गए कि परमात्मा की सिफ़त-सालाह कर कर के सदा मेरे अंदर सुख बना रहता है, मुझे सर्व-व्यापक करतार मिल गया है।1। (हे भाई ! गुरु की कृपा के साथ जब से) गुणों का खजाना परमात्मा मेरे हृदय में आ बसा है , तब से मेरा दु:ख भ्रम डर दूर हो गया है। परमात्मा के नाम में मेरा प्यार बन गया है, मुझे (वह उॅतम) चीज प्राप्त हो गई है जिस तक ज्ञान-इन्द्रियों की पहुंच नहीं हो सकती।2। (हे भाई ! गुरु के दर्शन की बरकत के साथ) मैं सभी चिंताँ और सोचों से बच गया हूँ, (मेरे अंदर से) गम खत्म हो गया है, लोभ खत्म हो गया है, मोह दूर हो गया है। (गुरु की) कृपा के साथ (मेरे अंदर से) हऊमै आदि रोग मिट गए हैं, मुझे यम-राज से भी कोई डर नहीं लगता।3। हे भाई ! अब मुझे गुरु की टहल-सेवा, गुरु की रजा ही प्यारी लगती है। हे नानक ! बोल-(हे भाई ! मैं उस गुरु से सदके जाता हूँ, जिस ने मुझे यमों से बचा लिया है।4।4।


Related Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Begin typing your search term above and press enter to search. Press ESC to cancel.

Back To Top