अमृत वेले का हुक्मनामा – 30 जून 2023
वडहंसु महला ३ ॥ मन मेरिआ तू सदा सचु समालि जीउ ॥ आपणै घरि तू सुखि वसहि पोहि न सकै जमकालु जीउ ॥ कालु जालु जमु जोहि न साकै साचै सबदि लिव लाए ॥ सदा सचि रता मनु निरमलु आवणु जाणु रहाए ॥ दूजै भाइ भरमि विगुती मनमुखि मोही जमकालि ॥ कहै नानकु सुणि मन मेरे तू सदा सचु समालि ॥१॥
हे मेरे मन! सदा कायम रहने वाले परमात्मा को तूँ हमेशा अपने अंदर बसाय रख, (इस की बरकत से) तू अपने अंदर आत्मा में आनंद से रहेगा, आत्मिक मौत तेरे ऊपर जौर नहीं डाल सकेगी । जो मनुख प्रभु में, गुरु शब्द में, सुरत जोड़े रखता है, मौत उसकी तरफ नहीं देख सकती, उस का मन परमात्मा के रंग में रंगा रहके पवित्र हो जाता है, उस का जनम मरण का दौर ख़तम हो जाता है। परन्तु अपने मन के पीछे चलने वाली मनुखता माया के प्यार व् भटकना में परेशान रहती है, आत्मिक मौत ने उसे अपने मोह में फांस रखा होता है। (इस लिए ) नानक कहते हैं, हे मेरे मन! (मेरी बात)सुन, तू सदा थिर प्रभु को अपने मन में बसाये रख। १।