संधिआ वेले का हुक्मनामा – 27 जून 2023

सूही महला ५ ॥ बुरे काम कउ ऊठि खलोइआ ॥ नाम की बेला पै पै सोइआ ॥१॥ अउसरु अपना बूझै न इआना ॥ माइआ मोह रंगि लपटाना ॥१॥ रहाउ ॥ लोभ लहरि कउ बिगसि फूलि बैठा ॥ साध जना का दरसु न डीठा ॥२॥ कबहू न समझै अगिआनु गवारा ॥ बहुरि बहुरि लपटिओ जंजारा ॥१॥ रहाउ ॥ बिखै नाद करन सुणि भीना ॥ हरि जसु सुनत आलसु मनि कीना ॥३॥ द्रिसटि नाही रे पेखत अंधे ॥ छोडि जाहि झूठे सभि धंधे ॥१॥ रहाउ ॥ कहु नानक प्रभ बखस करीजै ॥ करि किरपा मोहि साधसंगु दीजै ॥४॥ तउ किछु पाईऐ जउ होईऐ रेना ॥ जिसहि बुझाए तिसु नामु लैना ॥१॥ रहाउ ॥२॥८॥

अर्थ: हे भाई! मूर्ख मनुष्य मंदे काम करने के लिए (तो) जल्दी तैयार हो जाता है, परन्तु परमात्मा का नाम सिमरन के समय (अमृत समय) गहरी नींद में पड़ा रहता है (बे-परवाह हो कर सोया रहता है) ॥१॥ हे भाई! बेसमझ मनुष्य यह नहीं समझता कि यह मनुष्या जीवन ही अपना असली मौका है (जब प्रभू को याद किया जा सकता है) (मूर्ख मनुष्य) माया के मोह की लगन में मस्त रहता है ॥१॥ रहाउ ॥ हे भाई! (अंदर उठ रही) लोभ की लहर के कारण (माया के लोभ की आस पर) ख़ुश़ हो कर फूल फूल बैठता है, कभी संत जनों का दर्शन (भी) नहीं करता ॥२॥ हे भाई! आत्मिक जीवन की सूझ से वंचित मूर्ख मनुष्य (अपने असल भले की बात) कभी भी नहीं समझता, दुबारा दुबारा (माया के) धंधों में लगा रहता है ॥१॥ रहाउ ॥ हे भाई! (माया के मोह में अंधा हुआ मनुष्य) विषय-विकारों के गीत कानों से सुन कर ख़ुश़ होता है। परन्तु परमात्मा की सिफ़त-सलाह सुनने को मन में आलस करता है ॥३॥ हे अंधे! तूँ आँखों से (क्यों) नहीं देखता, कि यह सभी (दुनिया वाले) धंधे छोड़ कर (आखिर यहाँ से) चला जाएँगा ? ॥१॥ रहाउ ॥ नानक जी कहते हैं – हे प्रभू! (मेरे ऊपर) मेहर करो। कृपया कर के मुझे गुरमुखों की संगत बख़्श़ो ॥४॥ हे भाई! (साध संगत में से भी) तब ही कुछ हासिल कर सकता हैं, जब गुरमुखों के चरणों की धूल बन जाएं। हे भाई! जिस मनुष्य को परमात्मा (चरण-धूल होने की) सूझ बख़्श़ता है, वह (साध संगत में टिक कर उस का) नाम सिमरता है ॥१॥ रहाउ ॥२॥८॥


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