संधिआ वेले का हुक्मनामा – 04 अक्तूबर 2025
अंग : 694
पतित पावन माधउ बिरदु तेरा ॥ धंनि ते वै मुनि जन जिन धिआइओ हरि प्रभु मेरा ॥१॥ मेरै माथै लागी ले धूरि गोबिंद चरनन की ॥ सुरि नर मुनि जन तिनहू ते दूरि ॥१॥ रहाउ ॥ दीन का दइआलु माधौ गरब परहारी ॥ चरन सरन नामा बलि तिहारी ॥२॥५॥
अर्थ: हे माधो! (विकारों में) गिरे हुए बंदों को (दोबारा) पवित्र करना तेरा मूल कदीमों का (प्यार वाला) स्वभाव है। (हे भाई!) वह मुनि लोग भाग्यशाली है, जिन्होंने प्यारे हरी प्रभू को सिमरा है।1। (उस गोबिंद की मेहर से) मेरे माथे पर (भी) उसके चरणों की धूड़ लगी है (भाव, मुझे भी गोबिंद के चरणों की धूड़ माथे पर लगानी नसीब हुई है); वह धूड़ देवते और मुनि जनों के भी भाग्यों में नहीं हो सकी।1। रहाउ। हे माधो! तू दीनों पर दया करने वाला है। तू (अहंकारियों का) अहंकार दूर करने वाला है। मैं नामदेव तेरे चरणों की शरण आया हूँ और तुझसे सदके हूँ।2।5।