अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 23 दिसंबर 2025

अंग : 552
सलोकु मः ४ ॥ बिनु सतिगुर सेवे जीअ के बंधना जेते करम कमाहि ॥ बिनु सतिगुर सेवे ठवर न पावही मरि जमहि आवहि जाहि ॥ बिनु सतिगुर सेवे फिका बोलणा नामु न वसै मनि आए ॥ नानक बिनु सतिगुर सेवे जम पुरि बधे मारीअहि मुहि कालै उठि जाहि ॥१॥ मः ३ ॥ इकि सतिगुर की सेवा करहि चाकरी हरि नामे लगै पिआरु ॥ नानक जनमु सवारनि आपणा कुल का करनि उधारु ॥२॥ पउड़ी ॥ आपे चाटसाल आपि है पाधा आपे चाटड़े पड़ण कउ आणे ॥ आपे पिता माता है आपे आपे बालक करे सिआणे ॥ इक थै पड़ि बुझै सभु आपे इक थै आपे करे इआणे ॥ इकना अंदरि महलि बुलाए जा आपि तेरै मनि सचे भाणे ॥ जिना आपे गुरमुखि दे वडिआई से जन सची दरगहि जाणे ॥११॥
अर्थ: सतिगुरू की बताई हुई कार किए बिना जितने भी कर्म जीव करते हैं वे उनके लिए बँधन बनते हैं (भाव, वह कर्म और भी ज्यादा माया के मोह में फंसाते हैं) सतिगुरू की सेवा के बिना और कोई आसरा जीवों को नहीं मिलता (और इसलिए) पैदा होते मरते रहते हैं।गुरू के बताए हुए सिमरन से टूट के मनुष्य और ही फीके बोल बोलता है, इसके हृदय में नाम नहीं बसता; (इसका नतीजा ये निकलता है कि) हे नानक! सतिगुरू की सेवा के बिना जीव ( को जैसे) जमपुरी में (बधे की) मार पड़ती है और (चलने के वक्त) संसार से मुकालिख़ कमा के जाते हैं ॥१॥ मः ३ ॥ कई मनुष्य सतिगुरू की बताई हुई सिमरन की कार करते हैं और उनका प्रभू के नाम में प्यार बन जाता है। हे नानक! वे अपना मानस जनम सवार लेते हैं और अपनी कुल का भी उद्धार कर लेते हैं ॥२॥ पउड़ी ॥ प्रभू स्वयं ही पाठशाला है, स्वयं ही अध्यापक है, और स्वयं ही छात्र पढ़ने के लिए लाता है, खुद ही माँ-बाप है और खुद ही बालकों को समझदार करता है; एक जगह सब कुछ पढ़ के खुद ही समझता है, और एक जगह खुद ही बालकों को अंजान बना देता है। हे सच्चे हरी! जब खुद तेरे मन को अच्छा लगता है तो तू (इनमें से) किसी एक को अपने महल में धुर अंदर बुला लेता है। जिन गुरमुखों को तू खुद आदर देता है, वह सच्ची दरगाह में प्रगट हो जाते हैं ॥११॥


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