अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 17 अप्रैल 2023

सलोक मः ५ ॥ नदी तरंदड़ी मैडा खोजु न खु्मभै मंझि मुहबति तेरी ॥ तउ सह चरणी मैडा हीअड़ा सीतमु हरि नानक तुलहा बेड़ी ॥१॥ मः ५ ॥ जिन्हा दिसंदड़िआ दुरमति वंञै मित्र असाडड़े सेई ॥हउ ढूढेदी जगु सबाइआ जन नानक विरले केई ॥२॥ पउड़ी ॥ आवै साहिबु चिति तेरिआ भगता डिठिआ ॥ मन की कटीऐ मैलु साधसंगि वुठिआ ॥ जनम मरण भउ कटीऐ जन का सबदु जपि ॥ बंधन खोलन्हि संत दूत सभि जाहि छपि ॥ तिसु सिउ लाइन्हि रंगु जिस दी सभ धारीआ ॥ ऊची हूं ऊचा थानु अगम अपारीआ ॥ रैणि दिनसु कर जोड़ि सासि सासि धिआईऐ ॥ जा आपे होइ दइआलु तां भगत संगु पाईऐ
॥९॥

(संसार) नदी में तैरते मेरा पैर ( मोह के कीचड में ) नहीं गुस्ता , क्योकि मेरे दिल में तेरी प्रीत है। हे पति (प्रभु) ! मेंने अपना यह निमन्हा सा दिल तेरे चरणों में परो लिया है, हे हरी ! ( संसार- समुन्दर में तेरने के लिए , तू ही ) नानक का तुला है और बेडी है ॥੧॥ हमारे (असली) मित्र वही मानुष है जिनका दीदार होने से गलत मत (सोच) दूर हो जाती है, पर , गुरू नानक जी स्वयं को कहते हैं, हे दास नानक ! में सारा जगत देख लिया है , कोई विरले ( इस प्रकार के मनुषः मिलते है) ॥੨॥ ( हे प्रभु!) तेरे भगतो के दर्शन करने सेतू मालिक हमारे मन में आ बस्ता है। साध सांगत में हमारी मन की मेल कट जाती है, और फिर सिफत -सलाह की बाणी पड़ने से सेवक का जनम मरण का ( भाव, सारी उम्र का ) डर कट जाता है। क्योकि संत ( जिस मनुषः के माया वाले ) बंधन खोलते है ( उस के विकार रूप ) सारे जिन भुत छुप जाते है। यह सारा संसार जिस प्रभु का बनाया हुआ है , जिस का अस्थान सब से उचा है, जो बहुत बेअंत है, संत उस परमात्मा के साथ ( हमारा ) प्यार जोड़ देते है। दिन रात हर साँस के साथ हाथ जोड़ के प्रभु का सिमरन करना चाहिए । जब प्रभु सवम दयाल होता तो उस के भगतो की सांगत प्राप्त होती है ॥९॥


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