संधिआ वेले का हुक्मनामा – 11 नवंबर 2022
धनासिरी महला ५ ॥ अब हरि राखनहारु चितारिआ ॥ पतित पुनीत कीए खिन भीतरि सगला रोगु बिदारिआ ॥१॥ रहाउ ॥ गोसटि भई साध कै संगमि काम क्रोधु लोभु मारिआ ॥ सिमरि सिमरि पूरन नाराइन संगी सगले तारिआ ॥१॥ अउखध मंत्र मूल मन एकै मनि बिस्वासु प्रभ धारिआ ॥ चरन रेन बांछै नित नानकु पुनह पुनह बलिहारिआ ॥२॥१६॥
अर्थ: हे भाई! जिन मनुष्यों ने इस मानस जन्म में (विकारों से) बचा सकने वाले परमात्मा को याद करना शुरू कर दिया, परमात्मा ने एक छिन में उन्हें विकारियों से पवित्र जीवन वाले बना दिया, उनके सारे रोग काट दिए।1। रहाउ। हे भाई! गुरू की संगति में जिन मनुष्यों का मेल हो गया, (परमात्मा ने उनके अंदर से) काम-क्रोध-लोभ मार दिया। सर्व-व्यापक परमात्मा का नाम बार-बार सिमर के उन्होंने अपने सारे साथी भी (संसार-समंद्र से) पार लंघा लिए।1। हे मन! परमात्मा का एक नाम ही सारी दवाओं का मूल है, सारे मंत्रों का मूल है। जिस मनूष्य ने अपने मन में परमात्मा के लिए श्रद्धा धारण कर ली है, नानक उसके चरणों की धूड़ सदा मांगता है, नानक उस मनुष्य से सदा सदके जाता है।2।16।
WaheGuruJi Ka Khalsa WaheGuruJi Ki Fateh