अमृत वेले का हुक्मनामा – 24 मई 2025
अंग : 823
बिलावलु महला ५ ॥ ऐसे काहे भूलि परे ॥ करहि करावहि मूकरि पावहि पेखत सुनत सदा संगि हरे ॥१॥ रहाउ ॥ काच बिहाझन कंचन छाडन बैरी संगि हेतु साजन तिआगि खरे ॥ होवनु कउरा अनहोवनु मीठा बिखिआ महि लपटाइ जरे ॥१॥ अंध कूप महि परिओ परानी भरम गुबार मोह बंधि परे ॥ कहु नानक प्रभ होत दइआरा गुरु भेटै काढै बाह फरे ॥२॥१०॥९६॥
अर्थ: (हे भाई! पता नहीं जीव) क्यों इस तरह गलत राह पर पड़े रहते हैं। (जीव सारे बुरे कर्म) करते कराते भी हैं, (फिर) मुकर भी जाते हैं (कि हमने नहीं किए)। पर परमात्मा सदा सब जीवों के साथ बसता (सबकी करतूतें) देखता-सुनता है।1। रहाउ।
हे भाई! काँच का व्यापार करना, सोना छोड़ देना, सच्चे मित्र त्याग के वैरी से प्यार- (ये हैं जीवों की करतूतें)। परमात्मा (का नाम) कड़वा लगना, माया का मोह मीठा लगना (- यह है जीवों का नित्य का स्वभाव। माया के मोह में फस के सदा खिजते रहते हैं)।1। हे भाई! जीव (सदा) मोह के अंधे (अंधेरे) कूएं में पड़े रहते हैं, (जीवों को सदा) भटकना लगी रहती है, मोह के अंधेरे जकड़ में फसे रहते हैं (पता नहीं ये क्यों इस तरह गलत रास्ते पर पड़े रहते हैं)। हे नानक! कह- जिस मनुष्य पर प्रभू दयावान होता है, उसे गुरू मिल जाता है (और, उस गुरू की) बाँह पकड़ के (उसको अंधेरे कूएं में से) निकाल लेता है।2।10।96।