संधिआ वेले का हुक्मनामा – 31 मई 2025
अंग : 682
धनासरी महला ५ ॥
अउखी घड़ी न देखण देई अपना बिरदु समाले ॥ हाथ देए राखै अपने कउ सासि सासि प्रतिपाले ॥१॥ प्रभ सिउ लागि रहिओ मेरा चीतु ॥ आदि अंति प्रभु सदा सहाई धंनु हमारा मीतु ॥ रहाउ ॥ मनि बिलास भए साहिब के अचरज देखि बडाई ॥ हरि सिमरि सिमरि आनद करि नानक प्रभि पूरन पैज रखाई ॥२॥१५॥४६॥
अर्थ: हे भाई! (वह प्रभु अपने सेवक को) कोई दुःख दुःख देने वाला समय देखने नहीं देता, वह अपना मुढ़-कदीमा का (हमेशां प्यार वाला) स्वभाव सदा याद रखता है। प्रभु अपना हाथ दे के अपने सेवक की राखी करता है, (सेवक को उसकी ) हरेक साँस के साथ पालता है॥१॥ हे भाई! मेरा मन (भी) उस प्रभु से जुड़ा रहता है, जो शुरु से आखिर तक सदा ही मददगार बना रहता है। हमारा वह मित्र प्रभु धन्य है (उस की सदा सिफत-सलाह करनी चाहिये)॥रहाउ॥ हे भाई! मालिक-प्रभु के हैरान करने वाले कौतक देख के, उस की बढाई देख के, (सेवक के) मन में (भी) खुशियाँ बनी रहती है। हे नानक! तू भी परमात्मा का नाम सुमिरन कर कर के आत्मिक आनंद मना। (जिस भी मनुख ने सिमरन किया) प्रभु ने पूरे तौर पर उस की इज्जत रख ली॥२॥१५॥४६॥