संधिआ वेले का हुक्मनामा – 23 नवंबर 2022
धनासरी महला ५ ॥ पानी पखा पीसउ संत आगै गुण गोविंद जसु गाई ॥ सासि सासि मनु नामु सम्हारै इहु बिस्राम निधि पाई ॥१॥ तुम्ह करहु दइआ मेरे साई ॥ ऐसी मति दीजै मेरे ठाकुर सदा सदा तुधु धिआई ॥१॥ रहाउ ॥ तुम्हरी क्रिपा ते मोहु मानु छूटै बिनसि जाइ भरमाई ॥ अनद रूपु रविओ […]
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सलोकु मः ४ ॥ अंतरि अगिआनु भई मति मधिम सतिगुर की परतीति नाही ॥ अंदरि कपटु सभु कपटो करि जाणै कपटे खपहि खपाही ॥ सतिगुर का भाणा चिति न आवै आपणै सुआइ फिराही ॥ किरपा करे जे आपणी ता नानक सबदि समाही ॥१॥ मः ४ ॥ मनमुख माइआ मोहि विआपे दूजै भाइ मनूआ थिरु नाहि […]
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टोडी महला ५ ॥ साधसंगि हरि हरि नामु चितारा ॥ सहजि अनंदु होवै दिनु राती अंकुरु भलो हमारा ॥ रहाउ ॥ गुरु पूरा भेटिओ बडभागी जा को अंतु न पारावारा ॥ करु गहि काढि लीओ जनु अपुना बिखु सागर संसारा ॥१॥ जनम मरन काटे गुर बचनी बहुड़ि न संकट दुआरा ॥ नानक सरनि गही सुआमी […]
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सोरठि महला ९ ॥ प्रीतम जानि लेहु मन माही ॥ अपने सुख सिउ ही जगु फांधिओ को काहू को नाही ॥१॥ रहाउ ॥ सुख मै आनि बहुतु मिलि बैठत रहत चहू दिसि घेरै ॥ बिपति परी सभ ही संगु छाडित कोऊ न आवत नेरै ॥१॥ घर की नारि बहुतु हितु जा सिउ सदा रहत संग […]
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बिलावलु महला ५ ॥ सहज समाधि अनंद सूख पूरे गुरि दीन ॥ सदा सहाई संगि प्रभ अम्रित गुण चीन ॥ रहाउ ॥ जै जै कारु जगत्र महि लोचहि सभि जीआ ॥ सुप्रसंन भए सतिगुर प्रभू कछु बिघनु न थीआ ॥१॥ जा का अंगु दइआल प्रभ ता के सभ दास ॥ सदा सदा वडिआईआ नानक गुर […]
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सूही महला ४ ॥ हरि हरि नामु भजिओ पुरखोतमु सभि बिनसे दालद दलघा ॥ भउ जनम मरणा मेटिओ गुर सबदी हरि असथिरु सेवि सुखि समघा ॥१॥ मेरे मन भजु राम नाम अति पिरघा ॥ मै मनु तनु अरपि धरिओ गुर आगै सिरु वेचि लीओ मुलि महघा ॥१॥ रहाउ ॥ नरपति राजे रंग रस माणहि बिनु […]
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सूही महला ४ घरु ७ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ तेरे कवन कवन गुण कहि कहि गावा तू साहिब गुणी निधाना ॥ तुमरी महिमा बरनि न साकउ तूं ठाकुर ऊच भगवाना ॥१॥ मै हरि हरि नामु धर सोई ॥ जिउ भावै तिउ राखु मेरे साहिब मै तुझ बिनु अवरु न कोई ॥१॥ रहाउ ॥ मै ताणु […]
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जैतसरी महला ५ ॥ आए अनिक जनम भ्रमि सरणी ॥ उधरु देह अंध कूप ते लावहु अपुनी चरणी ॥१॥ रहाउ ॥ गिआनु धिआनु किछु करमु न जाना नाहिन निरमल करणी ॥ साधसंगति कै अंचलि लावहु बिखम नदी जाइ तरणी ॥१॥ सुख स्मपति माइआ रस मीठे इह नही मन महि धरणी ॥ हरि दरसन त्रिपति नानक […]
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सलोकु मः ४ ॥ अंतरि अगिआनु भई मति मधिम सतिगुर की परतीति नाही ॥ अंदरि कपटु सभु कपटो करि जाणै कपटे खपहि खपाही ॥ सतिगुर का भाणा चिति न आवै आपणै सुआइ फिराही ॥ किरपा करे जे आपणी ता नानक सबदि समाही ॥१॥ मः ४ ॥ मनमुख माइआ मोहि विआपे दूजै भाइ मनूआ थिरु नाहि […]
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सलोक ॥ मन इछा दान करणं सरबत्र आसा पूरनह ॥ खंडणं कलि कलेसह प्रभ सिमरि नानक नह दूरणह ॥१॥ हभि रंग माणहि जिसु संगि तै सिउ लाईऐ नेहु ॥ सो सहु बिंद न विसरउ नानक जिनि सुंदरु रचिआ देहु ॥२॥ पउड़ी ॥ जीउ प्रान तनु धनु दीआ दीने रस भोग ॥ ग्रिह मंदर रथ असु […]
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