संधिआ वेले का हुक्मनामा – 18 फरवरी 2023
धनासरी, भगत रवि दास जी की ੴ सतिगुर परसाद हम सरि दीनु दइआल न तुम सरि अब पतिआरू किया कीजे ॥ बचनी तोर मोर मनु माने जन कऊ पूरण दीजे ॥१॥ हउ बलि बलि जाउ रमईआ कारने ॥ कारन कवन अबोल ॥ रहाउ ॥ बहुत जनम बिछुरे थे माधउ इहु जनमु तुम्हारे लेखे ॥ कहि रविदास आस लगि जीवउ चिर भइओ दरसनु देखे ॥२॥१॥
(हे माधो मेरे जैसा कोई दीन और कंगाल नहीं हे और तेरे जैसा कोई दया करने वाला नहीं, (मेरी कंगालता का) अब और परतावा करने की जरुरत नहीं (हे सुंदर राम!) मुझे दास को यह सिदक बक्श की मेरा मन तेरी सिफत सलाह की बाते करने में ही लगा रहे।१। हे सुंदर राम! में तुझसे सदके हूँ, तू किस कारण मेरे साथ नहीं बोलता?||रहाउ|| रविदास जी कहते हैं- हे माधो! कई जन्मो से मैं तुझ से बिछुड़ा आ रहा हूँ (कृपा कर, मेरा) यह जनम तेरी याद में बीते; तेरा दीदार किये बहुत समां हो गया है, (दर्शन की) आस में जीवित हूँ॥२॥१॥