संधिआ वेले का हुक्मनामा – 6 जून 2023

धनासिरी महला ५ ॥ अउखधु तेरो नामु दइआल ॥ मोहि आतुर तेरी गति नही जानी तूं आपि करहि प्रतिपाल ॥१॥ रहाउ ॥ धारि अनुग्रहु सुआमी मेरे दुतीआ भाउ निवारि ॥ बंधन काटि लेहु अपुने करि कबहू न आवह हारि ॥१॥ तेरी सरनि पइआ हउ जीवां तूं सम्रथु पुरखु मिहरवानु ॥ आठ पहर प्रभ कउ आराधी नानक सद कुरबानु ॥२॥१८॥

अर्थ :-हे दया के घर भगवान ! तेरा नाम (मेरे हरेक रोग की) दवाई है, पर मैं दुखीए को समझा ही नहीं थी कि तूं कितनी ऊँची आत्मिक अवस्था वाला हैं, (फिर भी) तूं आप मेरी पालना करता हैं ।1।रहाउ । हे मेरे स्वामी ! मेरे ऊपर कृपा कर (मेरे अंदर से) माया का मोह दूर कर । हे भगवान ! हमारे (माया के मोह के) बंधन काट के हमे आपने बना लो, हम कभी (मनुख जन्म की बाजी) हार के ना आए।1। हे नानक ! (बोल-हे भगवान !) तेरी शरण में आकर मैं आत्मिक जीवन वाला बना रहता हूँ (मुझे अपनी शरण में रख) तूं सभी ताकतों का स्वामी हैं, तूं सर्व-व्यापक हैं, तूं (सब ऊपर) दया करने वाला हैं । (हे भाई ! मेरी यही अरदास है कि) मैं आठो पहर परमात्मा का आराधन करता रहूँ, मैं उस से सदा सदके जाता हूँ।2।18।


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