संधिआ वेले का हुक्मनामा – 1 अप्रैल 2023

सोरठि महला ५ ॥ सतिगुर पूरे भाणा ॥ ता जपिआ नामु रमाणा ॥ गोबिंद किरपा धारी ॥ प्रभि राखी पैज हमारी ॥१॥ हरि के चरन सदा सुखदाई ॥ जो इछहि सोई फलु पावहि बिरथी आस न जाई ॥१॥ रहाउ ॥ क्रिपा करे जिसु प्रानपति दाता सोई संतु गुण गावै ॥ प्रेम भगति ता का मनु लीणा पारब्रहम मनि भावै ॥२॥ आठ पहर हरि का जसु रवणा बिखै ठगउरी लाथी ॥ संगि मिलाइ लीआ मेरै करतै संत साध भए साथी ॥३॥ करु गहि लीने सरबसु दीने आपहि आपु मिलाइआ ॥ कहु नानक सरब थोक पूरन पूरा सतिगुरु पाइआ ॥४॥१५॥७९॥

अर्थ :- (हे भाई!) जब गुरू को अच्छा लगता है जब गुरू प्रसन्न होता है) तब ही परमात्मा का नाम जपा जा सकता है। परमात्मा ने मेहर की (गुरू मिलाया! गुरू की कृपा से हमने नाम जपा, तब) परमात्मा ने हमारी लाज रख ली (हमें ठगने से बचा लिया) ॥१॥ हे भाई! परमात्मा के चरण सदा सुख देने वाले हैं। (जो मनुष्य हरी-चरणों का सहारा लेते हैं, वह) जो कुछ (परमात्मा से) मांगते हैं वही फल प्राप्त कर लेते हैं। (परमात्मा के ऊपर रखी हुई कोई भी) आस व्यर्थ नहीं जाती ॥१॥ रहाउ ॥ हे भाई! जीवन का मालिक दातार प्रभू जिस मनुष्य पर मेहर करता है वह संत (स्वभाव बन जाता है, और) परमात्मा की सिफ़त-सलाह के गीत गाता है। उस मनुष्य का मन परमात्मा की प्यार-भरी भक्ति में मस्त हो जाता है, वह मनुष्य परमात्मा के मन को प्यारा लगने लग जाता है ॥२॥ हे भाई! आठों पहर (हर समय) परमात्मा की सिफ़त-सलाह करने से विकारों की ठग-बूटी का ज़ोर खत्म हो जाता है। (जिस भी मनुष्य ने परमात्मा की सिफ़त-सलाह में मन जोड़ा) करतार ने (उस को) अपने साथ मिला लिया, संत जन उस के संगी-साथी बन गए ॥३॥ (हे भाई! गुरू की श़रण पड़ कर जिस भी मनुष्य ने प्रभू-चरणों का अराधन किया) प्रभू ने उस का हाथ पकड़ कर उस को सब कुछ बख़्श़ दिया, प्रभू ने उस को अपना आप ही मिला दिया। नानक जी कहते हैं – जिस मनुष्य को पूरा गुरू मिल गया, उस के सभी कार्य सफल हो गए ॥४॥१५॥७९॥


Related Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Begin typing your search term above and press enter to search. Press ESC to cancel.

Back To Top