अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 21 मई 2025

अंग : 785
सलोकु मः ३ ॥ सूहै वेसि दोहागणी पर पिरु रावण जाइ ॥ पिरु छोडिआ घरि आपणै मोही दूजै भाइ ॥ मिठा करि कै खाइआ बहु सादहु वधिआ रोगु ॥ सुधु भतारु हरि छोडिआ फिरि लगा जाइ विजोगु ॥ गुरमुखि होवै सु पलटिआ हरि राती साजि सीगारि ॥ सहजि सचु पिरु राविआ हरि नामा उर धारि ॥ आगिआकारी सदा सोहागणि आपि मेली करतारि ॥ नानक पिरु पाइआ हरि साचा सदा सोहागणि नारि ॥१॥ मः ३ ॥ सूहवीए निमाणीए सो सहु सदा सम्ह्हालि ॥ नानक जनमु सवारहि आपणा कुलु भी छुटी नालि ॥२॥ पउड़ी ॥ आपे तखतु रचाइओनु आकास पताला ॥ हुकमे धरती साजीअनु सची धरम साला ॥ आपि उपाइ खपाइदा सचे दीन दइआला ॥ सभना रिजकु संबाहिदा तेरा हुकमु निराला ॥ आपे आपि वरतदा आपे प्रतिपाला ॥१॥
अर्थ: जो जीव-स्त्री दुनिया के सुंदर पदार्थ-रूप कसुंभे के चुहचुहे रंग वाले वेस में (मस्त) है वह मंदी किस्मत वाली है, वह (मानो) पराए खसम को भोगने चल पड़ती है, माया के प्यार में वह लुटी जा रही है (क्योंकि) वह अपने हृदय-घर में बसते खसम-भगवान को विसार देती है। (जिस जीव-स्त्री ने दुनिया के पदार्थों को) स्वादिष्ट जान कर भोगा है (उस के मन में) इन ज्यादा चसकों से रोग बढता है, (भावार्थ ), वह अपने निरोल खसम-भगवान को छोड़ बैठती है और इस तरह उससे इस का विछोड़ा हो जाता है। जो जीव-स्त्री गुरु के हुक्म में चलती है उस का मन (दुनिया के भोगों की तरफ से) मुड़ता है, वह (भगवान-प्यार रूप गहणे के साथ अपने आप को) सजा करके परमात्मा (के प्यार) में रंगी रहती है, भगवान का नाम हृदय में धार के सहज अवस्था में (टिक के) सदा-थिर रहने वाले खसम को मानती है। भगवान के हुक्म में चलने वाली जीव-स्त्री सदा सुहाग भाग्य वाली है, करतार (खसम) ने उस को अपने साथ मिला लिया है। हे नानक ! जिस ने सदा-थिर भगवान खसम प्राप्त कर लिया है वह (जीव-) स्त्री सदा सुहाग भाग्य वाली है।1।
हे चुहचुहे कसुंभे-रंग के साथ प्रेम करने वाली विचारो ! खसम-भगवान को सदा याद रखो। हे नानक ! (आख कि इस तरह) तूँ अपना जीवन सवार लेगी, तेरी कुल भी तेरे साथ मुक्त हो जाएगी।2।
आकाश और पाताल के बीच का सारा जगत-रूप तख्त भगवान ने ही बनाया है, उस ने अपने हुक्म में ही धरती के जीवों के धर्म कमाने के लिए जगह बनाई है। हे दीनाँ पर दया करने वाले सदा कायम रहने वाले ! तूँ आप ही पैदा कर के आप ही नास करता हैं। (हे भगवान !) तेरा हुक्म अनोखा है (भावार्थ, कोई इस को मोड़ नहीं सकता) तूँ सब जीवों को रिजक पहुँचाता हैं, हर जगह तूँ खुद आप मौजूद हैं और तूँ आप ही जीवों की पालना करता हैं।1।


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