अमृत वेले का हुक्मनामा – 3 जनवरी 2023
महला ५ ॥ गोबिंद गोबिंद गोबिंद संगि नामदेउ मनु लीणा ॥ आढ दाम को छीपरो होइओ लाखीणा ॥१॥ रहाउ॥ बुनना तनना तिआगि कै प्रीति चरन कबीरा ॥ नीच कुला जोलाहरा भइओ गुनीय गहीरा ॥१॥ रविदासु ढुवंता ढोर नीति तिनि तिआगी माइआ ॥ परगटु होआ साधसंगि हरि दरसनु पाइआ ॥२॥ सैनु नाई बुतकारीआ ओहु घरि घरि सुनिआ ॥ हिरदे वसिआ पारब्रहमु भगता महि गनिआ ॥३॥ इह बिधि सुनि कै जाटरो उठि भगती लागा ॥ मिले प्रतखि गुसाईआ धंना वडभागा ॥४॥२॥
अर्थ: (भक्त) नामदेव जी का मन सदा परमात्मा के साथ जुड़ा रहता था (उस हर वक्त की याद की इनायत से) आधी कौड़ी का गरीब छींबा (धोबी), मानो, लखपति बन गया (क्योंकि उसे किसी की अधीनता ना रही)।1। रहाउ। (कपड़ा) उनने (ताना) तानने (की लगन) छोड़ के कबीर ने प्रभु-चरणों से लगन लगा ली; नीच जाति का गरीब जुलाहा था, गुणों का समुंदर बन गया।1। रविदास (पहले) नित्य मरे हुए पशु ढोता था, (पर जब से) उसने माया (का मोह) त्याग दिया, साधु-संगत में रहके प्रसिद्ध हो गया, उसको परमात्मा के दर्शन हो गए।2। सैण (जाति का) नाई लोगों के अंदर-बाहर के छोटे-मोटे काम करता था, उसकी घर-घर शोभा हो चली, उसके हृदय में परमात्मा बस गया और वह भक्तों में गिना जाने लगा।3। इस तरह (की बात) सुन के गरीब धन्ना जट भी उठके भक्ति करने लगा, उसको पामात्मा के साक्षात दीदार हुए और वह अति भाग्यशाली बन गया।4।2।