अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 2 अप्रैल 2023

बिलावलु महला ४ असटपदीआ घरु ११ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ आपै आपु खाइ हउ मेटै अनदिनु हरि रस गीत गवईआ ॥ गुरमुखि परचै कंचन काइआ निरभउ जोती जोति मिलईआ ॥१॥ मै हरि हरि नामु अधारु रमईआ ॥ खिनु पलु रहि न सकउ बिनु नावै गुरमुखि हरि हरि पाठ पड़ईआ ॥१॥ रहाउ ॥ एकु गिरहु दस दुआर है जा के अहिनिसि तसकर पंच चोर लगईआ ॥ धरमु अरथु सभु हिरि ले जावहि मनमुख अंधुले खबरि न पईआ ॥२॥कंचन कोटु बहु माणकि भरिआ जागे गिआन तति लिव लईआ ॥ तसकर हेरू आइ लुकाने गुर कै सबदि पकड़ि बंधि पईआ ॥३॥ हरि हरि नामु पोतु बोहिथा खेवटु सबदु गुरु पारि लंघईआ ॥ जमु जागाती नेड़ि न आवै ना को तसकरु चोरु लगईआ ॥४॥हरि गुण गावै सदा दिनु राती मै हरि जसु कहते अंतु न लहीआ ॥ गुरमुखि मनूआ इकतु घरि आवै मिलउ गुोपाल नीसानु बजईआ ॥५॥ नैनी देखि दरसु मनु त्रिपतै स्रवन बाणी गुर सबदु सुणईआ ॥ सुनि सुनि आतम देव है भीने रसि रसि राम गोपाल रवईआ ॥६॥ त्रै गुण माइआ मोहि विआपे तुरीआ गुणु है गुरमुखि लहीआ ॥ एक द्रिसटि सभ सम करि जाणै नदरी आवै सभु ब्रहमु पसरईआ ॥७॥ राम नामु है जोति सबाई गुरमुखि आपे अलखु लखईआ ॥ नानक दीन दइआल भए है भगति भाइ हरि नामि समईआ ॥८॥१॥४॥

हे भाई! सुंदर राम का हरी-नाम मेरे लिए(मेरी जिंदगी का) सहारा (बन गया) है, (अब) मैं उसके नाम के बिना एक छिन एक पल भी नहीं रह सकता। गुरू की शरण आकर (मैं तो) हरी-नाम का पाठ (ही) पढ़ता रहता हूँ।1। रहाउ। हे भाई! जो मनुष्य हर वक्त हरी-नाम रस के गीत गाता रहता है, जो मनुष्य गुरू की शरण पड़ के (हरी-नाम में) पसीजा रहता है, वह मनुष्य (परमात्मा के) स्वयं में अपना स्वयं विलीन कर के (अपने अंदर से) अहंकार मिटा लेता है, (विकारों से बचे रहने के कारण) उसका शरीर सोने जैसा शुद्ध हो जाता है, उसकी जिंद निर्भय प्रभू की ज्योति में लीन रहती है।1। हे भाई! (मनुष्य का ये शरीर) एक ऐसा घर है जिसके दस दरवाजे हैं, (इन दरवाजों से) दिन-रात- (काम क्रोध लोभ मोह अहंकार) पाँच चोर सेंध लगाए रखते हैं, (इसके अंदर से) आत्मिक जीवन वाला सारा धन चुरा के ले जाते हैं। (आत्मिक जीवन द्वारा) अंधे हो चुके मन के मुरीद मनुष्य को (अपने लूटे जाने का) पता नहीं लगता।2। हे भाई! (यह मानव शरीर, जैसे) सोने का किला (उच्च आत्मिक गुणों के) मोतियों से भरा हुआ है, (इन हीरों को चुराने के लिए लूटने के लिए कामादिक) चोर डाकू आकर (इसमें) छुपे रहते हैं। जो मनुष्य आत्मिक जीवन के स्त्रोत प्रभू में सुरति जोड़ के सचेत रहते हैं, वह मनुष्य गुरू के शब्द के द्वारा (इन चोर-डाकूओं को) पकड़ के बाँध लेते हैं।3।हे भाई! परमात्मा का नाम जहाज है जहाज़। (उस जहाज़ का) मल्लाह (गुरू का) शब्द है, (जो मनुष्य इस जहाज़ का आसरा लेता है, उसको) गुरू (विकारों भरे संसार-समुंद्र से) पार निकाल लेता है। जमराज मूसलिया (भी उसके) नजदीक नहीं आता, (कामादिक) कोई चोर भी सेंध नहीं लगा सकता।4। हे भाई! (मेरा मन अब) सदा दिन रात परमात्मा के गुण गाता रहता है, मैं प्रभू की सिफत-सालाह करते-करते (सिफत का) अंत नहीं पा सकता। गुरू की शरण पड़ कर (मेरा यह) मन प्रभू के चरणों में ही टिका रहता है, मैं लोक लाज दूर करके जगत पालक प्रभू को मिला रहता हूँ।5। हे भाई! आँखों से (हर जगह प्रभू के) दर्शन करके (मेरा) मन (और वासना से) तृप्त रहता है, (मेरे) कान गुरू की बाणी गुरू के शबद को (ही) सुनते रहते हैं। (प्रभू की सिफत सालाह) सुन-सुन के (मेरी) जिंद (नाम-रस में) भीगी रहती है, (मैं) बड़े आनंद से राम-गोपाल के गुण गाता रहता हूँ।6। हे भाई! माया के तीन गुणों के असर तले रहने वाले जीव (सदा) माया के मोह में फसे रहते हैं। गुरू के सन्मुख रहने वाला मनुष्य (वह) चौथा पद प्राप्त कर लेता है (जहाँ माया का प्रभाव नहीं पड़ सकता)। (गुरू के सन्मुख रहने वाला मनुष्य) एक (प्यार-भरी) निगाह से सारी दुनिया को एक जैसा जानता है, उसको (यह प्रत्यक्ष) दिखाई देता है (कि) हर जगह परमात्मा ही पसरा हुआ है।7। हे भाई! गुरू के सन्मुख रहने वाला मनुष्य (ये) समझ लेता है कि अलख प्रभू स्वयं ही स्वयं (हर जगह मौजूद) है, हर जगह परमात्मा का ही नाम है, सारी दुनिया में परमात्मा की ही ज्योति है। हे नानक! दीनों पर दया करने वाले प्रभू जी जिन पर मेहरवान होते हैं, वह मनुष्य भक्ति-भावना से परमात्मा के नाम में लीन रहते हैं।8।1।


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