अमृत वेले का हुक्मनामा – 22 मई 2025
अंग : 704-705
जैतसरी महला ५ घरु २ छंत ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ सलोकु ॥ ऊचा अगम अपार प्रभु कथनु न जाइ अकथु ॥ नानक प्रभ सरणागती राखन कउ समरथु ॥१॥ छंतु ॥ जिउ जानहु तिउ राखु हरि प्रभ तेरिआ ॥ केते गनउ असंख अवगण मेरिआ ॥ असंख अवगण खते फेरे नितप्रति सद भूलीऐ ॥ मोह मगन बिकराल माइआ तउ प्रसादी घूलीऐ ॥ लूक करत बिकार बिखड़े प्रभ नेर हू ते नेरिआ ॥ बिनवंति नानक दइआ धारहु काढि भवजल फेरिआ ॥१॥ सलोकु ॥ निरति न पवै असंख गुण ऊचा प्रभ का नाउ ॥ नानक की बेनंतीआ मिलै निथावे थाउ ॥२॥ छंतु ॥ दूसर नाही ठाउ का पहि जाईऐ ॥ आठ पहर कर जोड़ि सो प्रभु धिआईऐ ॥ धिआइ सो प्रभु सदा अपुना मनहि चिंदिआ पाईऐ ॥ तजि मान मोहु विकारु दूजा एक सिउ लिव लाईऐ ॥ अरपि मनु तनु प्रभू आगै आपु सगल मिटाईऐ ॥ बिनवंति नानकु धारि किरपा साचि नामि समाईऐ ॥२॥ सलोकु ॥ रे मन ता कउ धिआईऐ सभ बिधि जा कै हाथि ॥ राम नाम धनु संचीऐ नानक निबहै साथि ॥३॥ छंतु ॥ साथीअड़ा प्रभु एकु दूसर नाहि कोइ ॥ थान थंनतरि आपि जलि थलि पूर सोइ ॥ जलि थलि महीअलि पूरि रहिआ सरब दाता प्रभु धनी ॥ गोपाल गोबिंद अंतु नाही बेअंत गुण ता के किआ गनी ॥ भजु सरणि सुआमी सुखह गामी तिसु बिना अन नाहि कोइ ॥ बिनवंति नानक दइआ धारहु तिसु परापति नामु होइ ॥३॥ सलोकु ॥ चिति जि चितविआ सो मै पाइआ ॥ नानक नामु धिआइ सुख सबाइआ ॥४॥ छंतु ॥ अब मनु छूटि गइआ साधू संगि मिले ॥ गुरमुखि नामु लइआ जोती जोति रले ॥ हरि नामु सिमरत मिटे किलबिख बुझी तपति अघानिआ ॥ गहि भुजा लीने दइआ कीने आपने करि मानिआ ॥ लै अंकि लाए हरि मिलाए जनम मरणा दुख जले ॥ बिनवंति नानक दइआ धारी मेलि लीने इक पले ॥४॥२॥
अर्थ: राग जैतसरी, घर २ में गुरू अर्जन देव जी की बाणी 'छंत' (छंद)।
अकाल पुरख एक है और सतिगुरू की कृपा द्वारा मिलता है। सलोक
हे नानक जी! (कहो-) हे प्रभू! मैं तेरी श़रण आया हूँ, तूँ (श़रण आए की) रक्षा करने की ताकत रखता हैं। हे सब से ऊंचे! हे अपहुँच! हे बेअंत! तूँ सब का मालिक हैं, तेरा स्वरूप बयान नहीं किया जा सकता, बयान से परे है ॥१॥ छंत ॥ हे हरी! हे प्रभू! मैं तेरा हूँ, जैसे जानों वैसे (माया के मोह से) मेरी रक्षा कर। मैं (अपने) कितने अवगुण गिना ? मेरे अंदर अनगिनत अवगुण हैं। हे प्रभू! मेरे अनगिनत ही अवगुण हैं, पापों के घेरे में फंसा रहता हूँ, रोज ही सदा ही उकाई खा जाते हैं। भयानक माया के मोह में मस्त रहते हैं, तेरी कृपा से ही बच पाते हैं। हम जीव दुखदाई विकार (अपने तरफ़ से) परदे में करते हैं, परन्तु, हे प्रभू! तूँ हमारे पास से पास (हमारे साथ ही) वसता हैं। नानक जी बेनती करते हैं हे प्रभू! हमारे ऊपर मेहर कर, हम जीवों को संसार-समुँद्र के (विकारों के) घेरे से निकल लो ॥१॥ हे भाई! परमात्मा के अनगिनत गुणों का निर्णय नहीं हो सकता, उस की प्रतिष्ठा सब से ऊंची है। नानक जी की (उसके दर पर ही) अरदास है कि (मुझे) निआसरे को (उसके चरणों में) जगह मिल जाए ॥२॥ छंत ॥ हे भाई! हम जीवों के लिए परमात्मा के बिना कोई अन्य जगह नहीं है, (परमात्मा का दर छोड़ कर) हम अन्य किस के पास जा सकते हैं ? दोनों हाथ जोड़ कर आठों पहर (हर समय) प्रभू का ध्यान धरना चाहिए। हे भाई! अपने उस प्रभू का ध्यान धर कर (उस के दर से) मन-इच्छित मुराद हासिल कर लई दी है। (अपने अंदर से) अहंकार, मोह, और कोई अन्य आसरा ढूंढ़ने की आदत त्याग कर एक परमात्मा के चरणों के साथ ही सुरत जोड़नी चाहिए। हे भाई! प्रभू की हज़ूरी में अपना मन अपना शरीर भेंटा कर के (अपने अंदर से) सारा आपा-भाव मिटा देना चाहिए। नानक जी (तो प्रभू के दर पर ही) बेनती करते हैं (और कहते हैं – हे प्रभू!) मेहर कर (तेरी मेहर के साथ ही तेरे) सदा-थिर रहने वाले नाम में लीन हो सकते हैं ॥२॥ हे (मेरे) मन! जिस परमात्मा के हाथ में (हमारी) प्रत्येक (जीवन-) जुगत है, उस का नाम सिमरना चाहिए। हे नानक जी! परमात्मा का नाम-धन इकठ्ठा करना चाहिए, (यही धन) हमारा साथ देने वाला है ॥३॥ छंत ॥ हे भाई! सिर्फ़ परमात्मा ही (सदा साथ देने वाला) साथी है, उस के बिना अन्य कोई (साथी) नहीं। वही परमात्मा पानी में धरती में प्रत्येक जगह वस रहा है। हे भाई! वह मालिक-प्रभू पानी में धरती में आकाश में वस रहा है, सब जीवों को दाताँ देने वाला है। उस गोपाल गोबिंद (के गुणों) का अंत नहीं पै सकता, उस के गुण बेअंत हैं, मैं उस के गुण क्या गिन सकता हूँ ? हे भाई! उस मालिक की श़रण पड़े रहो, वह ही सारे सुख देने वाला है। उस के बिना (हम जीवों का) अन्य कोई (सहारा) नहीं है। नानक जी बेनती करते हैं – हे प्रभू! जिस ऊपर तूँ मेहर करता है, उस को तेरा नाम हासिल हो जाता है ॥३॥ हे नानक जी! (कहो – हे भाई!) परमात्मा का नाम सिमरिया कर, (उसके दर से) सारे सुख (मिल जाते हैं), मैं तो जो भी माँग अपने मन में (उस से) माँगी है, वह मुझे (सदा) मिल गई है ॥४॥ छंत ॥ हे भाई! गुरू की संगत में मिल कर अब (मेरा) मन (माया के मोह से) स्वतंत्र हो गया है। (जिन्होनें भी) गुरू की श़रण पड़ कर परमात्मा का नाम सिमरिया है, उनकी जिंद परमात्मा की ज्योती में लीन रहती है। हे भाई! परमात्मा का नाम सिमरने से सारे पाप मिट जाते हैं, (विकारों की) जलन ख़त्म हो जाती है, (मन माया की तरफ़ से) रज जाता है। जिन ऊपर प्रभू दया करता है, जिन की बाजू पकड़ कर अपना बना लेता है, और, आदर देता है। जिन को अपने चरणों में जोड़ लेता है अपने साथ मिला लेता है, उनके जन्म मरण के सारे दुःख जल (कर सवाह हो) जाते हैं। नानक जी बेनती करते हैं – (हे भाई! जिन ऊपर प्रभू) मेहर करता है, उनको एक पल में अपने साथ मिला लेता है ॥४॥२॥