संधिआ ​​वेले का हुक्मनामा – 24 दिसंबर 2025

अंग : 692
दिन ते पहर पहर ते घरीआं आव घटै तनु छीजै ॥ कालु अहेरी फिरै बधिक जिउ कहहु कवन बिधि कीजै ॥१॥ सो दिनु आवन लागा ॥ मात पिता भाई सुत बनिता कहहु कोऊ है का का ॥१॥ रहाउ॥ जब लगु जोति काइआ महि बरतै आपा पसू न बूझै ॥ लालच करै जीवन पद कारन लोचन कछू न सूझै ॥२॥ कहत कबीर सुनहु रे प्रानी छोडहु मन के भरमा ॥ केवल नामु जपहु रे प्रानी परहु एक की सरनां ॥३॥२॥
अर्थ: दिनों से पहर, पहर से घड़ियां (गिन लो, इस तरह थोड़ा-थोड़ा समय करके) उम्र कम होती जाती है, और शरीर कमजोर होता जाता है, (सब जीवों के सिर पर) काल-रूप शिकारी ऐसे फिरता है जैसे (हिरन आदि का शिकार करने वाले) शिकारी। बताओ, इस शिकारी से बचने के लिए कौन सा यत्न किया जा सकता है?।1। (हरेक जीव के सर पर) वह दिन आता जाता है (जब काल-शिकारी आ पकड़ता है); माता, पिता, पुत्र, पत्नी -इनमें से कोई (उस काल के आगे) किसी की सहायता नहीं कर सकता।1। रहाउ। जब तक शरीर में आत्मा मौजूद रहती है, पशु- (मनुष्य) अपनी अस्लियत को नहीं समझता, और-और ही जीने की लालच करता रहता है, इसे आँखों से ये नहीं दिखता (कि काल-अहेरी से छुटकारा नहीं हो सकेगा)।2। कबीर कहता है: हे भाई! सुनो, मन के (ये) भुलेखे दूर कर दो (कि सदा यहीं बैठे रहना है)। हे जीव! (और लालसाएं छोड़ के) सिर्फ प्रभु का नाम स्मरण करो, और उस एक की शरण आओ।3।2।


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