अमृत वेले का हुक्मनामा – 19 नवंबर 2025
अंग : 639 सोरठि महला ५ घरु १ असटपदीआ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ सभु जगु जिनहि उपाइआ भाई करण कारण समरथु ॥ जीउ पिंडु जिनि साजिआ भाई दे करि अपणी वथु ॥ किनि कहीऐ किउ देखीऐ भाई करता एकु अकथु ॥ गुरु गोविंदु सलाहीऐ भाई जिस ते जापै तथु ॥१॥ मेरे मन जपीऐ हरि भगवंता […]
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जब जरीऐ तब होइ भसम तनु रहै किरम दल खाई ॥ काची गागरि नीरु परतु है इआ तन की इहै बडाई ॥१॥ काहे भईआ फिरतौ फूलिआ फूलिआ ॥ जब दस मास उरध मुख रहता सो दिनु कैसे भूलिआ ॥१॥ रहाउ ॥ जिउ मधु माखी तिउ सठोरि रसु जोरि जोरि धनु कीआ ॥ मरती बार लेहु […]
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सलोक ॥ मन इछा दान करणं सरबत्र आसा पूरनह ॥ खंडणं कलि कलेसह प्रभ सिमरि नानक नह दूरणह ॥१॥ हभि रंग माणहि जिसु संगि तै सिउ लाईऐ नेहु ॥ सो सहु बिंद न विसरउ नानक जिनि सुंदरु रचिआ देहु ॥२॥ पउड़ी ॥ जीउ प्रान तनु धनु दीआ दीने रस भोग ॥ ग्रिह मंदर रथ असु […]
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रागु धनासिरी महला ३ घरु ४ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ हम भीखक भेखारी तेरे तू निज पति है दाता ॥ होहु दैआल नामु देहु मंगत जन कंउ सदा रहउ रंगि राता ॥१॥ हंउ बलिहारै जाउ साचे तेरे नाम विटहु ॥ करण कारण सभना का एको अवरु न दूजा कोई ॥१॥ रहाउ ॥ बहुते फेर पए […]
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सलोक ॥ पतित पुनीत गोबिंदह सरब दोख निवारणह ॥ सरणि सूर भगवानह जपंति नानक हरि हरि हरे ॥१॥ छडिओ हभु आपु लगड़ो चरणा पासि ॥ नठड़ो दुख तापु नानक प्रभु पेखंदिआ ॥२॥ पउड़ी ॥ मेलि लैहु दइआल ढहि पए दुआरिआ ॥ रखि लेवहु दीन दइआल भ्रमत बहु हारिआ ॥ भगति वछलु तेरा बिरदु हरि पतित […]
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सूही महला ४ घरु ६ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ नीच जाति हरि जपतिआ उतम पदवी पाइ ॥ पूछहु बिदर दासी सुतै किसनु उतरिआ घरि जिसु जाइ ॥१॥ हरि की अकथ कथा सुनहु जन भाई जितु सहसा दूख भूख सभ लहि जाइ ॥१॥ रहाउ ॥ रविदासु चमारु उसतति करे हरि कीरति निमख इक गाइ ॥ पतित […]
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सलोक मः १ भै विचि पवणु वहै सदवाउ ॥ भै विचि चलहि लख दरीआउ ॥ भै विचि अगनि कढै वेगारि ॥ भै विचि धरती दबी भारि ॥ भै विचि इंदु फिरै सिर भारि ॥ भै विचि राजा धरम दुआरु ॥ भै विचि सूरजु भै विचि चंदु ॥ कोह करोड़ी चलत न अंतु ॥ भै विचि […]
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आसा छंत महला ५ घरु ४ ੴ सतिगुर प्रसादि हरि चरन कमल मनु बेधिआ किछु आन न मीठा राम राजे ॥ मिलि संतसंगति आराधिआ हरि घटि घटे डीठा राम राजे ॥ हरि घटि घटे डीठा अम्रितो वूठा जनम मरन दुख नाठे ॥ गुण निधि गाइआ सभ दूख मिटाइआ हउमै बिनसी गाठे ॥ प्रिउ सहज सुभाई […]
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धनासरी महला १ ॥ जीवा तेरै नाइ मनि आनंदु है जीउ ॥ साचो साचा नाउ गुण गोविंदु है जीउ ॥ गुर गिआनु अपारा सिरजणहारा जिनि सिरजी तिनि गोई ॥ परवाणा आइआ हुकमि पठाइआ फेरि न सकै कोई ॥ आपे करि वेखै सिरि सिरि लेखै आपे सुरति बुझाई ॥ नानक साहिबु अगम अगोचरु जीवा सची नाई […]
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धनासरी महला ५ ॥ फिरत फिरत भेटे जन साधू पूरै गुरि समझाइआ ॥ आन सगल बिधि कांमि न आवै हरि हरि नामु धिआइआ ॥१॥ ता ते मोहि धारी ओट गोपाल ॥ सरनि परिओ पूरन परमेसुर बिनसे सगल जंजाल ॥ रहाउ ॥ सुरग मिरत पइआल भू मंडल सगल बिआपे माइ ॥ जीअ उधारन सभ कुल तारन […]
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