अमृत वेले का हुक्मनामा – 26 नवंबर 2023
सूही महला ५ बैकुंठ नगरु जहा संत वासा ॥ प्रभ चरण कमल रिद माहि निवासा ॥१॥ सुणि मन तन तुझु सुखु दिखलावउ ॥ हरि अनिक बिंजन तुझु भोग भुंचावउ ॥१॥ रहाउ ॥ अम्रित नामु भुंचु मन माही ॥ अचरज साद ता के बरने न जाही ॥२॥ लोभु मूआ त्रिसना बुझि थाकी ॥ पारब्रहम की सरणि […]
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ਅੰਗ : 729 सूही महला १ घरु ६* *ੴ सतिगुर प्रसादि ॥* *उजलु कैहा चिलकणा घोटिम कालड़ी मसु ॥ धोतिआ जूठि न उतरै जे सउ धोवा तिसु ॥१॥ सजण सेई नालि मै चलदिआ नालि चलंन्हि ॥ जिथै लेखा मंगीऐ तिथै खड़े दिसंनि ॥१॥ रहाउ ॥ कोठे मंडप माड़ीआ पासहु चितवीआहा ॥ ढठीआ कमि न आवन्ही […]
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धनासरी महला ३ ॥ जो हरि सेवहि तिन बलि जाउ ॥ तिन हिरदै साचु सचा मुखि नाउ ॥ साचो साचु समालिहु दुखु जाइ ॥ साचै सबदि वसै मनि आइ ॥१॥ गुरबाणी सुणि मैलु गवाए ॥ सहजे हरि नामु मंनि वसाए ॥१॥ रहाउ ॥ कूड़ु* *कुसतु त्रिसना अगनि बुझाए ॥ अंतरि सांति सहजि सुखु पाए ॥ […]
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रागु धनासरी बाणी भगत कबीर जी की ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ राम सिमरि राम सिमरि राम सिमरि भाई ॥ राम नाम सिमरन बिनु बूडते अधिकाई ॥१॥ रहाउ ॥ बनिता सुत देह ग्रेह संपति सुखदाई ॥ इन्ह मै कछु नाहि तेरो काल अवध आई ॥१॥ अजामल गज गनिका पतित करम कीने ॥ तेऊ उतरि पारि परे […]
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सोरठि महला ५ ॥ सतिगुर पूरे भाणा ॥ ता जपिआ नामु रमाणा ॥ गोबिंद किरपा धारी ॥ प्रभि राखी पैज हमारी ॥१॥ हरि के चरन सदा सुखदाई ॥ जो इछहि सोई फलु पावहि बिरथी आस न जाई ॥१॥ रहाउ ॥ क्रिपा करे जिसु प्रानपति दाता सोई संतु गुण गावै ॥ प्रेम भगति ता का मनु […]
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रागु सूही महला ३ घरु १ असटपदीआ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ नामै ही ते सभु किछु होआ बिनु सतिगुर नामु न जापै ॥ गुर का सबदु महा रसु मीठा बिनु चाखे सादु न जापै ॥ कउडी बदलै जनमु गवाइआ चीनसि नाही आपै ॥ गुरमुखि होवै ता एको जाणै हउमै दुखु न संतापै ॥१॥ बलिहारी गुर […]
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अंग : 704-705 जैतसरी महला ५ घरु २ छंत ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ सलोकु ॥ ऊचा अगम अपार प्रभु कथनु न जाइ अकथु ॥ नानक प्रभ सरणागती राखन कउ समरथु ॥१॥ छंतु ॥ जिउ जानहु तिउ राखु हरि प्रभ तेरिआ ॥ केते गनउ असंख अवगण मेरिआ ॥ असंख अवगण खते फेरे नितप्रति सद भूलीऐ ॥ […]
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धनासरी महला ४ ॥ हरि हरि बूंद भए हरि सुआमी हम चात्रिक बिलल बिललाती ॥ हरि हरि क्रिपा करहु प्रभ अपनी मुखि देवहु हरि निमखाती ॥१॥ हरि बिनु रहि न सकउ इक राती ॥ जिउ बिनु अमलै अमली मरि जाई है तिउ हरि बिनु हम मरि जाती ॥ रहाउ ॥ तुम हरि सरवर अति अगाह […]
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बिलावलु महला ५ ॥ राखि लीए अपने जन आप ॥ करि किरपा हरि हरि नामु दीनो बिनसि गए सभ सोग संताप ॥१॥ रहाउ॥ गुण गोविंद गावहु सभि हरि जन राग रतन रसना आलाप ॥ कोटि जनम की त्रिसना निवरी राम रसाइणि आतम ध्राप ॥१॥ चरण गहे सरणि सुखदाते गुर कै बचनि जपे हरि जाप॥ सागर […]
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बिलावलु महला ५ ॥ साधसंगति कै बासबै कलमल सभि नसना ॥ प्रभ सेती रंगि रातिआ ता ते गरभि न ग्रसना ॥१॥ नामु कहत गोविंद का सूची भई रसना ॥ मन तन निरमल होई है गुर का जपु जपना ॥१॥ रहाउ ॥हरि रसु चाखत ध्रापिआ मनि रसु लै हसना ॥ बुधि प्रगास प्रगट भई उलटि कमलु […]
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