अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 25 नवंबर 2025

अंग : 804
बिलावलु महला ५ ॥ तनु मनु धनु अरपउ सभु अपना ॥ कवन सु मति जितु हरि हरि जपना ॥१॥ करि आसा आइओ प्रभ मागनि ॥ तुम्ह पेखत सोभा मेरै आगनि ॥१॥ रहाउ ॥ अनिक जुगति करि बहुतु बीचारउ ॥ साधसंगि इसु मनहि उधारउ ॥२॥ मति बुधि सुरति नाही चतुराई ॥ ता मिलीऐ जा लए मिलाई ॥३॥ नैन संतोखे प्रभ दरसनु पाइआ ॥ कहु नानक सफलु सो आइआ ॥४॥४॥९॥
अर्थ: हे भाई! वह कौन सी अच्छी शिक्षा हैजिस की बरकत से परमात्मा का नाम सुमीर जा सकता है ? (अगर कोई गुरमुख मुझे वह सुमत दे दे, तो)मैं अपना सरीर अपना मन अपना धन सब कुछ अर्पण करने तो तैयार हूँ । १। हे प्रभु! आशा कर के मैं (तेरे दर पर तेरे नाम की दात ) मांगने आया हूँ । तेरे दर्शन करने से मेरे हृदय-आँगन में उतशाह पैदा हो जाता है।१।रहाउ। हे भाई ! मैं अनेकों ढंग (आपने सामने) रख कर बड़ा विचरता हूँ (कि ढंग से इस विचार से बचाया जाए। आखिर में यही समझ आती है कि ) गुरमुखों की संगत से (ही) इस मन को (विकारों से ) मैं बचा सकता हूँ ।२। हे भाई! किसी मति, किसी अकल, किसी ध्यान, किसी चतुराई से परमात्मा नहीं मिल सकता। जब वह प्रभु आप ही जीव को मिलाता है तब ही उस से मिल सकता है।३। हे नानक ! कहि उस मनुख का जगत में आना मुबारिक है, जिस ने परमात्मा का दर्शन कर लिया है, और (दर्शन की बरकत से) जिस की आँखें (माया की तृष्णा से ) तृप्त हो गयी हैं।४।४।९।


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