संधिआ ​​वेले का हुक्मनामा – 25 दिसंबर 2025

अंग : 521
सलोक मः ५ ॥ लधमु लभणहारु करमु करंदो मा पिरी ॥ इको सिरजणहारु नानक बिआ न पसीऐ ॥१॥ मः ५ ॥ पापड़िआ पछाड़ि बाणु सचावा संन्हि कै ॥ गुर मंत्रड़ा चितारि नानक दुखु न थीवई ॥२॥ पउड़ी ॥ वाहु वाहु सिरजणहार पाईअनु ठाढि आपि ॥ जीअ जंत मिहरवानु तिस नो सदा जापि ॥ दइआ धारी समरथि चुके बिल बिलाप ॥ नठे ताप दुख रोग पूरे गुर प्रतापि ॥ कीतीअनु आपणी रख गरीब निवाजि थापि ॥ आपे लइअनु छडाइ बंधन सगल कापि ॥ तिसन बुझी आस पुंनी मन संतोखि ध्रापि ॥ वडी हूं वडा अपार खसमु जिसु लेपु न पुंनि पापि ॥१३॥
अर्थ: जब मेरे प्यारे खसम ने (मेरे ऊपर) कृपा की तब मैने खोजने-योग्य परमात्मा को खोज लिया। (अब ) हे नानक एक करतार ही (हर जगह) दिख रहा है, कोई और नहीं दिखता ॥1॥ सच (भावअर्थ, सुमिरन) का तीर तान कर बुरे पापों को भगा दे, हे नानक! सतगुरु का सुंदर मन्त्र याद कर, (इस प्रकार) दुःख नहीं प्रकट होता॥2॥ (हे भाई!) उस करतार को ‘धन्य धन्य’ कह जिस ने (तेरे अंदर) स्वयं ठंड डाली है, उस प्रभू को याद कर जो सब जीवों पर मेहरवान है। समर्थ प्रभू ने (जिस मनुष्य पर) मेहर की है उसके सारे प्रलाप समाप्त हो गए हैं, पूरे गुरू के प्रताप से उसके (सारे) कलेश, दुख और रोग दूर हो गए। (जिन) गरीबों (भाव, जो दर पे आ गिरे हैं) को निवाज के पीठ ठोक के (उनकी) रक्षा उस (प्रभू) ने खुद की है, उनके सारे बंधन कट के उनको (विकारों से) उसने खुद छुड़ा लिया है, संतोष से तृप्त हो जाने के कारण उनके मन की आस पूरी हो गई है उनकी तृष्णा मिट गई है। (पर) बेअंत (प्रभू) पति सबसे बड़ा है उसको (जीवों के किए) पुन्य अथवा पाप से (जाती तौर पर) कोई लाग-लबेड़ नहीं होता।13।


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