अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 11 जुलाई 2023

सलोकु मः ३ ॥ परथाइ साखी महा पुरख बोलदे साझी सगल जहानै ॥ गुरमुखि होइ सु भउ करे आपणा आपु पछाणै ॥ गुर परसादी जीवतु मरै ता मन ही ते मनु मानै ॥ जिन कउ मन की परतीति नाही नानक से किआ कथहि गिआनै ॥१॥ मः ३ ॥ गुरमुखि चितु न लाइओ अंति दुखु पहुता आइ ॥ अंदरहु बाहरहु अंधिआं सुधि न काई पाइ ॥ पंडित तिन की बरकती सभु जगतु खाइ जो रते हरि नाइ ॥ जिन गुर कै सबदि सलाहिआ हरि सिउ रहे समाइ ॥ पंडित दूजै भाइ बरकति न होवई ना धनु पलै पाइ ॥ पड़ि थके संतोखु न आइओ अनदिनु जलत विहाइ ॥ कूक पूकार न चुकई ना संसा विचहु जाइ ॥ नानक नाम विहूणिआ मुहि कालै उठि जाइ ॥२॥ पउड़ी ॥ हरि सजण मेलि पिआरे मिलि पंथु दसाई ॥ जो हरि दसे मितु तिसु हउ बलि जाई ॥ गुण साझी तिन सिउ करी हरि नामु धिआई ॥ हरि सेवी पिआरा नित सेवि हरि सुखु पाई ॥ बलिहारी सतिगुर तिसु जिनि सोझी पाई ॥१२॥

अर्थ: महा पुरुख किसी के सम्बन्ध में शिक्षा का बचन बोलते है (पर वेह शिक्षा) सार संसार के लिए बराबर होती हा, जो मनुख सतगुरु के सन्मुख होता है, वह (सुन के) प्रभु का डर (हिरदय में धारण) करता है, और अपने आप की खोह करता है। सतगुरु की कृपा से वह संसार में रहता हुआ माया से दूर रहता है, तो उसका मन अपने आप में रहता है (बहार भटकने से हट जाता है)। हे नानक! जिनका मन पसीजा नहीं, उनको ज्ञान की बातें करने का कोई लाभ नहीं होता।१। हे पंडित! जिन मनुष्यों ने सतिगुरू के सन्मुख हो के (हरी में) मन नहीं जोड़ा, उन्हें आखिर दुख ही होता है। उन अंदर व बाहर के अंधों को कोई समझ नहीं आती। (पर) हे पंडित! जो मनुष्य हरी के नाम में रंगे हुए हैं, जिन्होंने सतिगुरू के शबद के द्वारा सिफत सालाह की है और हरी में लीन हैं, उनकी कमाई की बरकति सारा संसार खाता है। हे पण्डित! माया के मोह में (फसे रहने से) बरकति नहीं हो सकती (आत्मिक जीवन फलता-फूलता नहीं) और ना ही नाम-धन मिलता है; पढ़-पढ़ के थक जाते हैं, पर संतोष नहीं आता और हर वक्त (उम्र) जलते हुए गुजरती है; उनकी गिला-गुजारिश खत्म नहीं होती और मन में से चिंता नहीं जाती। हे नानक! नाम से वंचित रहने के कारण मनुष्य काला मुँह ले के ही (संसार से) उठ जाता है।2। हे प्यारे हरी! मुझे गुरमुख मिला, जिनको मिल के मैं तेरा राह पूछूँ। जो मनुष्य मुझे हरी मित्र (की खबर) बताए, मैं उससे सदके हूँ। उनके साथ मैं गुणों की सांझ डालूँ और हरी का नाम सिमरूँ। मैं सदा प्यारे हरी को सिमरूँ और सिमर के सुख लूँ। मैं सदके हूँ उस सतिगुरू से जिसने (परमात्मा की) समझ बख्शी है।12।


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