संधिआ ​​वेले का हुक्मनामा – 30 जून 2025

अंग : 618
सोरठि महला ५ ॥ गुरि पूरै अपनी कल धारी सभ घट उपजी दइआ ॥ आपे मेलि वडाई कीनी कुसल खेम सभ भइआ ॥१॥ सतिगुरु पूरा मेरै नालि ॥ पारब्रहमु जपि सदा निहाल ॥ रहाउ॥ अंतरि बाहरि थान थनंतरि जत कत पेखउ सोई ॥ नानक गुरु पाइओ वडभागी तिसु जेवडु अवरु न कोई ॥२॥११॥३९॥
अर्थ: हे भाई! पूरा गुरु ने (मेरे अंदर) अपनी (ऐसी) ताकत भर दी है (कि मेरे अंदर) सब जीवों के लिए प्यार पैदा हो गया है। (गुरु ने) खुद ही (मुझे प्रभु चरणों में) जोड़ के (मुझको) आत्मिक उच्चता बख्शी है, (अब मेरे अंदर) आनंद ही आनंद बना रहता है।1। हे भाई! पूरा गुरु (हर वक्त) मेरे साथ (मेरी सहायता करने वाला) है। (उसकी मेहर से) परमात्मा का नाम जप के मैं सदा प्रसन्न-चित्त रहता हूँ। रहाउ। हे भाई! अब अपने अंदर और बाहर (सारे जगत में), हर जगह में, मैं जहाँ भी देखता हूँ उस परमात्मा को ही (बसता देखता हूँ)। हे नानक! (मुझे) बड़े भाग्यों से गुरु मिला है (ऐसी दाति बख्शिश कर सकने वाला) गुरु के बराबर का और कोई नहीं है।2।11।39।


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