संधिआ वेले का हुक्मनामा – 23 जुलाई 2023

जैतसरी महला ४ ॥ जिन हरि हिरदै नामु न बसिओ तिन मात कीजै हरि बांझा ॥ तिन सुंञी देह फिरहि बिनु नावै ओइ खपि खपि मुए करांझा ॥१॥ मेरे मन जपि राम नामु हरि माझा ॥ हरि हरि क्रिपालि क्रिपा प्रभि धारी गुरि गिआनु दीओ मनु समझा ॥ रहाउ ॥ हरि कीरति कलजुगि पदु ऊतमु हरि पाईऐ सतिगुर माझा ॥ हउ बलिहारी सतिगुर अपुने जिनि गुपतु नामु परगाझा ॥२॥

हे भाई! जिन मनुखों के हृदये में परमात्मा का नाम नहीं बस्ता, उनकी माँ को हरी बाँझ ही कर दिया कर (तो अच्छा है, क्योंकि) उनका सरीर हरी नाम से सूना रहता है, वह नाम के बिना ही रह रहे हैं, और कुछ कुछ खुआर हो हो कर आत्मिक मौत बुलाते रहते हैं॥१॥ हे मेरे मन! उस परमात्मा का नाम जपा कर, जो तेरे अंदर ही बस रहा है। हे भाई! कृपाल प्रभु ने (जिस मनुख ऊपर) कृपा की उस को गुरु ने आत्मिक जीवन की समझ दी उस का मन (नाम जपने की कदर) समझ गया॥रहाउ॥ हे भाई! जगत में परमात्मा की सिफत-सलाह ही सब से उच्चा दर्जा है, (पर) परमात्मा गुरु के द्वारा (ही) मिलता है। हे भाई! मैं अपने गुरु से कुर्बान जाता हूँ जिस ने मेरे अंदर ही छिपे बैठे परमात्मा के नाम प्रकट कर दिया॥२॥


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