अमृत वेले का हुक्मनामा – 3 नवंबर 2022
रागु धनासिरी महला ३ घरु ४ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ हम भीखक भेखारी तेरे तू निज पति है दाता ॥ होहु दैआल नामु देहु मंगत जन कंउ सदा रहउ रंगि राता ॥१॥ हंउ बलिहारै जाउ साचे तेरे नाम विटहु ॥ करण कारण सभना का एको अवरु न दूजा कोई ॥१॥ रहाउ ॥ बहुते फेर पए किरपन कउ अब किछु किरपा कीजै ॥ होहु दइआल दरसनु देहु अपुना ऐसी बखस करीजै ॥२॥ भनति नानक भरम पट खूल्हे गुर परसादी जानिआ ॥ साची लिव लागी है भीतरि सतिगुर सिउ मनु मानिआ ॥३॥१॥९॥
अर्थ: राग धनासरी, घर ४ में गुरू अमरदास जी की बाणी। अकाल पुरख एक है और सतिगुरू की कृपा द्वारा मिलता है। हे प्रभू! हम जीव तेरे (द्वार के) भिखारी हैं, तूँ स्वतंत्र रह कर सब को दातें देने वाला हैं। हे प्रभू! मेरे पर दयावान हो। मुझे भिखारी को अपना नाम दो (ता कि) मैं सदा तेरे प्रेम-रंग में रंगा रहूँ ॥१॥ हे प्रभू! मैं तेरे सदा कायम रहने वाले नाम से कुर्बान जाता हूँ। तूँ सारे संसार जगत का आधार हैं; तूँ ही सब जीवों को पैदा करने वाला हैं कोई अन्य (तेरे जैसा) नहीं है ॥१॥ रहाउ ॥ हे प्रभू! मुझे माया-नीच को (अब तक मरण के) अनेकों चक्र पड़ चुके हैं, अब तो मेरे पर कुछ मेहर कर। हे प्रभू! मेरे पर दयावान हो। मेरे पर इस तरह की बख़्श़श़ कर कि मुझे अपना दीदार बख़्श़ ॥२॥ हे भाई! नानक जी कहते हैं – गुरू की कृपा द्वारा जिस मनुष्य के भ्रम के परदे खुल जाते हैं, उस की (परमात्मा के साथ) गहरी सांझ बन जाती है। उस के हृदय में (परमात्मा के साथ) सदा कायम रहने वाली लगन लग जाती है, गुरू के द्वारा उस का मन संतुष्ट हो जाता है ॥३॥१॥९॥
WaheGuruJi Ka Khalsa WaheGuruJi Ki Fateh