अमृत वेले का हुक्मनामा – 13 दिसंबर 2025
अंग : 600
सोरठि महला ३ ॥
भगति खजाना भगतन कउ* *दीआ नाउ हरि धनु सचु सोइ ॥ अखुटु नाम धनु कदे निखुटै नाही किनै न कीमति होइ ॥ नाम धनि मुख उजले होए हरि पाइआ सचु सोइ ॥१॥ मन मेरे गुर सबदी हरि पाइआ जाइ ॥ बिनु सबदै जगु भुलदा फिरदा दरगह मिलै सजाइ ॥ रहाउ ॥ इसु देही अंदरि पंच चोर वसहि कामु क्रोधु लोभु मोहु अहंकारा ॥ अम्रितु लूटहि मनमुख नही बूझहि कोइ न सुणै पूकारा ॥ अंधा जगतु अंधु वरतारा बाझु गुरू गुबारा ॥२॥ हउमै मेरा करि करि विगुते किहु चलै न चलदिआ नालि ॥ गुरमुखि होवै सु नामु धिआवै सदा हरि नामु समालि ॥ सची बाणी हरि गुण गावै नदरी नदरि निहालि ॥३॥ सतिगुर गिआनु सदा घटि चानणु अमरु सिरि बादिसाहा ॥ अनदिनु भगति करहि दिनु राती राम नामु सचु लाहा ॥ नानक राम नामि निसतारा सबदि रते हरि पाहा ॥४॥२॥
अर्थ: (गुरु) भगत जनों को परमात्मा की भक्ति का खज़ाना देता है, परमात्मा का नाम ऐसा धन है जो सदा कायम रहता है। हरी-नाम-धन कभी खत्म होने वाला नहीं, यह धन कभी नहीं खत्म होता, किसी से इस का मूल्य भी नहीं पाया जा सकता (भावार्थ, कोई मनुष्य इस धन को दुनिया के पदार्थों से खरीद भी नहीं सकता)। जिन्होंने यह सदा-थिर हरी-धन प्राप्त कर लिया, उनको इस नाम-धन की बरकत से (लोक परलोक में) इज्जत मिलती है ॥१॥ हे मेरे मन! (गुरु के शब्द के द्वारा ही परमात्मा मिल सकता है। शब्द के बिना जगत कुराहे पड़ा भटकता फिरता है, (आगे परलोक में) प्रभू की दरगाह में दंड सहता है ॥ रहाउ ॥ इस शरीर में काम, क्रोध, लोभ, मोह अहंकार के पांच चोर वसते हैं, (यह) आतमिक जीवन देने वाला नाम-धन लूटते रहते हैं, परन्तु, अपने मन के पीछे चलने वाले मनुष्य यह समझते नहीं। (जब सब कुछ लुटा कर वह दुखी होते हैं, तो) कोई उनकी पुकार नहीं सुनता (कोई उनकी सहायता नहीं कर सकता)। माया के मोह में अंधा हुआ जगत अंधों वाली करतूत करता रहता है, गुरु से भटक कर (इस के आतमिक जीवन के रस्ते में) अँधेरा हुआ रहता है ॥२॥ यह कह कह कर कि 'मैं बड़ा हूँ', 'यह धन पदार्थ मेरा है' (माया-वेड़े) मनुष्य खुअार होते रहते हैं, पर जगत से चलने के समय कोई भी चीज किसी के साथ नहीं चलती। जो मनुष्य गुरू के सनमुख रहता है, वह सदा परमात्मा के नाम को हृदय में वसा के नाम सिमरता रहता है। वह सदा-थिर रहने वाली सिफत-सालाह की बाणी के द्वारा परमात्मा के गुण गाता रहता है और परमात्मा की मेहर की निगाह से वह सदा सुखी रहता है ॥३॥ जिन्ह के हृदय में गुरू का बखसा हुआ ज्ञान सदा रोशनी करी रखता है उन्हा का हुक्म (दुनिया के) बादश़ाहों के सिर पर (भी) चलता है, वह हर समय दिन रात परमात्मा की भगती करते रहते हैं, वह हरी-नाम का लाभ कमाते हैं जो सदा कायम रहता है। हे नानक जी! परमात्मा के नाम के द्वारा संसार से पार-उतारा हो जाता है, जो मनुष्य गुरू के शब्द के द्वारा हरी-नाम के रंग में रंगें रहते हैं, परमात्मा उनके नजदीक वसता है ॥४॥२॥

