अंग : 688
धनासरी महला १ ॥ जीवा तेरै नाइ मनि आनंदु है जीउ ॥ साचो साचा नाउ गुण गोविंदु है जीउ ॥ गुर गिआनु अपारा सिरजणहारा जिनि सिरजी तिनि गोई ॥ परवाणा आइआ हुकमि पठाइआ फेरि न सकै कोई ॥ आपे करि वेखै सिरि सिरि लेखै आपे सुरति बुझाई ॥ नानक साहिबु अगम अगोचरु जीवा सची नाई ॥१॥ तुम सरि अवरु न कोइ आइआ जाइसी जीउ ॥ हुकमी होइ निबेड़ु भरमु चुकाइसी जीउ ॥ गुरु भरमु चुकाए अकथु कहाए सच महि साचु समाणा ॥ आपि उपाए आपि समाए हुकमी हुकमु पछाणा ॥ सची वडिआई गुर ते पाई तू मनि अंति सखाई ॥ नानक साहिबु अवरु न दूजा नामि तेरै वडिआई ॥२॥ तू सचा सिरजणहारु अलख सिरंदिआ जीउ ॥ एकु साहिबु दुइ राह वाद वधंदिआ जीउ ॥ दुइ राह चलाए हुकमि सबाए जनमि मुआ संसारा ॥ नाम बिना नाही को बेली बिखु लादी सिरि भारा ॥ हुकमी आइआ हुकमु न बूझै हुकमि सवारणहारा ॥ नानक साहिबु सबदि सिञापै साचा सिरजणहारा ॥३॥ भगत सोहहि दरवारि सबदि सुहाइआ जीउ ॥ बोलहि अम्रित बाणि रसन रसाइआ जीउ ॥ रसन रसाए नामि तिसाए गुर कै सबदि विकाणे ॥ पारसि परसिऐ पारसु होए जा तेरै मनि भाणे ॥ अमरा पदु पाइआ आपु गवाइआ विरला गिआन वीचारी ॥ नानक भगत सोहनि दरि साचै साचे के वापारी ॥४॥ भूख पिआसो आथि किउ दरि जाइसा जीउ ॥ सतिगुर पूछउ जाइ नामु धिआइसा जीउ ॥ सचु नामु धिआई साचु चवाई गुरमुखि साचु पछाणा ॥ दीना नाथु दइआलु निरंजनु अनदिनु नामु वखाणा ॥ करणी कार धुरहु फुरमाई आपि मुआ मनु मारी ॥ नानक नामु महा रसु मीठा त्रिसना नामि निवारी ॥५॥२॥
अर्थ: हे प्रभू जी! तेरे नाम में (जुड़ कर) मेरे अंदर आतमिक जीवन पैदा होता है, मेरे मन में ख़ुश़ी पैदा होती है। हे भाई! परमात्मा का नाम सदा-थिर रहने वाला है, प्रभू गुणों (का ख़ज़ाना) है और धरती के जीवों के दिल की जानने वाला है। गुरू का बख़्श़ा ज्ञान बताता है कि सिरजनहार प्रभू बेअंत है, जिस ने यह सृष्टि पैदा की है, वही इस को नाश करता है। जब उस के हुक्म में भेजा हुआ (मौत का) निमंत्रण आता है तो कोई जीव (उस निमंत्रण को) मोड़ नहीं सकता। परमात्मा आप ही (जीवों को) पैदा कर के आप ही संभाल करता है, आप ही प्रत्येक जीव के सिर पर (उस के किए कार्य अनुसार) लेख लिखता है, आप ही (जीव को सही जीवन-मार्ग की) सूझ बख़्श़ता है। मालिक-प्रभू अपहुँच है, जीवों के ज्ञान-इंद्रियों की उस तक पहुँच नहीं हो सकती। हे नानक जी! (उस के द्वार पर अरदास करो, और कहो – हे प्रभू!) तेरी सदा कायम रहने वाली सिफ़त-सलाह कर के मेरे अंदर आतमिक जीवन पैदा होता है (मुझे अपनी सिफ़त-सलाह बख़्श़) ॥१॥ हे प्रभू जी! तेरे बराबर का अन्य कोई नहीं है, (अन्य जो भी जगत में) आया है, (वह यहाँ से आखिर) चला जाएगा (तूँ ही सदा कायम रहने वाला हैं)। जिस मनुष्य की भटकना (गुरू) दूर करता है, प्रभू के हुक्म अनुसार उस के जन्म मरण के चक्र खत्म हो जाते हैं। गुरू जिस की भटकना दूर करता है, उस से उस परमात्मा की सिफ़त-सलाह करवाता है जिस के गुण बताए नहीं जा सकते। वह मनुष्य सदा-थिर प्रभू (की याद) में रहता है, सदा-थिर प्रभू (उस के हृदय में) प्रगट हो जाता है। वह मनुष्य रज़ा के मालिक-प्रभू का हुक्म पहचान लेता है (और समझ लेता है कि) प्रभू आप ही पैदा करता है और आप ही (अपने में) लीन कर लेता है। हे प्रभू! जिस मनुष्य ने तेरी सिफ़त- सलाह (की दात) गुरू से प्राप्त कर लई है, तूँ उस के मन में आ वसता हैं और अंत समय भी उस का मित्र बनता हैं। हे नानक जी! मालिक-प्रभू सदा कायम रहने वाला है, उस जैसा अन्य कोई नहीं। (उस के द्वार पर अरदास करो और कहो-) हे प्रभू! तेरे नाम से जुड़ने से (लोग परलोग में) आदर मिलता है ॥२॥ हे अदृष्ट रचनहार! तूँ सदा-थिर रहने वाला हैं और सब जीवों को पैदा करने वाला हैं। एक सिरजणहार ही (सारे जगत का) मालिक है, उस ने (जन्म और मरण) के दो रास्ते चलाएं हैं। (उसी की रज़ा अनुसार जगत में) झगड़ों की वृद्धि होती है। दोनों रास्ते प्रभू ने ही चलाएं हैं, सभी जीव उसी के हुक्म में हैं, (उसी के हुक्म अनुसार) जगत जमता और मरता रहता है। (जीव नाम को भुला कर माया के मोह का) ज़हर-रूप बोझ अपने सिर पर इक्कठा करी जाता है, (और यह नहीं समझता कि) परमात्मा के नाम के बिना अन्य कोई भी साथी-मित्र नहीं बन सकता। जीव (परमात्मा के) हुक्म अनुसार (जगत में) आता है, (पर माया के मोह में फंस कर उस) हुक्म को समझता नहीं। प्रभू आप ही जीव को अपने हुक्म अनुसार (सही रास्ते पा कर) संवारने के समर्थ है। हे नानक जी! गुरू के श़ब्द में जुड़ने से यह पहचान आती है कि जगत का मालिक सदा-थिर रहने वाला है और सब का पैदा करने वाला है ॥३॥ हे भाई! परमात्मा की भगती करने वाले मनुष्य परमात्मा की हज़ूरी में शोभा प्राप्त करते हैं, क्योंकि गुरू के श़ब्द की बरकत से वह अपने जीवन को सुंदर बना लेते हैं। वह मनुष्य आतमिक जीवन देने वाली बाणी अपनी जीभ से उचारते रहते हैं, जीव को उस बाणी से एक-रस कर लेते हैं। भगत-जन प्रभू के नाम से जीभ को रसा लेते हैं, नाम में जुड़ कर (नाम के लिए उनकी) प्यास बढ़ती है, गुरू के श़ब्द द्वारा वह प्रभू-नाम से सदके होते हैं (नाम की खातिर अन्य सभी शारीरिक सुख कुर्बान करते हैं। हे प्रभू! जब (भगत जन) तेरे मन को प्यारे लगते हैं, तब वह गुरू-पारस से स्पर्श कर के आप भी पारस हो जाते हैं (अन्यों को पवित्र जीवन देने योग्य हो जाते हैं)। जो मनुष्य आपा-भाव दूर करते हैं उनको वह आतमिक दर्जा मिल जाता है जहाँ आतमिक मौत असर नहीं कर सकती। परन्तु इस तरह कोई विरला ही गुरू के दिए ज्ञान की विचार करने वाला मनुष्य होता है। हे नानक जी! परमात्मा की भगती करने वाले मनुष्य सदा-थिर प्रभू के द्वार पर शोभा प्राप्त करते हैं, वह (अपने सारे जीवन में) सदा-थिर प्रभू के नाम का ही व्यपार करते हैं ॥४॥ जब तक मैं माया के लिए भुखा प्यासा रहता हूँ, तब तक मैं किसी भी तरह प्रभू के द्वार पर पहुँच नहीं सकता। (माया की तृष्णा दूर करने का इलाज) मैं जा कर अपने गुरू से पुछता हूँ (और उन की शिक्षा के अनुसार) मैं परमात्मा का नाम सिमरता हूँ (नाम ही तृष्णा दूर करता है)। गुरू की श़रण पड़ कर मैं सदा-थिर नाम सिमरता हूँ, सदा-थिर प्रभू (की सिफ़त-सलाह) उचारता हूँ, और सदा-थिर प्रभू के साथ सांझ पाता हूँ। मैं हर रोज़ उस प्रभू का नाम मुख से लेता हूँ जो दीनों का सहारा है जो दया का स्रोत है और जिस पर माया का असर नहीं पड़ सकता। परमात्मा ने जिस मनुष्य को अपनी हज़ूरी से ही नाम सिमरन की करने-योग्य कार्य करने का हुक्म दे दिया, वह मनुष्य अपने मन को (माया की तरफ़ से) मार कर तृष्णा के असर से बच जाता है। हे नानक जी! उस मनुष्य को प्रभू का नाम ही मीठा और अन्य सभी रसों से श्रेष्ठ लगता है, उस ने नाम सिमरन की बरकत से माया की तृष्णा (अपने अंदर से) दूर कर ली होती है ॥५॥२॥
ਅੰਗ : 673
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ ਤੁਮ ਦਾਤੇ ਠਾਕੁਰ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਕ ਨਾਇਕ ਖਸਮ ਹਮਾਰੇ ॥ ਨਿਮਖ ਨਿਮਖ ਤੁਮ ਹੀ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਹੁ ਹਮ ਬਾਰਿਕ ਤੁਮਰੇ ਧਾਰੇ ॥੧॥ ਜਿਹਵਾ ਏਕ ਕਵਨ ਗੁਨ ਕਹੀਐ ॥ ਬੇਸੁਮਾਰ ਬੇਅੰਤ ਸੁਆਮੀ ਤੇਰੋ ਅੰਤੁ ਨ ਕਿਨ ਹੀ ਲਹੀਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ ਕੋਟਿ ਪਰਾਧ ਹਮਾਰੇ ਖੰਡਹੁ ਅਨਿਕ ਬਿਧੀ ਸਮਝਾਵਹੁ ॥ ਹਮ ਅਗਿਆਨ ਅਲਪ ਮਤਿ ਥੋਰੀ ਤੁਮ ਆਪਨ ਬਿਰਦੁ ਰਖਾਵਹੁ ॥੨॥ ਤੁਮਰੀ ਸਰਣਿ ਤੁਮਾਰੀ ਆਸਾ ਤੁਮ ਹੀ ਸਜਨ ਸੁਹੇਲੇ ॥ ਰਾਖਹੁ ਰਾਖਨਹਾਰ ਦਇਆਲਾ ਨਾਨਕ ਘਰ ਕੇ ਗੋਲੇ ॥੩॥੧੨॥
ਅਰਥ: ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਤੂੰ ਸਭ ਦਾਤਾਂ ਦੇਣ ਵਾਲਾ ਹੈਂ, ਤੂੰ ਮਾਲਕ ਹੈਂ, ਤੂੰ ਸਭਨਾਂ ਨੂੰ ਪਾਲਣ ਵਾਲਾ ਹੈਂ, ਤੂੰ ਸਾਡਾ ਆਗੂ ਹੈਂ (ਜੀਵਨ-ਅਗਵਾਈ ਦੇਣ ਵਾਲਾ ਹੈਂ), ਤੂੰ ਸਾਡਾ ਖਸਮ ਹੈਂ। ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਤੂੰ ਹੀ ਇਕ ਇਕ ਛਿਨ ਸਾਡੀ ਪਾਲਣਾ ਕਰਦਾ ਹੈਂ, ਅਸੀਂ (ਤੇਰੇ) ਬੱਚੇ ਤੇਰੇ ਆਸਰੇ (ਜੀਊਂਦੇ) ਹਾਂ।੧। ਹੇ ਅਣਗਿਣਤ ਗੁਣਾਂ ਦੇ ਮਾਲਕ! ਹੇ ਬੇਅੰਤ ਮਾਲਕ-ਪ੍ਰਭੂ! ਕਿਸੇ ਭੀ ਪਾਸੋਂ ਤੇਰੇ ਗੁਣਾਂ ਦਾ ਅੰਤ ਨਹੀਂ ਲੱਭਿਆ ਜਾ ਸਕਿਆ। (ਮਨੁੱਖ ਦੀ) ਇਕ ਜੀਭ ਨਾਲ ਤੇਰਾ ਕੇਹੜਾ ਕੇਹੜਾ ਗੁਣ ਦੱਸਿਆ ਜਾਏ?।੧।ਰਹਾਉ। ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਤੂੰ ਸਾਡੇ ਕ੍ਰੋੜਾਂ ਅਪਰਾਧ ਨਾਸ ਕਰਦਾ ਹੈਂ, ਤੂੰ ਸਾਨੂੰ ਅਨੇਕਾਂ ਤਰੀਕਿਆਂ ਨਾਲ (ਜੀਵਨ-ਜੁਗਤਿ) ਸਮਝਾਂਦਾ ਹੈਂ। ਅਸੀਂ ਜੀਵ ਆਤਮਕ ਜੀਵਨ ਦੀ ਸੂਝ ਤੋਂ ਸੱਖਣੇ ਹਾਂ, ਸਾਡੀ ਅਕਲ ਥੋੜੀ ਹੈ ਹੋਛੀ ਹੈ। (ਫਿਰ ਭੀ) ਤੂੰ ਆਪਣਾ ਮੁੱਢ-ਕਦੀਮਾਂ ਦਾ ਪਿਆਰ ਵਾਲਾ ਸੁਭਾਉ ਕਾਇਮ ਰੱਖਦਾ ਹੈਂ ॥੨॥ ਹੇ ਨਾਨਕ! ਆਖ-) ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਅਸੀ ਤੇਰੇ ਹੀ ਆਸਰੇ-ਪਰਨੇ ਹਾਂ, ਸਾਨੂੰ ਤੇਰੀ ਹੀ (ਸਹਾਇਤਾ ਦੀ) ਆਸ ਹੈ, ਤੂੰ ਹੀ ਸਾਡਾ ਸੱਜਣ ਹੈਂ, ਤੂੰ ਹੀ ਸਾਨੂੰ ਸੁਖ ਦੇਣ ਵਾਲਾ ਹੈਂ। ਹੇ ਦਇਆਵਾਨ! ਹੇ ਸਭ ਦੀ ਰੱਖਿਆ ਕਰਨ-ਜੋਗੇ! ਸਾਡੀ ਰੱਖਿਆ ਕਰ, ਅਸੀ ਤੇਰੇ ਘਰ ਦੇ ਗ਼ੁਲਾਮ ਹਾਂ।੩।੧੨।
अंग : 673
धनासरी महला ५ ॥ तुम दाते ठाकुर प्रतिपालक नाइक खसम हमारे ॥ निमख निमख तुम ही प्रतिपालहु हम बारिक तुमरे धारे ॥१॥ जिहवा एक कवन गुन कहीऐ ॥ बेसुमार बेअंत सुआमी तेरो अंतु न किन ही लहीऐ ॥१॥ रहाउ ॥ कोटि पराध हमारे खंडहु अनिक बिधी समझावहु ॥ हम अगिआन अलप मति थोरी तुम आपन बिरदु रखावहु ॥२॥ तुमरी सरणि तुमारी आसा तुम ही सजन सुहेले ॥ राखहु राखनहार दइआला नानक घर के गोले ॥३॥१२॥
अर्थ: हे प्रभु! तू सब दातें (बख्शीश) देने वाला है, तू मालिक हैं, तू सब को पालने वाला है, तू हमारा आगू हैं (जीवन-मार्गदर्शन करने वाला है) तू हमारा खसम है । हे प्रभु! तू ही एक एक पल हमारी पालना करता है, हम (तेरे) बच्चे तेरे सहारे (जीवित) हैं।१। हे अनगिनत गुणों के मालिक! हे बेअंत मालिक प्रभु! किसी भी तरफ से तेरे गुणों का अंत नहीं खोजा जा सका। (मनुष्य की) एक जिव्हा से तेरा कौन कौन सा गुण बयान किया जाये।१।रहाउ। हे प्रभु! तू हमारे करोड़ों अपराध नाश करता है, तू हमें अनेक प्रकार से (जीवन जुगत) समझाता है। हम जीव आत्मिक जीवन की सूझ से परे हैं, हमारी अक्ल थोड़ी है बेकार है। (फिर भी) तूं अपना मूढ़-कदीमा वाला स्वभाव कायम रखता है ॥२॥ हे नानक! (कह–) हे प्रभू! हम तेरे ही आसरे-सहारे से हैं, हमें तेरी ही (सहायता की) आस है, तू ही हमारा सज्जन है, तू ही हमें सुख देने वाला है। हे दयावान! हे सबकी रक्षा करने के समर्थ! हमारी रक्षा कर, हम तेरे घर के गुलाम हैं।3।12।
ਅੰਗ : 696
ਜੈਤਸਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ਘਰੁ ੧ ਚਉਪਦੇ ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ਮੇਰੈ ਹੀਅਰੈ ਰਤਨੁ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਬਸਿਆ ਗੁਰਿ ਹਾਥੁ ਧਰਿਓ ਮੇਰੈ ਮਾਥਾ ॥ ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੇ ਕਿਲਬਿਖ ਦੁਖ ਉਤਰੇ ਗੁਰਿ ਨਾਮੁ ਦੀਓ ਰਿਨੁ ਲਾਥਾ ॥੧॥ ਮੇਰੇ ਮਨ ਭਜੁ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਸਭਿ ਅਰਥਾ ॥ ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਇਆ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਜੀਵਨੁ ਬਿਰਥਾ ॥ ਰਹਾਉ ॥ ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਮੂੜ ਭਏ ਹੈ ਮਨਮੁਖ ਤੇ ਮੋਹ ਮਾਇਆ ਨਿਤ ਫਾਥਾ ॥ ਤਿਨ ਸਾਧੂ ਚਰਣ ਨ ਸੇਵੇ ਕਬਹੂ ਤਿਨ ਸਭੁ ਜਨਮੁ ਅਕਾਥਾ ॥੨॥ ਜਿਨ ਸਾਧੂ ਚਰਣ ਸਾਧ ਪਗ ਸੇਵੇ ਤਿਨ ਸਫਲਿਓ ਜਨਮੁ ਸਨਾਥਾ ॥ ਮੋ ਕਉ ਕੀਜੈ ਦਾਸੁ ਦਾਸ ਦਾਸਨ ਕੋ ਹਰਿ ਦਇਆ ਧਾਰਿ ਜਗੰਨਾਥਾ ॥੩॥ ਹਮ ਅੰਧੁਲੇ ਗਿਆਨਹੀਨ ਅਗਿਆਨੀ ਕਿਉ ਚਾਲਹ ਮਾਰਗਿ ਪੰਥਾ ॥ ਹਮ ਅੰਧੁਲੇ ਕਉ ਗੁਰ ਅੰਚਲੁ ਦੀਜੈ ਜਨ ਨਾਨਕ ਚਲਹ ਮਿਲੰਥਾ ॥੪॥੧॥
ਅਰਥ: ਰਾਗ ਜੈਤਸਰੀ, ਘਰ ੧ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੀ ਚਾਰ-ਬੰਦਾਂ ਵਾਲੀ ਬਾਣੀ। ਅਕਾਲ ਪੁਰਖ ਇੱਕ ਹੈ ਅਤੇ ਸਤਿਗੁਰੂ ਦੀ ਕਿਰਪਾ ਨਾਲ ਮਿਲਦਾ ਹੈ। (ਹੇ ਭਾਈ! ਜਦੋਂ) ਗੁਰੂ ਨੇ ਮੇਰੇ ਸਿਰ ਉੱਤੇ ਆਪਣਾ ਹੱਥ ਰੱਖਿਆ, ਤਾਂ ਮੇਰੇ ਹਿਰਦੇ ਵਿਚ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਰਤਨ (ਵਰਗਾ ਕੀਮਤੀ) ਨਾਮ ਆ ਵੱਸਿਆ। (ਹੇ ਭਾਈ! ਜਿਸ ਭੀ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ) ਗੁਰੂ ਨੇ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਨਾਮ ਦਿੱਤਾ, ਉਸ ਦੇ ਅਨੇਕਾਂ ਜਨਮਾਂ ਦੇ ਪਾਪ ਦੁੱਖ ਦੂਰ ਹੋ ਗਏ, (ਉਸ ਦੇ ਸਿਰੋਂ ਪਾਪਾਂ ਦਾ) ਕਰਜ਼ਾ ਉਤਰ ਗਿਆ ॥੧॥ ਹੇ ਮੇਰੇ ਮਨ! (ਸਦਾ) ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਨਾਮ ਸਿਮਰਿਆ ਕਰ, (ਪਰਮਾਤਮਾ) ਸਾਰੇ ਪਦਾਰਥ (ਦੇਣ ਵਾਲਾ ਹੈ)। (ਹੇ ਮਨ! ਗੁਰੂ ਦੀ ਸਰਨ ਪਿਆ ਰਹੁ) ਪੂਰੇ ਗੁਰੂ ਨੇ (ਹੀ) ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਨਾਮ (ਹਿਰਦੇ ਵਿਚ) ਪੱਕਾ ਕੀਤਾ ਹੈ। ਤੇ, ਨਾਮ ਤੋਂ ਬਿਨਾ ਮਨੁੱਖਾ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਵਿਅਰਥ ਚਲੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ॥ ਰਹਾਉ ॥ ਹੇ ਭਾਈ! ਜੇਹੜੇ ਮਨੁੱਖ ਆਪਣੇ ਮਨ ਦੇ ਪਿੱਛੇ ਤੁਰਦੇ ਹਨ ਉਹ ਗੁਰੂ (ਦੀ ਸਰਨ) ਤੋਂ ਬਿਨਾ ਮੂਰਖ ਹੋਏ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ, ਉਹ ਸਦਾ ਮਾਇਆ ਦੇ ਮੋਹ ਵਿਚ ਫਸੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ। ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਕਦੇ ਭੀ ਗੁਰੂ ਦਾ ਆਸਰਾ ਨਹੀਂ ਲਿਆ, ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਸਾਰਾ ਜੀਵਨ ਵਿਅਰਥ ਚਲਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ॥੨॥ ਹੇ ਭਾਈ! ਜੇਹੜੇ ਮਨੁੱਖ ਗੁਰੂ ਦੇ ਚਰਨਾਂ ਦੀ ਓਟ ਲੈਂਦੇ ਹਨ, ਉਹ ਖਸਮ ਵਾਲੇ ਬਣ ਜਾਂਦੇ ਹਨ, ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਕਾਮਯਾਬ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ। ਹੇ ਹਰੀ! ਹੇ ਜਗਤ ਦੇ ਨਾਥ! ਮੇਰੇ ਉੱਤੇ ਮੇਹਰ ਕਰ, ਮੈਨੂੰ ਆਪਣੇ ਦਾਸਾਂ ਦੇ ਦਾਸਾਂ ਦਾ ਦਾਸ ਬਣਾ ਲੈ ॥੩॥ ਹੇ ਗੁਰੂ! ਅਸੀ ਮਾਇਆ ਵਿਚ ਅੰਨ੍ਹੇ ਹੋ ਰਹੇ ਹਾਂ, ਅਸੀਂ ਆਤਮਕ ਜੀਵਨ ਦੀ ਸੂਝ ਤੋਂ ਸੱਖਣੇ ਹਾਂ, ਸਾਨੂੰ ਸਹੀ ਜੀਵਨ-ਜੁਗਤਿ ਦੀ ਸੂਝ ਨਹੀਂ ਹੈ, ਅਸੀ ਤੇਰੇ ਦੱਸੇ ਹੋਏ ਜੀਵਨ-ਰਾਹ ਉੱਤੇ ਤੁਰ ਨਹੀਂ ਸਕਦੇ। ਦਾਸ ਨਾਨਕ ਜੀ! (ਆਖੋ—) ਹੇ ਗੁਰੂ! ਸਾਨੂੰ ਅੰਨ੍ਹਿਆਂ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਪੱਲਾ ਫੜਾ, ਤਾਂ ਕਿ ਤੇਰੇ ਪੱਲੇ ਲੱਗ ਕੇ ਅਸੀ ਤੇਰੇ ਦੱਸੇ ਹੋਏ ਰਸਤੇ ਉਤੇ ਤੁਰ ਸਕੀਏ ॥੪॥੧॥
अंग : 696
जैतसरी महला ४ घरु १ चउपदे ੴसतिगुर प्रसादि ॥ मेरै हीअरै रतनु नामु हरि बसिआ गुरि हाथु धरिओ मेरै माथा ॥ जनम जनम के किलबिख दुख उतरे गुरि नामु दीओ रिनु लाथा ॥१॥ मेरे मन भजु राम नामु सभि अरथा ॥ गुरि पूरै हरि नामु दि्रड़ाइआ बिनु नावै जीवनु बिरथा ॥ रहाउ ॥ बिनु गुर मूड़ भए है मनमुख ते मोह माइआ नित फाथा ॥ तिन साधू चरण न सेवे कबहू तिन सभु जनमु अकाथा ॥२॥ जिन साधू चरण साध पग सेवे तिन सफलिओ जनमु सनाथा ॥ मो कउ कीजै दासु दास दासन को हरि दइआ धारि जगंनाथा ॥३॥ हम अंधुले गिआनहीन अगिआनी किउ चालह मारगि पंथा ॥ हम अंधुले कउ गुर अंचलु दीजै जन नानक चलह मिलंथा ॥४॥१॥
अर्थ: राग जैतसरी, घर १ में गुरु रामदास जी की चार-बन्दों वाली बाणी। अकाल पुरख एक है और सतिगुरु की कृपा द्वारा मिलता है। (हे भाई! जब) गुरु ने मेरे सिर ऊपर अपना हाथ रखा, तो मेरे हृदय में परमात्मा का रत्न (जैसा कीमती) नाम आ वसा। (हे भाई! जिस भी मनुष्य को) गुरु ने परमात्मा का नाम दिया, उस के अनकों जन्मों के पाप दुःख दूर हो गए, (उस के सिर से पापों का कर्ज) उतर गया ॥१॥ हे मेरे मन! (सदा) परमात्मा का नाम सिमरिया कर, (परमात्मा) सारे पदार्थ (देने वाला है)। (हे मन! गुरु की सरन में ही रह) पूरे गुरु ने (ही) परमात्मा का नाम (ह्रदय में) पक्का किया है। और, नाम के बिना मनुष्य जीवन व्यर्थ चला जाता है ॥ रहाउ ॥ हे भाई! जो मनुष्य अपने मन के पीछे चलते है वह गुरु (की सरन) के बिना मुर्ख हुए रहते हैं, वह सदा माया के मोह में फसे रहते है। उन्होंने कभी भी गुरु का सहारा नहीं लिया, उनका सारा जीवन व्यर्थ चला जाता है ॥२॥ हे भाई! जो मनुष्य गुरू के चरनो का आसरा लेते हैं, वह गुरू वालेे बन जाते हैं, उनकी जिदंगी सफल हो जाती है। हे हरी! हे जगत के नाथ! मेरे पर मेहर कर, मुझे अपने दासों के दासों का दास बना ले ॥३॥ हे गुरू! हम माया मे अँधे हो रहे हैं, हम आतमिक जीवन की सूझ से अनजान हैं, हमे सही जीवन की सूझ नही है, हम आपके बताए हुए जीवन-राह पर चल नही सकते। दास नानक जी!(कहो-) हे गुरू! हम अँधियों के अपना पला दीजिए जिस से हम आपके बताए हुए रास्ते पर चल सकें ॥४॥१॥
ਅੰਗ : 676
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ ਫਿਰਤ ਫਿਰਤ ਭੇਟੇ ਜਨ ਸਾਧੂ ਪੂਰੈ ਗੁਰਿ ਸਮਝਾਇਆ ॥ ਆਨ ਸਗਲ ਬਿਧਿ ਕਾਂਮਿ ਨ ਆਵੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ॥੧॥ ਤਾ ਤੇ ਮੋਹਿ ਧਾਰੀ ਓਟ ਗੋਪਾਲ ॥ ਸਰਨਿ ਪਰਿਓ ਪੂਰਨ ਪਰਮੇਸੁਰ ਬਿਨਸੇ ਸਗਲ ਜੰਜਾਲ ॥ ਰਹਾਉ ॥ ਸੁਰਗ ਮਿਰਤ ਪਇਆਲ ਭੂ ਮੰਡਲ ਸਗਲ ਬਿਆਪੇ ਮਾਇ ॥ ਜੀਅ ਉਧਾਰਨ ਸਭ ਕੁਲ ਤਾਰਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ॥੨॥
ਅਰਥ: ਹੇ ਭਾਈ! ਭਾਲ ਕਰਦਿਆਂ ਕਰਦਿਆਂ ਜਦੋਂ ਮੈਂ ਗੁਰੂ ਮਹਾ ਪੁਰਖ ਨੂੰ ਮਿਲਿਆ, ਤਾਂ ਪੂਰੇ ਗੁਰੂ ਨੇ (ਮੈਨੂੰ) ਇਹ ਸਮਝ ਬਖ਼ਸ਼ੀ ਕਿ (ਮਾਇਆ ਦੇ ਮੋਹ ਤੋਂ ਬਚਣ ਲਈ) ਹੋਰ ਸਾਰੀਆਂ ਜੁਗਤੀਆਂ ਵਿਚੋਂ ਕੋਈ ਇੱਕ ਜੁਗਤਿ ਭੀ ਕੰਮ ਨਹੀਂ ਆਉਂਦੀ। ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਨਾਮ ਸਿਮਰਿਆ ਹੋਇਆ ਹੀ ਕੰਮ ਆਉਂਦਾ ਹੈ।੧। ਇਸ ਵਾਸਤੇ, ਹੇ ਭਾਈ! ਮੈਂ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਆਸਰਾ ਲੈ ਲਿਆ। (ਜਦੋਂ ਮੈਂ) ਸਰਬ-ਵਿਆਪਕ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਸਰਨ ਪਿਆ, ਤਾਂ ਮੇਰੇ ਸਾਰੇ (ਮਾਇਆ ਦੇ) ਜੰਜਾਲ ਨਾਸ ਹੋ ਗਏ।ਰਹਾਉ। ਹੇ ਭਾਈ! ਦੇਵ ਲੋਕ, ਮਾਤ-ਲੋਕ, ਪਾਤਾਲ-ਸਾਰੀ ਹੀ ਸ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਮਾਇਆ (ਦੇ ਮੋਹ) ਵਿਚ ਫਸੀ ਹੋਈ ਹੈ। ਹੇ ਭਾਈ! ਸਦਾ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਨਾਮ ਸਿਮਰਿਆ ਕਰ, ਇਹੀ ਹੈ ਜਿੰਦ ਨੂੰ (ਮਾਇਆ ਦੇ ਮੋਹ ਵਿਚੋਂ) ਬਚਾਣ ਵਾਲਾ, ਇਹੀ ਹੈ ਸਾਰੀਆਂ ਕੁਲਾਂ ਨੂੰ ਤਾਰਨ ਵਾਲਾ।੨।
अंग : 676
धनासरी महला ५ ॥ फिरत फिरत भेटे जन साधू पूरै गुरि समझाइआ ॥ आन सगल बिधि कांमि न आवै हरि हरि नामु धिआइआ ॥१॥ ता ते मोहि धारी ओट गोपाल ॥ सरनि परिओ पूरन परमेसुर बिनसे सगल जंजाल ॥ रहाउ ॥ सुरग मिरत पइआल भू मंडल सगल बिआपे माइ ॥ जीअ उधारन सभ कुल तारन हरि हरि नामु धिआइ ॥२॥
अर्थ: हे भाई! खोजते खोजते जब मैं गुरु महां पुरख को मिला, तो पूरे गुरु ने (मुझे) यह समझ दी की ( माया के मोह से बचने के लिए) और सारी जुग्तियों में से एक भी जुगत कान नहीं आती। परमात्मा का नाम सिमरन करना ही काम आता है।१। इस लिए, हे भाई! मैंने परमात्मा का सहारा ले लिया। (जब मैं) सरब-व्यापक परमात्मा के सरन आया, तो मेरे सारे (माया के) जंजाल नास हो गये।रहाउ। हे भाई! देव लोक, मात लोक, पाताल-सारी ही सृष्टि माया (मोह में) फसी हुई है। हे भाई! सदा परमात्मा का नाम जपा करो, यही है जीवन को ( माया के मोह से बचाने वाला, यही है सारी ही कुलों को पार लगाने वाला।२।
ਅੰਗ : 682
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ ਜਿਸ ਕਉ ਬਿਸਰੈ ਪ੍ਰਾਨਪਤਿ ਦਾਤਾ ਸੋਈ ਗਨਹੁ ਅਭਾਗਾ ॥ ਚਰਨ ਕਮਲ ਜਾ ਕਾ ਮਨੁ ਰਾਗਿਓ ਅਮਿਅ ਸਰੋਵਰ ਪਾਗਾ ॥੧॥ ਤੇਰਾ ਜਨੁ ਰਾਮ ਨਾਮ ਰੰਗਿ ਜਾਗਾ ॥ ਆਲਸੁ ਛੀਜਿ ਗਇਆ ਸਭੁ ਤਨ ਤੇ ਪ੍ਰੀਤਮ ਸਿਉ ਮਨੁ ਲਾਗਾ ॥ ਰਹਾਉ ॥ ਜਹ ਜਹ ਪੇਖਉ ਤਹ ਨਾਰਾਇਣ ਸਗਲ ਘਟਾ ਮਹਿ ਤਾਗਾ ॥ ਨਾਮ ਉਦਕੁ ਪੀਵਤ ਜਨ ਨਾਨਕ ਤਿਆਗੇ ਸਭਿ ਅਨੁਰਾਗਾ ॥੨॥੧੬॥੪੭॥
ਅਰਥ: ਹੇ ਭਾਈ! ਉਸ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਬਦ-ਕਿਸਮਤ ਸਮਝੋ, ਜਿਸ ਨੂੰ ਜਿੰਦ ਦਾ ਮਾਲਕ-ਪ੍ਰਭੂ ਵਿਸਰ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਜਿਸ ਮਨੁੱਖ ਦਾ ਮਨ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਕੋਮਲ ਚਰਨਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰੇਮੀ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਉਹ ਮਨੁੱਖ ਆਤਮਕ ਜੀਵਨ ਦੇਣ ਵਾਲੇ ਨਾਮ-ਜਲ ਦਾ ਸਰੋਵਰ ਲੱਭ ਲੈਂਦਾ ਹੈ।1। ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਤੇਰਾ ਸੇਵਕ ਤੇਰੇ ਨਾਮ-ਰੰਗ ਵਿਚ ਟਿਕ ਕੇ (ਮਾਇਆ ਦੇ ਮੋਹ ਵਲੋਂ ਸਦਾ) ਸੁਚੇਤ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ। ਉਸ ਦੇ ਸਰੀਰ ਵਿਚੋਂ ਸਾਰਾ ਆਲਸ ਮੁੱਕ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਉਸ ਦਾ ਮਨ, (ਹੇ ਭਾਈ!) ਪ੍ਰੀਤਮ-ਪ੍ਰਭੂ ਨਾਲ ਜੁੜਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ। ਰਹਾਉ। ਹੇ ਭਾਈ! (ਉਸ ਦੇ ਸਿਮਰਨ ਦੀ ਬਰਕਤਿ ਨਾਲ) ਮੈਂ (ਭੀ) ਜਿਧਰ ਜਿਧਰ ਵੇਖਦਾ ਹਾਂ, ਉਥੇ ਉਥੇ ਪਰਮਾਤਮਾ ਹੀ ਸਾਰੇ ਸਰੀਰਾਂ ਵਿਚ ਮੌਜੂਦ ਦਿੱਸਦਾ ਹੈ ਜਿਵੇਂ ਧਾਗਾ (ਸਾਰੇ ਮਣਕਿਆਂ ਵਿਚ ਪ੍ਰੋਇਆ ਹੁੰਦਾ ਹੈ)। ਹੇ ਨਾਨਕ! ਪ੍ਰਭੂ ਦੇ ਦਾਸ ਉਸ ਦਾ ਨਾਮ-ਜਲ ਪੀਂਦਿਆਂ ਹੀ ਹੋਰ ਸਾਰੇ ਮੋਹ-ਪਿਆਰ ਛੱਡ ਦੇਂਦੇ ਹਨ।2। 19। 47।
अंग : 682
धनासरी महला ५ ॥ जिस कउ बिसरै प्रानपति दाता सोई गनहु अभागा ॥ चरन कमल जा का मनु रागिओ अमिअ सरोवर पागा ॥१॥ तेरा जनु राम नाम रंगि जागा ॥ आलसु छीजि गइआ सभु तन ते प्रीतम सिउ मनु लागा ॥ रहाउ ॥ जह जह पेखउ तह नाराइण सगल घटा महि तागा ॥ नाम उदकु पीवत जन नानक तिआगे सभि अनुरागा ॥२॥१६॥४७॥
अर्थ: हे भाई ! उस मनुख को बद-किस्मत समझो, जिस को जीवन का स्वामी-भगवान विसर जाता है। जिस मनुख का मन परमात्मा के कोमल चरणों का प्रेमी हो जाता है, वह मनुख आत्मिक जीवन देने वाले नाम-जल का सरोवर खोज लेता है।1।हे भगवान ! तेरा सेवक तेरे नाम-रंग में टिक के (माया के मोह की तरफ से सदा) सुचेत रहता है। उस के शरीर में से सारा आलस खत्म हो जाता है, उस का मन, (हे भाई !) प्रीतम-भगवान के साथ जुड़ा रहता है।रहाउ। हे भाई ! (उस के सुमिरन की बरकत के साथ) मैं (भी) जिधर जिधर देखता हूँ, ऊपर ऊपर परमात्मा ही सारे शरीरो में मौजूद दिखता है जैसे धागा (सारे मोतियों में पिरोया होता है)। हे नानक ! भगवान के दास उस का नाम-जल पीते हुए ही ओर सारे मोह-प्यार छोड़ देते हैं।2।19।47।
ਅੰਗ : 686
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥ ਸਹਜਿ ਮਿਲੈ ਮਿਲਿਆ ਪਰਵਾਣੁ ॥ ਨਾ ਤਿਸੁ ਮਰਣੁ ਨ ਆਵਣੁ ਜਾਣੁ ॥ ਠਾਕੁਰ ਮਹਿ ਦਾਸੁ ਦਾਸ ਮਹਿ ਸੋਇ ॥ ਜਹ ਦੇਖਾ ਤਹ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ॥੧॥ ਗੁਰਮੁਖਿ ਭਗਤਿ ਸਹਜ ਘਰੁ ਪਾਈਐ ॥ ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਭੇਟੇ ਮਰਿ ਆਈਐ ਜਾਈਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ ਸੋ ਗੁਰੁ ਕਰਉ ਜਿ ਸਾਚੁ ਦ੍ਰਿੜਾਵੈ ॥ ਅਕਥੁ ਕਥਾਵੈ ਸਬਦਿ ਮਿਲਾਵੈ ॥ ਹਰਿ ਕੇ ਲੋਗ ਅਵਰ ਨਹੀ ਕਾਰਾ ॥ ਸਾਚਉ ਠਾਕੁਰੁ ਸਾਚੁ ਪਿਆਰਾ ॥੨॥
ਅਰਥ: ਜੇਹੜਾ ਮਨੁੱਖ ਗੁਰੂ ਦੀ ਰਾਹੀਂ ਅਡੋਲ ਅਵਸਥਾ ਵਿਚ ਟਿਕ ਕੇ ਪ੍ਰਭੂ-ਚਰਨਾਂ ਵਿਚ ਜੁੜਦਾ ਹੈ, ਉਸ ਦਾ ਪ੍ਰਭੂ-ਚਰਨਾਂ ਵਿਚ ਜੁੜਨਾ ਕਬੂਲ ਪੈਂਦਾ ਹੈ। ਉਸ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਨਾਹ ਆਤਮਕ ਮੌਤ ਆਉਂਦੀ ਹੈ, ਨਾਹ ਹੀ ਜਨਮ ਮਰਨ ਦਾ ਗੇੜ। ਅਜੇਹਾ ਪ੍ਰਭੂ ਦਾ ਦਾਸ ਪ੍ਰਭੂ ਵਿਚ ਲੀਨ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ, ਪ੍ਰਭੂ ਅਜੇਹੇ ਸੇਵਕ ਦੇ ਅੰਦਰ ਪਰਗਟ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਉਹ ਸੇਵਕ ਜਿੱਧਰ ਤੱਕਦਾ ਹੈ ਉਸ ਨੂੰ ਪਰਮਾਤਮਾ ਤੋਂ ਬਿਨਾ ਹੋਰ ਕੋਈ ਨਹੀਂ ਦਿੱਸਦਾ।੧। ਗੁਰੂ ਦੀ ਸਰਨ ਪੈ ਕੇ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਭਗਤੀ ਕੀਤਿਆਂ ਉਹ (ਆਤਮਕ) ਟਿਕਾਣਾ ਮਿਲ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਜਿਥੇ ਮਨ ਸਦਾ ਅਡੋਲ ਅਵਸਥਾ ਵਿਚ ਟਿਕਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ। (ਪਰ) ਗੁਰੂ ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਤੋਂ ਬਿਨਾ ਆਤਮਕ ਮੌਤੇ ਮਰ ਕੇ ਜਨਮ ਮਰਨ ਦੇ ਗੇੜ ਵਿਚ ਪਏ ਰਹੀਦਾ ਹੈ।੧।ਰਹਾਉ। ਮੈਂ (ਭੀ) ਉਹੀ ਗੁਰੂ ਧਾਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹਾਂ ਜੇਹੜਾ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਪ੍ਰਭੂ ਨੂੰ (ਮੇਰੇ ਹਿਰਦੇ ਵਿਚ) ਪੱਕੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਟਿਕਾ ਦੇਵੇ, ਜੇਹੜਾ ਮੈਥੋਂ ਅਕੱਥ ਪ੍ਰਭੂ ਦੀ ਸਿਫ਼ਤਿ-ਸਾਲਾਹ ਕਰਾਵੇ, ਤੇ ਆਪਣੇ ਸ਼ਬਦ ਦੀ ਰਾਹੀਂ ਮੈਨੂੰ ਪ੍ਰਭੂ-ਚਰਨਾਂ ਵਿਚ ਜੋੜ ਦੇਵੇ। ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਭਗਤ ਨੂੰ (ਸਿਫ਼ਤਿ-ਸਾਲਾਹ ਤੋਂ ਬਿਨਾ) ਕੋਈ ਹੋਰ ਕਾਰ ਨਹੀਂ (ਸੁੱਝਦੀ)। ਭਗਤ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਪ੍ਰਭੂ ਨੂੰ ਹੀ ਸਿਮਰਦਾ ਹੈ, ਸਦਾ-ਥਿਰ ਪ੍ਰਭੂ ਉਸ ਨੂੰ ਪਿਆਰਾ ਲੱਗਦਾ ਹੈ।੨।