संधिआ ​​वेले का हुक्मनामा – 09 मई 2025

अंग : 633
सोरठि महला ९ ॥ रे नर इह साची जीअ धारि ॥ सगल जगतु है जैसे सुपना बिनसत लगत न बार ॥१॥ रहाउ ॥ बारू भीति बनाई रचि पचि रहत नही दिन चारि ॥ तैसे ही इह सुख माइआ के उरझिओ कहा गवार ॥१॥ अजहू समझि कछु बिगरिओ नाहिनि भजि ले नामु मुरारि ॥ कहु नानक निज मतु साधन कउ भाखिओ तोहि पुकारि ॥२॥८॥
अर्थ: हे मनुष्य! अपने हृदय में इस सत्य को धारण कर लो कि यह समूचा जगत एक स्वप्न जैसा है और इसका विनाश होने में कोई देरी नहीं लगती ॥१॥ रहाउ ॥ जैसे बनाई गई रेत की दीवार, पोतकर चार दिन भी नहीं रहती, वैसे ही यह माया के सुख हैं, हे गंवार मनुष्य! तू उन में क्यों फॅसा हुआ है ॥१॥ आज ही कुछ समझ ले चूंकि अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं है और भगवान के नाम का भजन कर ले। नानक जी का कथन है कि हे मनुष्य! संतों का यही निजी उपदेश एवं युक्ति है जो तुझे पुकार कर बता दी है ॥२॥८॥


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