अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 1 अक्टूबर 2023

सोरठि महला ५ ॥ चरन कमल सिउ जा का मनु लीना से जन त्रिपति अघाई ॥ गुण अमोल जिसु रिदै न वसिआ ते नर त्रिसन त्रिखाई ॥१॥ हरि आराधे अरोग अनदाई ॥ जिस नो विसरै मेरा राम सनेही तिसु लाख बेदन जणु आई ॥ रहाउ ॥ जिह जन ओट गही प्रभ तेरी से सुखीए प्रभ सरणे ॥ जिह नर बिसरिआ पुरखु बिधाता ते दुखीआ महि गनणे ॥२॥ जिह गुर मानि प्रभू लिव लाई तिह महा अनंद रसु करिआ ॥ जिह प्रभू बिसारि गुर ते बेमुखाई ते नरक घोर महि परिआ ॥३॥ जितु को लाइआ तित ही लागा तैसो ही वरतारा ॥ नानक सह पकरी संतन की रिदै भए मगन चरनारा ॥४॥४॥१५॥

अर्थ :- हे भाई ! जिन मनुष्यों का मन भगवान के कमल के फूल फूलों जैसे कोमल चरणों के साथ परच जाता है, वह मनुख (माया की तरफ से) पूरे तौर पर संतोखी रहते हैं। पर जिस जिस मनुख के हृदय में परमात्मा के अमोलक गुण नहीं बसते , वह मनुख माया की त्रिशना में फसे रहते हैं।1। हे भाई ! परमात्मा का आराधन करने के साथ नरोए हो जाते हैं, आत्मिक अनंद बना रहता है। पर जिस मनुख को मेरा प्यारा भगवान भुल जाता है, उस ऊपर (इस प्रकार) जानो (जैसे) लाखों तकलीफें आ पड़ती हैं।रहाउ। हे भगवान ! जिन मनुष्यों ने तेरा सहारा लिया,वह तेरी शरण में रह के सुख मनाते हैं। पर,हे भाई ! जिन मनुष्यों को सर्व-व्यापक करतार भुल जाता है, वह मनुख दुखीयों में गिने जाते हैं।2। हे भाई ! जिन मनुष्यों ने गुरु की आज्ञा मान कर के परमात्मा में सुरति जोड़ ली, उन्हों ने बड़ा आनंद बड़ा रस मनाया। पर जो मनुख परमात्मा को भुला के गुरु की तरफ से मुँह मोड़ी रखते हैं वह भयानक नरक में पड़े रहते हैं।3। हे नानक ! (जीवों के क्या वश ?) जिस काम में परमात्मा किसी जीव को लगाता है उसे काम में ही वह लगा रहता है, हरेक जीव उसी प्रकार काम करता है। जिन मनुष्यों ने (भगवान की प्रेरणा के साथ) संत जनों का सहारा लिया है वह अंदर से भगवान के चरणों में ही मस्त रहते हैं।4।4।15।


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