अमृत वेले का हुक्मनामा – 27 नवंबर 2025
अंग : 843
बिलावलु महला १ छंत दखणी ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ मुंध नवेलड़ीआ गोइलि आई राम ॥ मटुकी डारि धरी हरि लिव लाई राम ॥ लिव लाइ हरि सिउ रही गोइलि सहजि सबदि सीगारीआ ॥ कर जोड़ि गुर पहि करि बिनंती मिलहु साचि पिआरीआ ॥ धन भाइ भगती देखि प्रीतम काम क्रोधु निवारिआ ॥ नानक मुंध नवेल सुंदरि देखि पिरु साधारिआ ॥१॥ सचि नवेलड़ीए जोबनि बाली राम ॥ आउ न जाउ कही अपने सह नाली राम ॥ नाह अपने संगि दासी मै भगति हरि की भावए ॥ अगाधि बोधि अकथु कथीऐ सहजि प्रभ गुण गावए ॥ राम नाम रसाल रसीआ रवै साचि पिआरीआ ॥ गुरि सबदु दीआ दानु कीआ नानका वीचारीआ ॥२॥ स्रीधर मोहिअड़ी पिर संगि सूती राम ॥ गुर कै भाइ चलो साचि संगूती राम ॥ धन साचि संगूती हरि संगि सूती संगि सखी सहेलीआ ॥ इक भाइ इक मनि नामु वसिआ सतिगुरू हम मेलीआ ॥ दिनु रैणि घड़ी न चसा विसरै सासि सासि निरंजनो ॥ सबदि जोति जगाइ दीपकु नानका भउ भंजनो ॥३॥ जोति सबाइड़ीए त्रिभवण सारे राम ॥ घटि घटि रवि रहिआ अलख अपारे राम ॥ अलख अपार अपारु साचा आपु मारि मिलाईऐ ॥ हउमै ममता लोभु जालहु सबदि मैलु चुकाईऐ ॥ दरि जाइ दरसनु करी भाणै तारि तारणहारिआ ॥ हरि नामु अम्रितु चाखि त्रिपती नानका उर धारिआ ॥४॥१॥
अर्थ: राग बिलावल में गुरु नानक देव जी की वाणी। शंत दखनी। अकाल एक है और सतगुरु की कृपा द्वारा मिलता है। थोड़े दिनों के वसावे वाले इस जगत में आकर जो जीव स्त्री विकारों से बची रहती है, जिसने परमात्मा के चरणों में अपने सुरत जोड़ी हुई होती है, और शरीर का मोह त्याग देती है। जो प्रभु चरणों में प्रीत जोड़कर इस जगत में जीवन व्यतीत करती है। वह आत्मिक अडोलता में रहकर सतगुरु के शब्द की बरकत के साथ अपना जीवन सुंदर बना लेती है। वह सदा दोनों हाथ जोड़कर गुरु के पास विनती करती रहती है, कि हे गुरू मुझे मिल ताकि मैं तेरी कृपा से सदा थीर प्रभु के नाम में जुड़ कर उसको प्यार कर सकूं। ऐसी जीव स्त्री प्रीतम प्रभु की भक्ति के द्वारा प्रीतम प्रभु के प्रेम में रहकर, टिक् कर, उसका दर्शन करके काम क्रोध आदि विकारों को अपने अंदर से दूर कर लेती है।१।

