अमृत वेले का हुक्मनामा – 16 नवंबर 2022
सूही महला ४ घरु ६ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ नीच जाति हरि जपतिआ उतम पदवी पाइ ॥ पूछहु बिदर दासी सुतै किसनु उतरिआ घरि जिसु जाइ ॥१॥ हरि की अकथ कथा सुनहु जन भाई जितु सहसा दूख भूख सभ लहि जाइ ॥१॥ रहाउ ॥ रविदासु चमारु उसतति करे हरि कीरति निमख इक गाइ ॥ पतित जाति उतमु भइआ चारि वरन पए पगि आइ ॥२॥ नामदेअ प्रीति लगी हरि सेती लोकु छीपा कहै बुलाइ ॥ खत्री ब्राहमण पिठि दे छोडे हरि नामदेउ लीआ मुखि लाइ ॥३॥ जितने भगत हरि सेवका मुखि अठसठि तीरथ तिन तिलकु कढाइ ॥ जनु नानकु तिन कउ अनदिनु परसे जे क्रिपा करे हरि राइ ॥४॥१॥८॥
अर्थ: राग सूही, घर ६ में गुरू रामदास जी की बाणी। अकाल पुरख एक है और सतिगुरू की कृपा द्वारा मिलता है। हे भाई! नीची जात वाला मनुष्य भी परमात्मा का नाम जपने से ऊची आतमिक अवस्था का दर्जा हासिल कर लेता है। (अगर यकीन नहीं आता, तो किसी से) दासी के पुत्र बिदर की बात पुछ देखो। उस बिदर के घर में कृष्ण जी जा कर ठहरे थे ॥१॥ हे सज्जनों! परमात्मा की अश्रचर्ज सिफ़त-सलाह सुना करो, जिस की बरकत से प्रत्येक प्रकार का सहम प्रत्येक प्रकार का दुःख दूर हो जाता है, (माया की) भुख मिट जाती है ॥१॥ रहाउ ॥ हे भाई! (भगत) रविदास (जात का) चमार (था, वह परमात्मा की) सिफ़त-सलाह करता था, वह हर समय प्रभू की कीर्ती गाता रहता था। नीची जात का रविदास महा पुरख बन गया। चौहां वर्णों के मनुष्य उस के पैरी आ कर लग गए ॥२॥ हे भाई! (भगत) नामदेव की परमात्मा के साथ प्रीत बन गई। जगत उस को छींबा कह कर बुलाया करता था। परमात्मा ने खत्रियों ब्राह्मणों को पिठ दिखा दी, और, नामदेव को माथे से लगाया था ॥३॥ हे भाई! परमात्मा के जितने भी भगत हैं, सेवक हैं, उन के माथे पर अठाहठ तीर्थ तिलक लगाते हैं (सारे ही तीर्थ भी उनका आदर मान करते हैं)। हे भाई! अगर प्रभू-पातिश़ाह मेहर करे, तो दास नानक हर समय उन (भगतों सेवकों) के चरण छुता रहे ॥४॥१॥८॥